विरोध और जनान्दोलनों से बौखलाई सरकार और संघ परिवार का नया पैंतरा
”देशभक्ति” के गुबार में आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी के ज़रूरी मुद्दों को ढँक देने की कोशिश
अन्धाधुन्ध झूठे प्रचार के ज़रिये प्रगतिशील, जनवादी और जनपक्षधर ताक़तों को देशद्रोही करार देकर अवाम का मुँह बन्द करने की साज़िश को समझो!
जब मोदी सरकार जनता के बढ़ते असन्तोष से घिरी हुई थी ठीक उसी समय लोगों का ध्यान भटकाने के लिए एक घटना को ज़बर्दस्ती तूल देकर देशभर में अन्धराष्ट्रवाद का उन्माद पैदा करना शुरू कर दिया गया है। एक विश्वविद्यालय में हुए छोटे से कार्यक्रम में कुछ अराजक तत्वों ने, जिनमें से ज़्यादातर विश्वविद्यालय के छात्र भी नहीं थे, कुछ देश-विरोधी नारे लगाये। भाजपा और संघ परिवार को जैसे इसी मौक़े की तलाश थी। पठानकोट जैसे आतंकवादी हमले के समय अपनी छीछालेदर करवाने वाली सरकार आनन-फ़ानन में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को ‘’राष्ट्रविरोधियों का गढ़’’ साबित करने और वहाँ के तमाम छात्रों को ‘’देशद्रोही’’ बताने में जुट गयी। छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ़्तार करके उन पर देशद्रोह का फ़र्ज़ी मुक़दमा लगा दिया गया। लड़कियों तक के हॉस्टलों में घुस-घुसकर पुलिस ने छात्र-छात्राओं के साथ बदसलूकी की, गिरफ़्तारियाँ कीं। कन्हैया कुमार को अदालत में पेश करते समय भाजपा विधायक की अगुवाई में संघी वकीलों और गुंडों ने पत्रकारों, जेएनयू के शिक्षकों और छात्रों पर कोर्ट के भीतर हमला किया, उन्हें गिराकर पीटा, कपड़े फाड़े, महिलाओं के साथ बदसलूकी की। यह सब योजनाबद्ध था। लगातार संघी एजेंट की तरह काम कर रही दिल्ली पुलिस तमाशाई बनी रही। इस घटना के चौतरफा विरोध और दुनियाभर में थू-थू के बावजूद एक ही दिन कन्हैया कुमार की दूसरी पेशी के दिन एक बार फिर वही घटना दोहराई गयी। घटना की अगुवाई करने वाले विधायक और वकीलों के अनेक वीडियो और तस्वीरें मौजूद हैं फिर भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। उल्टे देश भर में जगह-जगह संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ए.बी.वी.पी.) ने छात्रों और नागरिकों के विरोध प्रदर्शनों पर हमले करना शुरू कर दिया है।
अब यह बात बिल्कुल साफ हो चुकी है कि लम्बे-चौड़े वादे करके सत्ता में आयी मोदी सरकार की नीतियों और नाकामियों से नाराज़ जनता को ध्यान भटकाने और देश के कोने-कोने में इसके विरुद्ध उठ रही आवाज़ों को दबाने के लिए भाजपा सरकार और उसके आका संघी गिरोह ने ‘’देशद्रोह’’ के नाम पर लोगों को भड़काने की नयी योजना पर काम शुरू कर दिया है। कारपोरेट घरानों के मालिकाने वाले तमाम टीवी चैनल और उनके बिके हुए पत्रकार इस गन्दी मुहिम में उनके ढिंढोरची बने हुए हैं।
लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि देश में इस समय जो लोग देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के ठेकेदार बने हुए हैं, ये वही लोग हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में कोई हिस्सा नहीं लिया था! ये वही लोग हैं जिन्होंने अमर शहीद भगतसिंह और उन जैसे तमा अनेक आज़ादी के मतवालों के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों के लिए मुखबिरी की थी! ये वही लोग हैं जो हिटलर और मुसोलिनी को अपना आदर्श मानते थे और आज़ादी के पहले ब्रिटिश रानी को सलामी दिया करते थे! ये कब से देशभक्ति के ठेकेदार बन बैठे? सत्ताधारी पार्टी और संघ परिवार के ये लोग आज देश को धर्म और जाति के नाम पर तोड़ रहे हैं और साम्प्रदायिकता की लहर पर सवार होकर सत्ता में पहुँच गये हैं। इन्होंने देशभक्ति को सरकार-भक्ति से जोड़ दिया है। जो भी सरकार से अलग सोचता है, उसकी नीति की आलोचना करता है, जो भी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाता है उसे तुरन्त ही देशद्रोही और राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाता है। अम्बानियों और अदानियों के टुकड़ों पर पलने वाला कारपोरेट मीडिया भी इन तथाकथित ‘’देशभक्तों’’ के सुर में सुर मिलाता है और अपने स्टूडियो में ही मुकदमा चलाकर फैसला सुना डालता है!
