मई दिवस का नारा है! सारा संसार हमारा है!
संघर्षों की अलख जगाओ! मई दिवस की विरासत को आगे बढ़ाओ!
दिल्ली के वज़ीरपुर में मई दिवस के शहीदों की शान में सांस्कृतिक कार्यक्रम
बिगुल मज़दूर दस्ता एवं दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन द्वारा दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में 131वे मई दिवस के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मई दिवस के दिन सुबह वज़ीरपुर स्थित श्रीराम चौक पर एक जनसभा का आयोजन किया गया जिसमे मज़दूरों के लिए मई दिवस के महत्व, मई दिवस के अमर शहीदों की क़ुरबानी और मज़दूरों के संघर्ष के गौरवशाली इतिहास के बारे में बताया गया। मई दिवस के इतिहास और आज के मज़दूर आंदोलन के समक्ष खड़े ज़रूरी मुद्दों से जुड़े पर्चों का वितरण भी किया गया। शाम को मई दिवस के शहीदों की शान में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें मज़दूरों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम में क्रांतिकारी गीतों की प्रस्तुति और मज़दूर वर्ग के सामने फ़ासीवाद की पोल खोलते नाटक “यह दिल मांगे मोर गुरूजी!” का मंचन भी किया गया। बिगुल मज़दूर दस्ता के सनी ने कहा कि मई दिवस केवल शिकागों के मज़दूरों की कुर्बानी की याददिहानी करने का एक दिन नहीं है बल्कि यह वह ऊर्जा स्त्रोत है जिससे आज के समय में हम अपने संघर्षों के लिए शक्ति सोंख सकते है। शिकागों के मज़दूर सिर्फ अपने आर्थिक हक़ों या राजनितिक हक़ों की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे बल्कि वह समूचे मज़दूर वर्ग के लिए इंसानों के लायक ज़िन्दगी जीने के अधिकार के लिए लड़ रहे थे। उन्होंने शोषण के पूरे तंत्र के खिलाफ़ संघर्ष का बिगुल फूंखा था। उनकी कुर्बानी की वजह से ही दुनियाभर के शासकों को 8 घण्टे के काम की माँग को स्वीकार करना पड़ा था। लेकिन आज इन अधिकारों को भी हमसे छीना जा रहा है। इसीलिए आज बेहद ज़रूरी है कि हम न केवल अपने पुरखों की क़ुरबानी को याद करें बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर संगठित हों और मज़दूरों के शोषण के पूरे ढाँचे को बदलने के लिए संघर्ष करें। बिगुल मज़दूर दस्ता की शिवानी ने आज मज़दूर वर्ग के सामने अपनी मुक्ति के संघर्ष के रास्ते में फ़ासीवाद की चुनौती का सामना करने के लिए एकजुट होने की बात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि फ़ासीवाद ने हर हमेशा रंग, नस्ल, धर्म के आधार पर जनता को बाँट कर मज़दूर वर्ग का निर्ममता से शोषण किया। लेकिन इतिहास हमें यह भी बताता है कि जब-जब मज़दूरों ने अपनी एकता कायम की है तो फ़ासीवाद को मुँहकी खानी पड़ी है। कार्यक्रम के अंत में ‘ लड़ाई जारी है’ फिल्म दिखायी गयी।
अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर लुधियाना में मज़दूर दिवस सम्मेलन का आयोजन
पूँजीवादी लूट के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का संकल्प
लुधियाना के ताजपुर रोड स्थित मज़दूर पुस्तकालय पर टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन व कारखाना मज़दूर यूनियन ने संयुक्त रूप से मज़दूर दिवस सम्मेलन का आयोजन किया। मई दिवस के शहीदों की कुर्बानी व विश्व मज़दूर वर्ग के जुझारू क्रान्तिकारी संघर्ष का प्रतीक लाल झण्डा फहरा कर, ‘मई दिवस के शहीदों को लाल सलाम’, ‘दुनिया के मज़दूरो एक हो’ आदि क्रान्तिकारी गगनभेदी नारे बुलन्द करते हुए मज़दूर शहीदों को याद किया और मज़दूर मुक्ति के उनके संघर्ष को ज़ोरदार ढंग से आगे बढ़ाने का प्रण किया। सांस्कृतिक मंच ‘दस्तक’ के साथियों ने क्रान्तिकारी गीतों-नाटकों का कार्यक्रम पेश किया। इस अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्ता के सुखविन्दर, कारखाना मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष लखविन्दर, नौजवान भारत सभा की बलजीत ने लोगों को सम्बोधित किया। राजविन्दर ने मंच संचालन किया। इस अवसर पर जनचेतना द्वारा क्रान्तिकारी-प्रगतिशील साहित्य की प्रदर्शनी लगायी गयी। अन्त में जी.टी रोड तक पैदल मार्च किया गया। सम्मेलन में लगभग 750 मज़दूर शामिल हुए।
