सिख दंगों के दोषियों को सज़ा नहीं दिला सकेगी कोई भी सरकार – जाँच के ढोंग पर ढोंग होते रहेंगे
हो सकता है अब फिर से नवम्बर 84 के सिख क़त्लेआम के इन मुख्य दोषियों पर मुक़दमा-मुक़दमा का खेल खेला जाये। लेकिन इससे इनका कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है। चाहे गुजरात हो, चाहे बाबरी मस्जिद गिराया जाना और बाद में मुसलमानों का क़त्लेआम हो और चाहे नवम्बर ’84, सब जगह एक ही हाल है। कहीं भी लोगों को न तो इंसाफ़ मिला है और न ही मिलने की कोई उम्मीद है। बात सिर्फ़ दंगों या किसी एक सम्प्रदाय के संगठित क़त्लेआम की नहीं है। देश के करोड़ों मेहनतकश लोगों के लिए कहीं भी किसी भी मामले में कोई इंसाफ़ नहीं है। दरअसल ये अदालतें, जेल, थाने, संसद, विधानसभाएँ, लोगों के इंसाफ़ के लिए नहीं बल्कि उनके दमन के साधन हैं। ये करोड़ों मेहनतकशों के ख़ून-पसीने की कमाई को बड़े पूँजीपतियों, भूमिपतियों, साम्राज्यवादियों द्वारा खुलेआम हड़प लिये जाने को सुनिश्चित करने के साधन हैं।