फासीवाद की आहट अब हमारे दरवाज़ों पर सुनायी दे रही है। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के गुण्डों ने अदालत के कमरे में घुसकर पत्रकारों, शिक्षकों और छात्रों के साथ मारपीट, गाली-गलौच, बदसलूकी की और जिस तरह से उन्हें सरकार का खुला समर्थन मिला, उसने यह सिद्ध कर दिया है कि देश में फासीवादी उभार चरम पर जा रहा है। अगर अभी से इनका एकजुट और पुरज़ोर विरोध नहीं किया गया तो कल देश का हरेक इंसाफ़पसन्द नागरिक इन लम्पट फासीवादी गुण्डा वाहिनियों का निशाना बनने वाला है। जब संघी गुण्डों को सड़कों पर इस कदर उत्पात मचाने की पूरी छूट दी जाती है, जब भाजपा का एक विधायक सड़कों पर एक आम गुण्डे की तरह छात्रों पर अपने झुण्ड के साथ हमला कर देता है, तो क्या संविधान, कानून-व्यवस्था की बात करना मज़ाक नहीं लगता? कल को किसी भी नाइंसाफ़ी का विरोध करने वाले व्यक्ति पर ‘’देशद्रोही’’ का ठप्पा लगाकर उसे निशाना बनाया जा सकता है। हिटलर के जर्मनी और मुसोलिनी के इटली में ऐसा ही हुआ था जब क़ानून का शासन ख़त्म हो गया था और इसी प्रकार के देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के ठेकेदार सड़कों पर अपनी गुण्डागर्दी चला रहे थे। ऐसे समय में, ज़रूरी है कि भावनाओं में बहने के बजाय ठण्डे दिमाग़ से कुछ बातों पर सोचा जाये।
अब यह साफ़ हो चुका है कि जेएनयू में भारत-विरोधी नारे लगाने वाले लोग कुछ अराजकतावादी तत्व थे जिनमें से अधिकांश जेएनयू के छात्र भी नहीं थे। वास्तविक आरोपियों को तो पुलिस अभी तक गिरफ़्तार भी नहीं कर पायी है लेकिन एक बेगुनाह छात्र कन्हैया कुमार को गिरफ़्तार कर लिया है। इसके अलावा, कुछ अन्य छात्रों पर भी फ़र्ज़ी मुकदमे डाल दिये गये हैं। क्या आप जानते हैं कि इन्हें क्यों निशाना बनाया गया है? ये छात्र वे ही हैं जो पिछले दिनों मज़दूरों के शोषण, महँगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे हैं। ये वे ही छात्र हैं जिन्होंने मोदी सरकार की छात्र-विरोधी, मज़दूर-विरोधी और ग़रीब-विरोधी नीतियों का विरोध किया था! ऐसे में, मोदी सरकार कुछ अराजकतावादी तत्वों की हरक़त का बहाना बनाकर इन बेगुनाह छात्रों और पूरे जेएनयू को निशाना बना रही है। ज़रा सोचिये कि क्या हो रहा है! मायापुरी में एक मज़दूर की काम के दौरान मौत के बाद जब मज़दूरों ने इंसाफ़ और मुआवज़े की माँग की तो उनपर भी पुलिस ने लाठियाँ बरसायीं और उनके नेताओं पर भी देश-विरोधी होने का आरोप लगा दिया। ऐसा ही पुणे में एफटीआईआई के छात्रों के साथ भी किया गया था, और ऐसा ही दिल्ली के हरेक मेहनतकश और मज़दूर के साथ किया जाता है जब वह अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाता है।
दूसरी बात जिस पर संजीदगी के साथ सोचने की ज़रूरत है, वह यह है कि देशद्रोह या राष्ट्रद्रोह की परिभाषा देश के संविधान में दी गयी है और सरकार से लेकर सभी पार्टियाँ उस पर अमल करने को बाध्य हैं। इस परिभाषा के मुताबिक कोई भी व्यक्ति सरकार की नीति की आलोचना कर सकता है, उसका शान्तिपूर्ण विरोध कर सकता है, किसी कौम के हक़ की बात कर सकता है, लेकिन अगर वह सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह या हिंसा करने में लिप्त या हिंसा के लिए भड़काने में लिप्त होता है, तब उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा