गतिविधि रिपोर्ट
शिक्षा सहायता मण्डल, हरिद्वार

अपूर्व

आपने ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली कहावत तो सुनी होगी। यह कहावत हरिद्वार के रौशनाबाद से सटे तीन-चार गाँव के अर्द्धसरकारी स्कूल पर थोड़े नुक़्स के साथ सटीक बैठती है। नुक़्स यह है कि अर्द्धसरकारी स्कूल वाला ‘अनार’ ख़ुद भी बीमार है। रौशनाबाद, हेत्तमपुर, नवोदय नगर, आन्नेकी, औरंगाबाद जैसे गाँव में रहने वाले मेहनतकशों के ज़्यादातर बच्चे वहाँ स्थित एक अर्द्धसरकारी इण्टर कॉलेज में पढ़ने जाते हैं। इस स्कूल में बच्चे अधिक और सुविधाएँ कम होने के कारण यहाँ अशिक्षित साक्षरों की संख्या अधिक है। अधिकतर विषयों की पढ़ाई टेक्स्ट बुक से कम गाइड से अधिक होती है। यही कारण है कि बच्चों के लिए ‘गणित’ पैसों के जोड़-घटाव और सामानों के मापतोल से अधिक कुछ नहीं है, ‘विज्ञान’ का मतलब मोबाइल और तमाम इलैक्ट्रिक गैजेट हैं, ‘इतिहास’ का मतलब बीते ज़माने का कोई चीज़़ है जिसका आज कोई मतलब नहीं है और ‘अंग्रेज़ी’ भाषा अंग्रेज़ों की छोड़ी हुई कोई शैतानी चाल है जो बच्चों को परेशान किये रहती है।
यहाँ फ़ैक्टरियों में न्यूनतम मज़दूरी बहुत कम है। परिवार का ख़र्च चलाना एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है। जिन परिवारों में बच्चे हाई स्कूल में पहुँच जाते हैं, वे भी फ़ैक्टरियों में काम करने या किसी छोटे-मोटे काम-धन्धों में अपने परिवार की मदद करना शुरू कर देते हैं। पढ़ाई का बेहतर माहौल और सुविधाओं के न होने के बावजूद भी बच्चों में पढ़ने की चाहत बहुत है। ट्यूशन और कोचिंग संस्थानों की मँहगी फ़ीसों और ख़राब पढ़ाई की वजह से बहुत से छात्र पढ़ना चाहते हुए भी पढ़ नहीं पाते। बच्चों की इन्हीं दिलचस्पी की वजह से ‘नौजवान भारत सभा’ द्वारा हाई स्कूल और इण्टर की बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करवाने के लिए नवम्बर माह से ‘शिक्षा सहायता मण्डल’ की शुरुआत की गयी। इस शिक्षा सहायता मण्डल में अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों की तैयारी करवायी गयी।
शिक्षा सहायता मण्डल की शुरुआत होते ही वो नौजवान मज़दूर लड़के-लड़कियाँ भी पढ़ने आने लगे जो औपचारिक शिक्षा नहीं ग्रहण कर पाये या किन्हीं कारणों से बचपन में ही उनकी पढ़ाई छूट गयी। ये नौजवान मज़दूर सुबह से शाम तक दस से बारह घण्टे काम करते हैं और शाम को हिन्दी भाषा पढ़ने और सीखने आते हैं। इन नौजवानों में पढ़ने की ललक इतनी ज़्यादा है कि कभी-कभी फै़क्टरी में ओवरटाइम लगने के कारण अगर किसी दिन इनकी पढ़ाई छूट जाती है तो अगले दिन सुबह-सुबह फै़क्टरी जाने से पहले पढ़ने के लिए आ जाते हैं।
मेहनतकशों के बच्चों में पढ़ने की दिलचस्पी होने के बावजूद भी मज़दूर बस्तियों में चलने वाले सरकारी-अर्द्धसरकारी स्कूलों की दुर्दशा की वजह से वे बेहतर शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। इसको बदलने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में ‘सबको नि:शुल्क और एकसमान शिक्षा’ के नारे के साथ एक बड़े आन्दोलन की शुरुआत करनी होगी तभी मेहनतकशों के बच्चों को बेहतर शिक्षा हासिल हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि ऐसे ‘शिक्षा सहायता मण्डल’ बिगुल मज़दूर दस्ता और नौजवान भारत सभा की ओर से उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र आदि के अनेक ज़िलों में भी चलाये जा रहे हैं।

मज़दूर बिगुल, मार्च 2019


 

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