चाय बेचने की दुहाई देकर देश बेचने के मंसूबे
केवल किसी की व्यक्तिगत पृष्ठभूमि ग़रीब या मेहनतकश का होने से कुछ नहीं होता। बाबरी मस्जिद ध्वंस करने वाली उन्मादी भीड़ में और गुजरात के दंगाइयों में बहुत सारी लम्पट और धर्मान्ध सर्वहारा-अर्धसर्वहारा आबादी भी शामिल थी। दिल्ली गैंगरेप के सभी आरोपी मेहनतकश पृष्ठभूमि के थे। भारत की और दुनिया की बुर्जुआ राजनीति में पहले भी बहुतेरे नेता एकदम सड़क से उठकर आगे बढ़े थे, पर घोर घाघ बुर्जुआ थे। कई कांग्रेसी नेता भी ऐसे थे। चाय बेचने वाला यदि प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी है और इतिहास-भूगोल-दर्शन-सामान्य ज्ञान – सबकी टाँग तोड़ता है तो एक बुर्जुआ नागरिक समाज का सदस्य भी उसका मज़ाक उड़ाते हुए कह सकता है कि वह चाय ही बेचे, राजनीति न करे। चाय बेचने वाला यदि एक फासिस्ट राजनीति का अगुआ है तो कम्युनिस्ट तो और अधिक घृणा से उसका मज़ाक उड़ायेगा। यह सभी चाय बेचने वालों का मज़ाक नहीं है, बल्कि उनके हितों से विश्वासघात करने वाले लोकरंजक नौटंकीबाज़ का मज़ाक है।