‘स्मृति संकल्प यात्रा, उत्तराखण्ड’
में गूँजा नारा :भगतसिंह को याद करेंगे – फासिस्टों को नहीं सहेंगे!

बिगुल संवाददाता

जिस देश का इतिहास नहीं होता, उसका कोई भविष्य भी नहीं हो सकता और जो पीढ़ी अपने इतिहास व परम्परा को नहीं जानती वो अपना भविष्य व आदर्श भी नहीं गढ़ सकती।

अपने देश के क्रान्तिकारी आन्दोलन की विरासत व परम्परा से परिचित कराने, शहीद क्रान्तिकारियों के सपनों, विचारों, लक्ष्यों और आदर्शों की याददिहानी के मक़सद से उत्तराखण्ड राज्‍य के विभिन्न जि़लों व क़स्बों में नौजवान भारत सभा, स्त्री मुक्ति लीग व बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा ‘स्मृति संकल्प यात्रा’ निकाली गयी। ‘स्मृति संकल्प यात्रा, उत्तराखण्ड’ चन्द्रशेखर आज़ाद के शहादत दिवस (27 फ़रवरी) से शुरू होकर भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरु के शहादत दिवस (23 मार्च) तक चलायी गयी।

तीन चरणों में चलने वाली इस यात्रा का पहला चरण गढ़वाल क्षेत्र की घाटी और तराई क्षेत्र में चला। दूसरा चरण गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र में चलाया गया और तीसरे चरण में कुमाऊँ के पहाड़ी व तराई क्षेत्र में चलाने के बाद देहरादून में ‘स्मृति संकल्प सभा’ के साथ इस यात्रा का समापन किया गया। इस पूरी यात्रा के दौरान व्यापक पर्चा वितरण, नुक्कड़ सभा, गोष्ठी, पुस्तक-पोस्टर प्रदर्शनी व फि़ल्म स्कीनिंग आदि की गयी।

पहले चरण की शुरुआत देहरादून में 27 फ़रवरी को ‘भारतीय मेहनतकश जनता की क्रान्तिकारी चेतना के प्रतीक चन्द्रशेखर आज़ाद और आज का समय’ विचार-गोष्ठी से की गयी। इसके बाद 9 मार्च तक यह यात्रा देहरादून, हरिद्वार, रुढ़की, ऋषिकेश के विभिन्न इलाक़ों में केन्द्रित रही। 7-8 मार्च को ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर एमकेपी कॉलेज, देहरादून में स्त्री मुक्ति से सम्बन्धित पोस्टर प्रदर्शनी लगायी गयी और जब्बार पटेल की फि़ल्म ‘सुबह’ की स्कीनिंग की गयी।

यात्रा का दूसरा चरण 10-14 मार्च तक चला। इस दौरान श्रीनगर और उसके आस-पास के इलाक़ों में व्यापक पर्चा वितरण करते हुए नुक्कड़ सभाएँ की गयीं। 14 मार्च को डोईवाला के डिग्री कॉलेज में छात्रों के बीच सम्पर्क एवं व्यापक पर्चा वितरण के साथ दूसरे चरण की यात्रा का अन्तिम पड़ाव पूरा हुआ।

यात्रा का तीसरा चरण 15 मार्च से 22 मार्च तक कुँमाऊँ रीज़न के रामनगर, कालाढूँगी, हल्द्वानी, नैनीतान, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, खटीमा, रुद्रपुर और काशीपुर से होते हुए देहरादून में ‘स्मृति संकल्प सभा’ के साथ समाप्त हुआ। ‘स्मृति संकल्प सभा’ में मौजूद नौजवानों, नागरिकों व बुद्धिजीवियों ने मशाल के समक्ष शपथ ली कि साम्प्रदायिक फासीवादी ताक़तों द्वारा देश को जाति, धर्म, नस्ल, रंग, भाषा व राष्ट्रीयता के आधार पर बाँटने के ख़ूनी मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे। देश में दमित, शोषित-उत्पीड़ि‍त दलितों, स्त्रियों, अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार-दमन को बर्दाश्त नहीं करेंगे। मेहनतकश जनता की क्रान्तिकारी एकजुटता को बनाये रखने और संगठित करने की हरसम्भव कोशिश करेंगे। देशी-विदेशी पूँजी की लूट और अन्याय-उत्पीड़न की बुनियाद पर क़ायम सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक ढाँचे के बरक्स समता, न्याय और मानवीय गरिमा की बुनियाद पर एक नये समाज के निर्माण के लिए जारी संघर्ष में एक सच्चे इंक़लाबी सिपाही की भूमिका निभायेंगे।