वक्ताओं ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस दुनिया के मज़दूरों को लूट, शोषण, अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर क्रान्तिकारी संघर्ष लड़ने का आह्वान करता है। मज़दूर दिवस बताता है कि मज़दूर वर्ग की मुक्ति खुद मज़दूर वर्ग द्वारा ही होगी। विश्व में कहीं भी मज़दूरों के काम के घण्टों सम्बन्धी कोई कानून नहीं था उस समय अमेरिका के मज़दूरों ने ‘आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, आठ घण्टे मनोरंजन’ के नारे तले सख्त संघर्ष किया। मज़दूर संघर्ष के दमन के बावजूद मज़दूरों की आवाज दबाई नहीं जा सकी। अमेरिका और विश्व के अन्य हिस्सों में आठ घण्टे काम दिहाड़ी का कानून बनाने की माँग पर मज़दूरों का संघर्ष आगे बढ़ा और बड़ी जीतें हासिल कीं। मई दिवस की महान क्रान्तिकारी विरासत मौजूदा अँधेरे समय में मज़दूरों को एकजुट होकर जुझारू संघर्ष लड़ने के लिए प्रेरित कर रही है और रास्ता दिखा रही है।
मज़दूर दिवस सम्मेलन की तैयारी के लिए कारखाना मज़दूर यूनियन व टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन के साथियों की टीमों ने पिछले बीस दिन से लुधियाना शहर के विभिन्न हिस्सों में प्रचार-प्रसार किया था। हजारों पर्चे बाँटे गये व दीवारों पर पोस्टर चिपकाये गये। जगह-जगह नुक्कड़ सभाएँ की गयीं, कारखाना गेटों पर, रिहायशी इलाकों में घर-घर जाकर, मज़दूर दिवस के शहीदों का क्रान्तिकारी पैगाम पहुँचाया गया। कुछ जगहों पर दस्तावेजी फिल्म ‘मई दिवस की अमर कहानी’ भी दिखायी गयी।
मुम्बई में मई दिवस पर जाति-धर्म पर ना बँटकर मज़दूर वर्ग की क्रांतिकारी एकजुटता बनाने का आह्वान
बिगुल मज़दूर दस्ता, मुम्बई ने मई दिवस पर मानखुर्द इलाके में कई सभाएं कीं व हजारों की संख्या में दो पर्चों का वितरण किया। एक पर्चे में मई दिवस का इतिहास और आज इसकी प्रासंगिकता बतायी गयी थी तो दूसरे पर्चे में मज़दूरों को जाति-धर्म के नाम पर आपस में बाँटने की संघ परिवार की साज़िश के प्रति आगाह किया गया था।
नितेश ने मई दिवस की विरासत से मज़दूरों को परिचित करवाया। नन्दन ने कहा कि आजकल मई दिवस पर चुनावबाज़ पार्टियाँ और मालिक ऐसे मज़दूरों को “श्रेष्ठ मज़दूर अवार्ड” देते हैं जो मालिक का मुनाफा बढ़ाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत करते हैं पर यही लोग अपने अधिकार माँगने वाले मज़दूरों का बर्बर दमन करते हैं। आज 93 फीसदी मज़दूर असंगठित हैं और उसके लिए श्रम कानूनों का कोई मतलब नहीं रह गया है। मई दिवस के शहीद स्पाइस और पार्सन्स का संगठन 1886 के समय में मज़दूरों को संगठित करने के लिए तीन भाषाओं में पाँच अख़बार निकालता था। आज हमें भी ऐसे क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बारों को हर मज़दूर तक ले जाना होगा क्योंकि अमीरों की पूँजी से चलने वाले अख़बार मज़दूर वर्ग की बात नहीं करने वाले।
सत्यनारायण ने कहा कि महाराष्ट्र में पहली मई महाराष्ट्र दिवस व मज़दूर दिवस दोनों के रूप में मनाया जाता है क्योंकि महाराष्ट्र को अलग राज्य बनाने के लिए यहां के मेहनतकश वर्ग ने ही बलिदान दिया था पर आज पूरे देश की तरह ही महाराष्ट्र के मज़दूरों, किसानों के हालात बदतर हो रहे हैं। 2015 में महाराष्ट्र में 3228 किसानों ने आत्महत्या की। महाराष्ट्र में इस समय 2 करोड़ से भी ज़्यादा लोग कुपोषण का शिकार हैं और उनकी दैनिक आय 12 रुपये से भी कम है। ऐसे में आज के दिन मई दिवस के शहीदों को याद कर हमें एक बेहतर भविष्य के लिए एकजुट होना होगा।
उद्योगपतियों की सेवा में नित नये कीर्तिमान स्थापित करने में व्यस्त मोदी के संघी साथी जनता को गुमराह करने में लगे हैं ताकि इनका असली चेहरा छुपा रहे। मई दिवस के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि हम मज़दूर फासीवाद को हराने के लिए एकजुट हो जायें।