सकता है। देश का उच्चतम न्यायालय भी कई बार अपने फ़ैसलों में यह बात साफ़ कर चुका है। ऐसे में, धार्मिक कट्टरपंथियों और फासीवादियों को ये हक़ किसने दिया कि वे किसी को भी देशद्रोही या राष्ट्रद्रोही करार दे दें? और ख़ासकर तब जब कि देशभक्ति का सर्टिफिकेट बाँटने वाले ये लोग वही हैं जो कि आज़ादी के आन्दोलन के ग़द्दार थे और जिन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कभी एक ढेला तक नहीं चलाया। उल्टे, इनके नेताओं ने अंग्रेज़ों के लिए मुखबिरी करने, माफ़ीनामे लिखने और सलामी देने का काम किया था? क्या आरएसएस का कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि 1925 में उसकी स्थापना से लेकर 1947 में आज़ादी तक आरएसएस क्या कर रही थी? जिस समय पूरा देश भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु की फाँसी को लेकर सड़कों पर था, ठीक उसी समय, मार्च 1931 के तीसरे सप्ताह में, संघ के संस्थापकों में से एक मुंजे, इटली के तानाशाह मुसोलिनी से फासिस्ट संगठन खड़ा करने की तरकीबें सीखने इटली पहुँचे हुए थे।
मेहनतकश साथियो! खुद सोचिये, ज़रा ‘’राष्ट्रभक्त’’ और ‘’राष्ट्रद्रोही’’ के प्रमाणपत्र बाँटने वालों द्वारा फैलाये जा रहे पागलपनसे ऊपर उठ कर सोचिये। अगर आज बेगुनाह पत्रकार, नागरिक, मज़दूर, छात्र-छात्राएँ, शिक्षक अदालत के कमरे से लेकर बस्तियों तक इन कट्टरपंथियों का निशाना बन रहे हैं, तो कल अपने हक़ की आवाज़ उठाने पर क्या ये आपको निशाना नहीं बनायेंगे?
तीसरी बात जिसे हम सबको सोचना और समझना होगा, वह यह है कि देश कोई कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता। देश उसमें रहने वाले आम मेहनतकश अवाम से बनता है। जो मोदी सरकार और संघ परिवार आज महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, शोषण और उत्पीड़न देश के करोड़ों-करोड़ मेहनतकशों, आम लोगों, छात्रों, युवाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों, स्त्रियों और बुजुर्गों पर थोप रहा है, क्या वह देशभक्त है? और जो इस शोषण, उत्पीड़न के ख़िलाप़फ आवाज़ उठाये वह देशद्रोही है? हालत तो आज ऐसी ही बना दी गयी है! जो भी सरकार के क़दमों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये वह देशद्रोही और जो भी सरकार की हर बात में सिर हिलाये वह देशभक्त। यही कारण है कि सरकार में बैठी पार्टी भाजपा ने तरह-तरह के गुण्डावाहिनियों को सड़क पर खुला छोड़ दिया है कि वह ऐसे सभी ‘’देशद्रोहियों’’ को सबक सिखाये जो कि मोदी और संघ परिवार की हाँ में हाँ न मिलायें! और इसके बाद आपकी हर बात को ‘भारत माता की जय’, ‘वन्दे मातरम’ आदि के शोर में और लातों-घूँसों की बारिश में दबा दिया जाता है। क्या कोई इस बात को भूल सकता है कि उड़ीसा में भारत माता की जय के नारे लगाकर नन के साथ बलात्कार किया गया और यही नारे लगाते हुए कोर्ट के अन्दर महिला शिक्षकों और महिला पत्रकारों तक की पिटाई की गयी और उन्हें गन्दी गालियाँ दी गयीं। ऐसा करने वाले वे लोग हैं जो अपने संगठन के ऐसे एक व्यक्ति का नाम नहीं बता सकता है जो कि देश की आज़ादी के लिए लड़ा और शहीद हुआ हो! क्या आप ऐसे लोगों को अपनी देशभक्ति का प्रमाण देंगे? क्या आप ऐसे लोगों को ‘’राष्ट्रभक्ति’’ का ठेकेदार बनने देंगे? क्या गुण्डों की इस भीड़ के दम पर अब देश चलाया जायेगा?
