पूँजीवादी खेती के संकट पर सही कम्युनिस्ट दृष्टिकोण का सवाल
लाभकारी मूल्य का सवाल अपने वर्ग-सार की दृष्टि से पूरी तरह से धनी किसानों-कुलकों-पूँजीवादी किसानों की माँग है, जो मुनाफ़े के लिए पैदा करते हैं। यह देहाती इलाक़े का पूँजीपति वर्ग है जो शोषण और शासन में पूरे देश के स्तर पर औद्योगिक पूँजीपति वर्ग का छोटा साझीदार है। लाभकारी मूल्य का आन्दोलन मूलतः छोटे और बड़े लुटेरे शासक वर्गों के बीच की लड़ाई है, इसके ज़रिये पूँजीवादी भूस्वामी-फ़ार्मर-धनी किसान देश स्तर पर संचित अधिशेष (सरप्लस) में अपना हिस्सा बढ़ाने की माँग करते हैं। चूँकि उद्योग में मुनाफ़े की दर लगातार बढ़ाते जाने की सम्भावना खेती की अपेक्षा हमेशा ही बहुत अधिक होती है और चूँकि लूट के बड़े हिस्सेदार वित्तीय एवं औद्योगिक पूँजीपति वर्ग और साम्राज्यवादी भी हमेशा ही पूँजीवादी संकट का ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा लूट के छोटे साझीदार-धनी किसानों पर थोपने की कोशिश करते रहते हैं, इसलिए इनके बीच खींचतान चलती ही रहती है।