राष्ट्रीय परीक्षा एनईईटी की वेदी पर एक मज़दूर की बेटी की बलि!
अनीता जैसी होनहार विद्यार्थी की आत्महत्या से आहत हर इंसाफ़पसन्द व्यक्ति को व्यवस्था में मौजूद इस भेदभाव को अच्छी तरह समझने की कोशिश करना चाहिए, क्योंकि यह हार उस बच्ची की नहीं है जो केवल एक परीक्षा को पार नहीं कर पायी, पर उन सबकी है जो इस व्यवस्था में मौजूद गै़र-बराबरी को ढँकते फिरते हैं। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर पूरी व्यवस्था में व्याप्त वर्ग आधारित गै़र-बराबरी को उजागर कर दिया है। शिक्षा से ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है, ऐसा कहने वाले ज्ञानियों के मुँह पर भी यह एक तमाचा है। जिस शिक्षा की वे वाहवाही करते हैं, वह तो प्राइवेट स्कूल/कॉलेज/कोचिंग इंस्टिट्यूट द्वारा बिकाऊ बन चुकी है और इस देश की अधिकांशतः मेहनतकश जनता की पहुँच से बहुत दूर जा चुकी है।