सोचने के लिए चौथी ज़रूरी बात यह है कि देशभक्ति के इस गुबार में आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी के ज़रूरी मुद्दों को ढँक देने की कोशिश की जा रही है। दाल, सब्ज़ी, दवाएँ, शिक्षा, तेल, गैस, किराया-भाड़ा, हर चीज़ की कीमतें आसमान छू रही हैं और ग़रीबों तथा निम्न मध्यवर्ग के लोगों का जीना मुहाल हो गया है। ‘विकास’ के लम्बे -चौड़े दावों में से कोई भी पूरा होना तो दूर की बात है, पिछले डेढ़ साल में खाने-पीने, दवा-इलाज और शिक्षा जैसी बुनियादी चीज़ों में बेतहाशा महँगाई, मनरेगा और विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में भारी कटौती से आम लोग बुरी तरह तंग हैं। देश भर में कारख़ानों-खदानों-बन्दरगाहों और निर्माण स्थलों पर काम करने वाले करोड़ों मज़दूर अपने अनुभव से जान रहे हैं कि मोदी सरकार आने के बाद से मज़दूरों के काम करने और जीने की परिस्थितियाँ किस कदर कठिन हो गयी हैं। मज़दूरों के रहे-सहे अधिकारों पर डाका डालने के लिए मोदी सरकार संसद में कई क़ानून पास करवाने की तैयारी कर रही है। दूसरी ओर, अम्बानी, अदानी, बिड़ला, टाटा जैसे अपने आकाओं को मोदी सरकार एक के बाद एक तोहफे़ दे रही है! तमाम करों से छूट, लगभग मुफ़्त बिजली, पानी, ज़मीन, ब्याजरहित कर्ज़ और मज़दूरों को मनमाफिक ढंग से लूटने की छूट दी जा रही है। देश की प्राकृतिक सम्पदा और जनता के पैसे से खड़े किये सार्वजनिक उद्योगों को औने-पौने दामों पर उन्हें सौंपा जा रहा है। ‘स्वदेशी’, ‘देशभक्ति’, ‘राष्ट्रवाद’ का ढोल बजाते हुए सत्ता में आये मोदी ने अपनी सरकार बनने के साथ ही बीमा, रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों समेत तमाम क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को इजाज़त दे दी है। ‘मेक इन इण्डिया’ के सारे शोर-शराबे का अर्थ यही है कि ‘आओ दुनिया भर के मालिको, पूँजीपतियो और व्यापारियो! हमारे देश के सस्ते श्रम और प्राकृतिक संसाधनों को बेरोक-टोक जमकर लूटो!’
मोदी सरकार के कारनामों से मोहभंग के कारण देश भर में मेहनतकश लोग और छात्र-नौजवान सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। संघ परिवार द्वारा फैलाये जा रहे नफ़रत के ज़हर के ख़िलाफ़ भी बुद्धिजीवियों-लेखकों-कलाकारों से लेकर आम नागरिक भी लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। इस विरोध में भी छात्र-नौजवान अगली कतारों में हैं। नरेन्द्र मोदी का पाखण्डी मुखौटा तार-तार हो चुका है। देश ही नहीं, विदेशों में भी उसकी थू-थू हो रही है और देश में संघ परिवार द्वारा फैलाये जा रहे घृणा के वातावरण की कड़ी आलोचना हो रही है। आज देश में हर वह इंसान जो तर्क का, विज्ञान का, जनवादी अधिकारों की बात कर रहा है, जो मज़दूरों के हक़ों की बात कर रहा है, जो शिक्षा और रोज़गार के हक़ की बात कर रहा है, वे सभी मोदी सरकार के फासीवादी कदमों का विरोध कर रहे हैं। एफटीआईआई के छात्र अगर एक शैक्षणिक संस्थान में आधिकारिक नियुक्ति में पारदर्शिता की माँग करते हैं, तो वे देशद्रोही हैं; हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र अगर ब्राह्मणवाद और उत्पीड़न का विरोध करते हैं, तो वे देशद्रोही हैं; जेएनयू के जो भी छात्र जनवाद और प्रगतिशीलता की हिमायत करते हैं, वे देशद्रोही हैं; मारुति के मज़दूर अगर यूनियन बनाने के हक़ की माँग उठाते हैं तो वे भी देशद्रोही हैं! सब पर फैसला सुनाने वाले ये फासीवादी वे लोग हैं जिनकी पार्टी में ठेकेदारों, गुण्डों, जॉबरों, दलालों और पूँजीपतियों की भरमार है! ये स्वदेशी का ढोंगी गाना गाते हुए कोक और पेप्सी की ग़ुलामी करने वाले ढोंगी हैं। यही संघ परिवार का इतिहास और उसकी असलियत है।