हरियाणा में मई दिवस के कार्यक्रम
बिगुल मज़दूर दस्ता और नौजवान भारत सभा ने 130वें मई दिवस के अवसर पर हरियाणा के कलायत शहर में नुक्कड़ सभाएँ और पर्चा वितरण करते हुए रैली निकाली। बिगुल मज़दूर दस्ता के बण्टी ने कहा कि मई दिवस मज़दूरों की मुक्ति, संघर्ष और कुर्बानी का त्यौहार है। आज फिर देश-दुनिया में मुनाफाखोर पूँजीपति वर्ग काबिज है। मज़दूरों की लाखों कुर्बानियों की बदौलत मिले अधिकारों को लगातार छीना जा रहा है। रैली के समापन पर बिगुल मज़दूर और नौजवान भारत सभा के सदस्यों ने शपथ ली कि वे मई दिवस की गौरवशाली विरासत को हर मज़दूर तक पहुँचाने का प्रयास करेंगे।
शाम को कैथल के बलराज नगर में सभा व फिल्म शो का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मज़दूरों के गीत ‘इन्सां पैरों पर खड़े हुए’ से हुई। बिगुल के अजय ने बताया कि आज हमें मेहनतकश आबादी को नये सिरे से एकजुट करना होगा। हमें कारखानों से लेकर मज़दूर बस्तियों, गाँव-देहात में इलाकाई यूनियनें बनानी होंगी जिसमें सभी अलग-अलग पेशों के लेकर स्त्री-पुरुष मज़दूरों की सच्ची एकता कायम की जा सके। मेहनतकशों के सामने नारकीय गुलामी, अपमान और बेबसी की जिन्दगी से निजात पाने का मात्र यही एक रास्ता है। पिछली हारों से ज़रूरी सबक लेकर पूँजीवादी व्यवस्था के खात्मे की लम्बी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। इसलिए मेहनतकश साथियों आओ, फौलादी एकता बनायें, देश-दुनिया समाज के बारे में अपनी समझ बढ़ायें, दिमागी गुलामी की जं़जीरों को तोड़ दें और एक-एक अधिकार के लिए लड़ते हुए कदम-ब-कदम आगे बढ़ते जायें। अन्त में ‘लड़ाई जारी है’ फिल्म का प्रदर्शन किया गया।
गोरखपुर में मई दिवस पर शोषण के ख़िलाफ़ फिर एकजुट होने का संकल्प
बिगुल मज़दूर दस्ता, लक्ष्मी साइकिल इंजीनियरिंग वर्कर्स यूनियन टेक्स्टाइल वर्कर्स यूनियन ने 131वें अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर गोरखपुर के बरगदवां औद्योगिक क्षेत्र में जनसभा, जुलूस और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया।
बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं ने कहा कि आज दलाल ट्रेड यूनियनों, चुनावी नौटंकीबाजों द्वारा मई दिवस के कार्यक्रमों को रस्मी बना दिया गया है। इनके प्रभाव में आकर मज़दूर वर्ग भी मई दिवस की क्रान्तिकारी विरासत को भूलता जा रहा है। इनके द्वारा पूरे मज़दूर वर्ग के मुक्ति की लड़ाई को केवल कारखाने के भीतर की स्थितियों में कुछ सुधार लाने जैसे दुअन्नी-चवन्नी की लड़ाइयों तक समेट दिया जाता है। मई दिवस की क्रांतिकारी विरासत हमें मज़दूर वर्ग के महान शिक्षकों की इस शिक्षा की याद दिलाती है कि मज़दूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन पूँजीवाद को क्रान्ति के रास्ते ध्वस्त कर सत्ता अपने हाथ में लेना है, क्योंकि पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूर वर्ग की पूर्ण मुक्ति कभी सम्भव नहीं है। आज मज़दूर आन्दोलन ठहराव की स्थिति से गुजर रहा है। ऐसे में ज़रूरी है कि पूँजीवादी प्रचारतंत्र द्वारा फैलाये झूठ का जवाब दिया जाये और पूँजीवाद की नयी रणनीतियों पर नियमित चर्चाएँ आयोजित की जायें तथा मज़दूर वर्ग की एक नयी क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने की तैयारी की जाये।
बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं ने कहा कि आज देशभक्ति और देशद्रोह का शोर मचा हुआ है। आर.एस.एस. और भाजपा जिन्होंने आज़ादी की पूरी लड़ाई के दौरान अंग्रेजों के ख़िलाफ़ एक धेला तक नहीं उठाया वही आज देशभक्ति का सर्टिफिकेट बाँटते घूम रहे हैं। मज़दूर वर्ग जानता है कि देश की आम जनता को, उनके आपसी भाईचारे को, देश के प्राकृतिक संसाधनों को आज ख़तरा किनसे है?