यात्रा के दौरान नुक्कड़ सभाओं में वक्ताओं ने कहा कि  आज़ादी के सात दशकों के बाद भी आज मेहनतकश जनता की स्थिति लगातार बद से बदतर होती गयी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, भोजन व आवास जैसे बुनियादी अधिकार भी लगातार छिनते गये हैं। जनता की नुमाइन्दगी करने का दावा करने वाली सभी चुनावी पार्टियों का चाल-चेहरा व चरित्र भी बेनकाब हो चुका है। जनता की माला जपने वाली ये पार्टियाँ पूँजीपतियों व बहुराष्ट्रीय निगमों की सेवा-चाकरी में अपना ईमान तक गिरवी रखने में कोई गुरेज नहीं करती हैं। कॉरपोरेटों की लूट और शोषण को जारी रखने और सुगम बनाने के लिए देश की पुलिस-फ़ौज-नौकरशाही व न्यायपालिका भी अपना काम बख़ूबी निभा रही हैं। जन-विरोधी नीतियों, दमन, शोषण से होने वाले असन्तोष से जनता का ध्यान भटकाने के लिए आज तमाम साम्प्रदायिक फासीवादी ताक़तें पूरे देश में काम कर रही हैं। इनका एक ही मक़सद है कि इस देश के ग़रीब मेहनतकशों को जाति-धर्म-सम्प्रदाय में बाँटकर पूँजी की सेवा की जाये। इसके लिए ये ताक़तें तमाम धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल कर रही हैं और छद्म राष्ट्रवाद के नारों से नौजवानों-मेहनतकशों को भ्रमित कर रही हैं। हमें इनके षड्यन्त्रों को पहचानकर इनके नापाक इरादों का भण्डाफोड़ करना होगा। इन ताक़तों से लड़कर ही इस देश के नौजवान-मेहनतकश क्रान्तिकारी परिवर्तन के संघर्ष को अपने असली मुक़ाम तक पहुँचा सकते हैं।

इन फासिस्ट गुण्डा-गिरोहों का सामना यात्रा के दौरान भी हुआ। यात्रा के तीसरे चरण में पिथौरागढ़ प्रवास के दौरान पिथौरागढ़ के डिग्री कॉलेज में भगतसिंह और क्रान्तिकारी आन्दोलन पर पोस्टर प्रदर्शनी लगायी गयी थी। इस प्रदर्शनी को देखते ही संघी लम्पटों का गिरोह कॉलेज के प्रशासनिक दल-बल को साथ लेकर पहुँच गया। आते ही यह गिरोह हल्ला-हंगामा करने लगा कि, ”लाल रंग को कैम्पस में नहीं रहने देंगे”। इस पर वहाँ के तमाम छात्रों ने कहा कि ”लाल रंग नहीं तो भगवा भी नहीं”। काफ़ी बहस-मुबाहसे और छात्रों के विरोध के बाद कॉलेज का प्रशासनिक अमला बैकफुट पर आ गया। संघी गिरोहों को भी छात्रों की दृढ़ता देखकर वहाँ से खिसक लेना ही मुनासिब लगा। इसके बाद कॉलेज में ही भगतसिंह पर आधारित फि़ल्म की स्कीनिंग की गयी। दरअसल इन भगवाधारियों को दिक्कत लाल रंग से नहीं बल्कि विचार, तर्कणा और वैज्ञानिकता से है। ये फासिस्ट देश के क्रान्तिकारी आन्दोलन की विरासत और क्रान्तिकारियों को याद किये जाने से इसलिए भी डरते हैं, क्योंकि ये अच्छी तरह जानते हैं कि आम छात्रों-नौजवानों और मेहनतकशों को इनके असली एजेण्डे व आज़ादी की लड़ाई से इनकी ग़द्दारी का जब पता चलेगा, तब इनका क्या हश्र होगा। इसलिए ये कभी नहीं चाहते कि जनता अपने वा‍स्तविक इतिहास और क्रान्तिकारी संघर्षों की विरासत से परिचित हो।

पूरी यात्रा के दौरान उत्तराखण्ड के नागरिकों, बुद्धिजीवियों और छात्रों-नौजवानों का बहुत ही सहयोग और साथ रहा। जहाँ भी यात्रा टोली गयी, लोगों ने रुकवाने और कार्यक्रम की जगहें मुहैया कराने में बहुत मदद की। नुक्कड़ सभाओं के दौरान भी लोगों ने इस पूरे अभियान को बहुत ही सराहा और कहा कि आज इस तरह के अभियानों व क्रान्तिकारी विकल्प को खड़ा करने की बहुत ही सख़्त ज़रूरत है।

 

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2018


 

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