बजट 2010-11 : इजारेदार पूँजी के संकट और मुनाफे का बोझ आम गरीब मेहनतकश जनता के सिर पर
सरकार ने पूँजीपतियों और कारपोरेटों और धनी किसानों, फार्मरों और कुलकों पर खर्च को बढ़ाया है और इसके लिए पैसा 80 फीसदी आम मेहनतकश जनता पर बढ़े हुए कर थोप कर जुटाया है। सरकार अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोत्तरी के पीछे जिस बजट घाटे को पूरा करने का जो बहाना दे रही है उस घाटे के कारण और स्रोत क्या हैं? 82,000 करोड़ रुपये कारपोरेटों को दिये जाने वाली छूट का खर्च; 19,000 करोड़ कस्टम डयूटी में छूट का खर्च; 30,000 करोड़ उत्पादन शुल्क में छूट का खर्च; 46,000 करोड़ रुपये के कर छूट का खर्च! ऐसे में बजट घाटा नहीं होगा तो और क्या होगा? और इस पूरे घाटे की कीमत आम जनता को अपना पेट काट-काटकर चुकानी होगी। यही है इस पूँजीवादी व्यवस्था की सच्चाई। जब तक यह कायम रहेगी, हम अपना और अपने बच्चों का पेट काट-काट कर परजीवी धनाढय मकड़ों की तोदें भरते रहेंगे और उनके ऐशो-आराम के सामान खड़े करते रहेंगे।