कार्यक्रम के दूसरे दिन गीताप्रेस के मज़दूरों के बीच पर्चा वितरण किया गया। गौरतलब है कि पिछले दिनों गीताप्रेस के मज़दूरों ने शोषण के ख़िलाफ़ मैनेजमेंट के विरुद्ध आन्दोलन किया था। लेकिन कुछ दलाल ट्रेड यूनियनों और चुनावी पार्टियों के नेताओं के पीछे चलकर वह आन्दोलन अपने मुक़ाम तक नहीं पहुँच सका और आज आन्दोलन के नेताओं के घुटनाटेकू रवैये के चलते ठहराव का शिकार है। तीसरे दिन गोरखपुर के एक अन्य औद्योगिक क्षेत्र गीडा (गोरखपुर इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी) के मज़दूरों के बीच नुक्कड़ सभाओं एवं पर्चा वितरण का आयोजन किया गया।
दिल्ली के बादली-बवाना इलाक़े में मई दिवस पर दो दिन का मज़दूर जागरण अभियान
मई दिवस के अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्ता, स्त्री मज़दूर संगठन और नौजवान भारत सभा की उत्तर-पश्चिमी दिल्ली इकाई द्वारा भोरगढ़, होलम्बी के मेट्रो विहार फेस-2, बवाना जेजे कालोनी, रोहिणी के सेक्टर 27 की बस्ती व बादली औद्योगिक क्षेत्रा के राजा विहार में दो दिन साइकिल मार्च निकाला गया और नुक्कड़ सभाएँ करते हुए व्यापक पर्चा वितरण किया गया।
नुक्कड़ सभाओं में बिगुल मज़दूर दस्ता के अपूर्व ने कहा कि आज से 130 साल पहले शिकागो के मज़दूरों ने 8 घण्टे काम, 8 घण्टे आराम और 8 घण्टे मनोरंजन का नारा दिया और इस अधिकार को हासिल करने की क़ीमत तमाम मज़दूरों को अपने ख़ून से चुकानी पड़ी, लेकिन आज फिर इस देश के मेहनतकश उन्हीं गुलामी के हालात में जीने के लिए मजबूर हैं। अगर हम ये उम्मीद करते हैं कि शासक वर्ग मज़दूरों को अपनी इच्छा से तमाम अधिकार दे देंगे तो यह हमारी सबसे बड़ी भूल है। मज़दूरों ने जो भी सहूलियतें और अधिकार हासिल किये हैं, उनके लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा है।
स्त्री मज़दूर संगठन की विमला सक्करवाल ने कहा कि आज मज़दूरों की वर्ग एकजुटता को तोड़ने के लिए तमाम फासिस्ट संगठन मज़दूर बस्तियों में काम कर रहे हैं और उनके बीच धर्म-जाति, क्षेत्रवाद के संकीर्ण मुद्दों को भड़का रहे हैं, मज़दूरों के इन सबसे बड़े दुश्मनों की असलियत को पहचानना होगा। मज़दूर वर्ग को इन इन्सानियत के दुश्मनों से लोहे के हाथों से निपटना होगा, तभी जाकर इस देश को फासिस्ट बर्बरता से बचाया जा सकता है।
नौजवान भारत सभा के शिवम ने कहा कि आज पूरे देश को पूँजीपतियों का कारख़ाना बनाने की कोशिश की जा रही है और मज़दूरों के तमाम हक़ों को क़ानूनी तौर पर ख़त्म किया जा रहा है। मज़दूरों की वर्ग एकजुटता को तोड़ने के लिए फासिस्ट संगठन लगातार साम्प्रदायिक जुनून पैदा कर रहे हैं। फासिस्टों को रोकने के लिए संसदीय सुअरबाड़े में लोट लगाने वाली तमाम पार्टियाँ और संशोधनवादी केवल गत्ते की तलवारे भाँज रहे हैं। इन फासिस्ट बर्बरों को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए आमने-सामने की लड़ाई की तैयारी करनी होगी।
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