इसी विरोध और जन आन्दोलनों से बौखलाई सरकार और संघ परिवार ने अब ये नया पैंतरा खेला है। इसके ज़रिये वे तमाम प्रगतिशील, जनवादी और जनपक्षधर ताक़तों को अन्धाधुन्ध झूठे प्रचार के ज़रिये देशद्रोही करार देकर उनका मुँह बन्द करना चाहते हैं। इतिहास गवाह है कि जर्मनी में हिटलर ने भी ठीक इसी तरह झूठे आरोप लगाकर पहले हर उस आवाज़ को चुप कराया जो उसका विरोध कर सकती थी और फिर जनता को पीसकर रख देने के लिए पूँजीपतियों को खुली छूट दे दी। देशभक्ति और विश्वविजय के नारों का बुखार जब तक जनता के सिर से उतरा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनके सारे अधिकार छीने जा चुके थे।
अगर हम आज ही हिटलर के इन अनुयायियों की असलियत नहीं पहचानते और इनके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते तो कल बहुत देर हो जायेगी। हर ज़ुबान पर ताला लग जायेगा। देश में महँगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी का जो आलम है, ज़ाहिर है हममें से हर उस इंसान को कल अपने हक़ की आवाज़ उठानी पड़ेगी जो मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुआ है। ऐसे में हर किसी को ये सरकार और उसके संरक्षण में काम करने वाली गुण्डावाहिनियाँ ‘’देशद्रोही’’ घोषित कर देंगी! हमें इनकी असलियत को जनता के सामने नंगा करना होगा। शहरों की कॉलोनियों, बस्तियों से लेकर कैम्पसों और शैक्षणिक संस्थानों में हमें इन्हें बेनक़ाब करना होगा। गाँव-गाँव, कस्बे-कस्बे में इनकी पोल खोलनी होगी।
यह भी याद रखना होगा कि इन फ़ासिस्टों के खिलाफ़ लड़ाई कुछ विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों से नहीं जीती जा सकती। इनके विरुद्ध लम्बी ज़मीनी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। भारत में संसदीय वामपंथियों ने हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथ विरोधी संघर्ष को मात्र चुनावी हार-जीत का और कुछ रस्मी प्रतीकात्मक विरोध का मुद्दा बना दिया है। अब ये तृणमूल स्तर पर मेहनतकशों को साथ लेकर फासिस्ट कैडरों की सरगर्मियों की प्रभावी काट कर सकने की क्षमता खो चुके हैं। आज जब समूचे वाम पर हमला हो रहा है, तो इन्हें सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। इनके साथ जुड़े छात्र-युवा अपनी सहज फासीवाद-विरोधी भावनाओं और जोश के चलते जुझारू ढंग से सड़कों पर मोर्चा ले रहे हैं लेकिन इन पार्टियों के नेतृत्व के पास न तो फासिस्टों के लम्बी जुझारू लड़ाई चलाने की कोई रणनीति है और न ही हौसला। फासिस्टों के विरुद्ध धुआँधार प्रचार और इस संघर्ष में मेहनतकश जनता के नौजवानों की भरती के साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि फासिस्ट शक्तियों ने आज राज्यसत्ता पर कब्ज़ा करने के साथ ही, समाज में विभिन्न रूपों में अपनी पैठ बना रखी है। इनसे मुकाबले के लिए हमें वैकल्पिक शिक्षा, प्रचार और संस्कृति का अपना तंत्र विकसित करना होगा, मज़दूर वर्ग को राजनीतिक स्तर पर शिक्षित-संगठित करना होगा और मध्य वर्ग के रैडिकल तत्वों को उनके साथ खड़ा करना होगा। संगठित क्रान्तिकारी कैडर शक्ति की मदद से हमें भी अपनी खन्दकें खोदकर और बंकर बनाकर पूँजी और श्रम की ताक़तों के बीच मोर्चा बाँधकर चलने वाले लम्बे वर्गयुद्ध में पूँजी के भाड़े के गुण्डे फासिस्टों से मोर्चा लेना होगा। फरवरी 2016 की घटनाएँ एक ख़तरनाक और गम्भीर चेतावनी हैं। अगर हम इसका जवाब देने के लिए उठ नहीं खड़े हुए तो हमें इतना भारी नुक्सान उठाने के लिए तैयार रहना होगा जिसकी भरपाई कई पीढ़ियों में नहीं हो पायेगी।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2016
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