पाँच राज्यों में एक बार फिर विकल्पहीनता का चुनाव : मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र पक्ष के क्रान्तिकारी प्रतिनिधित्व का सवाल
फासीवादी ताक़तों का ख़तरा किसी उदार पूँजीवादी पार्टी के जरिये नहीं दूर हो सकता है, क्योंकि वह उदार पूँजीवादी पार्टियों के शासन के दौर में पैदा अनिश्चितता, अराजकता और असुरक्षा के कारण ही पैदा होता है। इसलिए हम इस या उस पूँजीवादी पार्टी के ज़रिये तात्कालिक राहत की भी बहुत ज़्यादा उम्मीद न ही करें तो बेहतर होगा। वास्तव में, अब तात्कालिक तौर पर भी मज़दूर वर्ग के लिए यह ज़रूरी बन गया है कि वह स्वतन्त्र तौर पर अपने राजनीतिक पक्ष को पूँजीवादी चुनावों के क्षेत्र में प्रस्तुत करे और अपने क्रान्तिकारी रूपान्तरण की लम्बी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए इन चुनावों में रणकौशल के तौर पर भागीदारी करे। इसके बिना भारत में मज़दूर वर्ग का क्रान्तिकारी आन्दोलन ज़्यादा आगे नहीं जा पायेगा।