फ़ि‍लिस्तीन के समर्थन में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कार्यक्रम

 बिगुल संवाददाता

गुजरे 23 नवंबर को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में ‘फ़ि‍लिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ ने ‘रेज़ोनेंस’ सांस्कृतिक समूह के साथ मिलकर फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता जताने के लिए एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। एक दिवसीय इस कार्यक्रम दो सत्रों में संपन्न हुआ। पहले सत्र में ‘जायनवाद और फ़ि‍लिस्तीनी प्रतिरोध तथा मध्य-पूर्व में साम्राज्यवादी साज़ि‍शें’ विषय पर एक विचार चर्चा आयोजित की गई जिसमें प्रो. इरफ़ान हबीब, प्रो. ए आर वीजापुर, डा. मोहिबुल हक़ एवं आनन्द सिंह ने अपने वक्तव्य रखे।
विचार गोष्ठी में बोलते हुए प्रख्यात इतिहासकार प्रो. इरफ़ान हबीब ने इस बात पर खुशी ज़ाहिर की कि ए.एम.यू में लंबे अरसे के बाद फ़ि‍लिस्तीन के मसले पर कोई कार्यक्रम आयोजित हो रहा है। अपने वक्तव्य में प्रो. हबीब ने समूचे इज़रायल-फ़ि‍लिस्तीन विवाद की ऐतिहासिक रूपरेखा प्रस्तुत की एवं बताया कि किस प्रकार जायनवादियों ने पश्चिमी साम्राज्यवादियों की मदद से फ़ि‍लिस्तीन की ज़मीन हड़पी। उन्होंने स्पष्ट किया कि हालाँकि यह बात सच है कि आज जिसे फ़ि‍लिस्तीन कहा जाता है वहाँ प्राचीन काल में यहूदी आबादी रहती थी और उस आबादी को संभवत: दमन की वजह से फ़ि‍लिस्तीन छोड़ना पड़ा, परन्तु प्राचीन काल में यहूदियों का दमन रोम साम्राज्य के दौर में हुआ था और उस समय इस्लाम का उदय भी नहीं हुआ था। इस प्रकार यहूदियों के फ़ि‍लिस्तीन छोड़ने के लिए अरबों की कोई भूमिका नहीं थी। अरबों ने जब फ़ि‍लिस्तीन पर फ़तह की तो वहाँ की अधिकांश आबादी यहूदी नहीं बल्कि ईसाई थी। अरबों के शासन के दौरान यहूदियों के दमन का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। इसलिए यह कहना पूरी तरह से ग़लत है कि यहूदी एवं मुस्लिम सदियों से लड़ते आये हैं। इज़रायल और फ़ि‍लिस्तीन के मौजूदा विवाद के इतिहास की चर्चा करते हुए प्रो. हबीब ने बताया कि उन्नीसवीं सदी के अन्त में ज़ायनवाद की विचारधारा के उदय के बाद से साम्राज्यवादियों की मदद से यहूदियों को फ़ि‍लिस्तीन में बसाने की शुरुआत होती है। उन्‍होंने 1917 के प्रसिद्ध बैलफोर घोषणा का हवाला दिया जिसमें पहली बार फ़ि‍लिस्तीन में यहूदियों के देश बनाने की बात कही गई।
इस विवाद में भारत की भूमिका का ज़ि‍क्र करते हुए प्रो. हबीब ने कहा कि हालाँकि ऐतिहासिक रूप से भारत फ़िलिस्तीन का साथ देता आया है, परन्तु हाल के दशकों में भारत की विदेश नीति इज़रायल की ओर ज़्यादा झुकती नज़र आ रही है। उन्होंने कहा कि भारत को फ़ि‍लिस्तीन का पूरा साथ देना चाहिए और इज़रायल से अपने रिश्‍ते ख़त्म करने चाहिए। उन्होंने नरेन्‍द्र मोदी की प्रस्तावित इज़रायल यात्रा पर भी चिन्ता जाहिर की।
