पूँजीपतियों की सेवा में एक और बजट
इस बजट में जहाँ अमीरों के लिए राहत है वहीं ग़रीबों के लिए आफ़त है। यह अमीरों को और अमीर बनाने वाला और ग़रीबों को और अधिक निचोड़ने वाला बजट है। सरकार की ऐसी नीतियाँ समाज के भीतर वर्ग ध्रुवीकरण को लगातार तीख़ा कर रही हैं जिसके नतीजे के तौर पर सामाजिक हालात लगातार विस्फोटक होते जा रहे हैं। बढ़ती ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई, अन्याय, अपमान के विरुद्ध मेहनतकशों के ग़ुस्से के सम्भावित विस्फोटों से भी देश के हुक्मरान चिन्तित हैं। ऐसी हर परिस्थिति से निपटने के लिए भी वे पहले से ही तैयारी कर रहे हैं। यही मुख्य वजह है कि इस बजट में रक्षा बजट में भारी बढ़ोत्तरी की गयी है और भविष्य में और भी बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। 2012-13 के रक्षा बजट के लिए 1.93 लाख करोड़ की रक़म रखी गयी है जो कि कुल घरेलू उत्पादन के 1.90 प्रतिशत के क़रीब है। निकट भविष्य में सरकार की योजना इसे बढ़ाकर ढाई लाख करोड़ करने की है। रक्षा बजट में इस बड़ी बढ़ोत्तरी के लिए चीन से ख़तरे का बहाना बनाया गया है। लेकिन इस देश के लुटेरे हुक्मरानों को वास्तविक ख़तरा बाहरी नहीं है बल्कि छह दशकों से लूट-दमन की मार झेलते आ रहे मेहनतकशों से है, जिनके सब्र का प्याला लगातार भरता जा रहा है। इस देश के हुक्मरानों को दिन-रात इस देश के करोड़ों मेहनतकशों के इस दमनकारी-अन्यायपूर्ण व्यवस्था के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने का डर सताता रहता है। उनका यह सम्भावित डर कब एक हक़ीक़त बनेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।