Tag Archives: नवगीत

उत्तरी कोरिया के मिसाइल परीक्षण और तीखी होती अन्तर-साम्राज्यवादी कलह

कोरिया का पिछली एक सदी का इतिहास और इसका वर्तमान इस बात की गवाही भरता है कि कैसे अमेरिका छोटे देशों को अपने सैन्य अड्डे बनाकर विरोधियों को घेरने के लिए इस्तेमाल करता है और उनकी आर्थिक लूट करता है। जो देश इसकी इस “परियोजना” में शामिल नहीं होता, उसे “शैतान देश” घोषित करके अलग-थलग करना, व्यापारिक पाबन्दियाँ लगाकर ग़रीबी में धकेलना इसका मुख्य हथियार है। और अगर कोई यह भी झेल जाता है तो सीधा फ़ौजी हमला। सीरिया, इराक़, लीबिया, अफ़ग़ानिस्तान… साम्राज्यवादी चालों का शिकार बनने वालों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है।

इज़रायली बर्बरता की कहानी – एक डाक्टर की ज़ुबानी

डा. गिल्बर्ट का फिलिस्तीनी लोगों के मुक्ति-संघर्ष से पुराना नाता रहा है। वे 1970 से फिलिस्तीन तथा लेबनान में काम रहे हैं। वे ऐसे डाक्टर हैं जिनके लिए मानवता की सेवा तथा ज़ुल्म के ख़िलाफ़ संघर्षरत लोगों के साथ होकर लड़ने में मेडिकल विज्ञान की सार्थकता है, जिनके लिए मेडिकल विज्ञान जरूरत से ज़्यादा खाने और कोई काम न करने वाले परजीवियों के मोटापे को कम करने का विज्ञान नहीं है, जिनके लिए मेडिकल विज्ञान का ज्ञान पूँजीपतियों के खोले पांच-सितारा अस्पतालों में बेचने की चीज नहीं है और जिनके मेडिकल विज्ञान का ज्ञान समूची मानवता की धरोहर है न कि मुठ्ठीभर अमीरों के घर की रखैल। वे आज के समय में डा. नार्मन बेथ्यून, डा. कोटनिस, डा. जोशुआ हॉर्न जैसे डाक्टरों की परम्परा को बनाए हुए हैं जिन्होंने वक्त आने पर लोगों का पक्ष चुना था। वे और उनके साथ काम करने अन्य कई डाक्टर तथा कर्मी इस बात का उदाहरण हैं कि आज भी ऐसे डाक्टर मौजूद हैं, भले ही अभी इनकी संख्या कम हो, जो बड़े-बड़े पैकेजों, आरामदायक जीवन को छोड़कर आम लोगों और उनके सुख-दुःख से अपने जीवन को लेते हैं और इस लिए सही मायने में डाक्टर कहलवाने के योग्य हैं।

‘लव-जिहाद’ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जनसंख्या विज्ञान

एक धार्मिक समुदाय के बीच किसी दूसरे धार्मिक समुदाय के बारे में झूठा प्रचार करना फ़ासीवादियों तथा धार्मिक-दक्षिणपंथी शक्तियों का पुराना हथकण्डा रहा है। फिर यह कैसे हो सकता था कि इस मामले में भारत के संघी-मार्का फ़ासीवादी पीछे रह जायेँ। भाजपा के 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए पीएम उमीद्वार नरेन्द्र मोदी ने 2002 के गुजरात दंगों के बाद वहाँ हुए चुनाव के दौरान कहा था – “हम (मतलब हिन्दू) दो हमारे दो, वो (मतलब मुस्लिम) पाँच उनके पचीस।” इसके बाद 2004 में विश्व हिन्दू परिष्द के अशोक सिंघल ने हिन्दुओं के आगे परिवार नियोजन छोड़ने का ढोल पीटा। अशोक सिंघल यह तुर्रा बहुत पहले से छोड़ते आ रहे हैं, और भाजपाई सरकार वाले राज्यों में तो वह सरकारी मंच से यह मसला उछालते रहते हैं। पिछले 3-4 सालों में संघियों ने अपने इसी जनसंख्या विज्ञान को फिर से दोहराना शुरू कर दिया है, लेकिन अब वे इसे नए रंग में लपेट कर लाए हैं। पहले संघी संगठन मुसलमानों द्वारा अपनी जनसंख्या बढ़ाने का हौवा ही खड़ा करते थे, अब उन्होंने ने इसमें “लव-जिहाद” का डर भी जोड़ दिया है। संघियों के अनुसार मुसलमानों ने (यहाँ संघी मुस्लिम कट्ट्टरपंथी संगठन कहना भी वाजिब नहीं मानते क्योंकि संघियों के लिए सभी मुस्लिम लोग मुस्लिम कट्ट्टरपंथी संगठनों के सदस्य हैं) हिन्दू नवयुवतियों को प्यार के जाल में फँसाकर अपनी आबादी बढ़ाने के लिए मशीनों की तरह इस्तेमाल करने के लिए “लव-जिहाद” नामक “गुप्त” संगठित अभियान छेड़ा हुआ है।

राष्ट्रपति मोर्सी सत्ता से किनारे, मिस्र एक बार फिर से चौराहे पर

इस तरह एक वार फिर, मिस्र की घटनाएँ यह साफ कर रही हैं कि पूँजीपति वर्ग की सत्ता का विकल्‍प मज़दूर वर्ग की सत्ता ही है और पूँजीवाद का विकल्‍प आज भी समाजवाद है। और किसी भी तरीके से पूँजीवाद का विरोध हमें ज़्यादा से ज़्यादा किसी चौराहे पर लाकर ही छोड़ सकता है, रास्ता नहीं दिखा सकता। भविष्य का रास्ता मज़दूर वर्ग की विचारधारा मार्क्सवाद और मार्क्सवादी उसूलों पर गढ़ी तथा जनसंघर्षों-आंदोलनों में तपी-बढ़ी मज़दूर वर्ग की क्रांतिकारी पार्टी ही दिखा सकती है। मगर तब भी मिस्र की ताजा घटनाओं का महत्त्व कम नहीं हो जाता, इनसे यह एक बार फिर साबित होता है कि जनता अनंत ऊर्जा का स्रोत है, जनता इतिहास का बहाव मोड़ सकती है, मोड़ती रही है और मोड़ती रहेगी। मिस्र का आगे का रास्ता फिलहाल अँधेरे में डूबा दिखाई दे रहा है, लेकिन यह अकेले मिस्र की होनी नहीं है, तमाम दुनिया में अवाम रास्तों की तलाश कर रहा है।