‘फ़ि‍लिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ के प्रतिनिधि आनन्द सिंह ने कहा कि पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों ने शुरुआत से ही जायनवादियों को फ़िलिस्तीन की ज़मीन हड़पने एवं फ़िलिस्तीनियों की क़ौम को नेस्तनाबूद करने में मदद की। उन्होंने बताया कि फ़ि‍लिस्तीन और मध्यपूर्व के क्षेत्र की भूराजनीतिक एवं सामरिक स्थिति एवं तेल की खोज के बाद इस इलाके में तेल के प्रचुर भण्डार की वजह से पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा ज़ायनवाद के प्रोजेक्ट का पुरज़ोर समर्थन किया ताकि इस क्षेत्र में ऐसी ताक़त उभरे जो साम्राज्यवादियों के हित में काम करे। मध्यपूर्व के क्षेत्र के मौजूदा हालात का ज़िक्र करते हुए साम्राज्यवाद के अन्तरविरोध इस क्षेत्र में सबसे घनीभूत रूप में दिख रहे हैं जिसकी वजह से भयंकर हिंसा और अस्थिरता का माहौल इस क़दर बना हुआ है कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह पूरा इलाका बारूद की ढेर पर टिका हुआ है। उन्होंने कहा कि हालाँकि भारतीय हुक़्मरान फ़िलिस्तीनी अवाम के संघर्ष से मुँह मोड़ते नज़र आ रहे हैं, लेकिन हिन्‍दुस्तान की अवाम को फ़ि‍लिस्तीन की अवाम के जुझारू संघर्ष का पूरा साथ देना चाहिए। उन्होंने दुनिया भर में चल रहे बहिष्कार, विनिवेश एवं प्रतिबन्ध (बीडीएस) आन्दोलन के बारे में तथा नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित इज़रायल यात्रा को रद्द करने की माँग को लेकर चलाये जा रहे ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान के बारे में भी श्रोताओं को बताया और उनसे समर्थन की अपील की।
एमयू के राजनीतिशास्त्र विभाग के डा. मोहिबुल हक़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि पश्चिमी साम्राज्यवादी ताक़तें अपनी तमाम संस्थाओं के ज़रिये दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे प्रतिरोध आन्दोलनों का अपराधीकरण करके उनको बदनाम देने का काम कर रही हैं। फ़ि‍लिस्तीन का मुद्दा इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है जहाँ लोगों को प्रतिरोध के ऊपर आतंकवाद का ठप्पा लगाकर उसको कमज़ोर किया जा रहा है। एमयू के राजनीतिशास्त्र विभाग के प्रो. वीजापुर ने भी फ़ि‍लिस्तीन के लोगों के प्रतिरोध के प्रति अपना समर्थन जताया एवं कार्यक्रम के आयोजन के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में फ़ि‍लिस्तीनी कविताओं का पाठ किया गया एवं ‘रेज़ोनेंस’ की टीम द्वारा फ़ि‍लिस्तीनी प्रतिरोध को समर्पित कुछ गीतों की प्रस्तुति की गई। कार्यक्रम के अन्त में फ़िलिस्तीनी संघर्ष पर केन्द्रित डॉक्युमेंटरी फिल्म ‘फाइव ब्रोकेन कैमराज़’ दिखाई गई। कार्यक्रम का संचालन ‘फ़ि‍लिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ से जुड़े अपूर्व मालवीय ने किया।

प्रो. इरफ़ान हबीब के भाषण के वीडियो का लिंक: https://www.youtube.com/watch?v=hL8aleK7sBM
नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित इज़रायल यात्रा को रद्द करने की माँग करने वाली याचिका का लिंक: https://www.change.org/p/prime-minister-of-india-cancel-the-proposed-visit-of-indian-prime-minister-to-israel-and-total-boycott-of-israel

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2015

Aligarh, 23 November। ‘Indian People in Solidarity with Palestine’ organised a Palestine solidarity programme today at…

Posted by Indian People in Solidarity with Palestine on Tuesday, November 24, 2015


 

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