Category Archives: सम्‍पादकीय

मई दिवस अनुष्ठान नहीं, संकल्पों को फ़ौलादी बनाने का दिन है!

भारतवर्ष में सर्वहारा क्रान्तिकारी की जो नयी पीढ़ी इस सच्चाई की आँखों में आँखें डालकर खड़ा होने का साहस जुटा सकेगी, वही नयी सर्वहारा क्रान्तियों के वाहक तथा नयी बोल्शेविक पार्टी के घटक बनने वाले क्रान्तिकारी केन्द्रों के निर्माण का काम हाथ में ले सकेगी। वही नया नेतृत्व क्रान्तिकारी क़तारों को एक नयी एकीकृत पार्टी के झण्डे तले संगठित करने में सफ़ल हो सकेगा। इतिहास अपने को कभी हूबहू नहीं दुहराता और यह कि, सभी तुलनाएँ लंगड़ी होती हैं – इन सूत्रों को याद रखते हुए हम कहना चाहेंगे कि मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी फि़र से खड़ी करने में हमें अपनी पहुँच-पद्धति तय करते हुए रूस में कम्युनिस्ट आन्दोलन के उस दौर से काफ़ी कुछ सीखना होगा, जो उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त और बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में गुज़रा था। बोल्शेविज़्म की स्पिरिट को बहाल करने का सवाल आज का सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल है।

पूँजीवादी खेती के संकट पर सही कम्युनिस्ट दृष्टिकोण का सवाल

लाभकारी मूल्य का सवाल अपने वर्ग-सार की दृष्टि से पूरी तरह से धनी किसानों-कुलकों-पूँजीवादी किसानों की माँग है, जो मुनाफ़े के लिए पैदा करते हैं। यह देहाती इलाक़े का पूँजीपति वर्ग है जो शोषण और शासन में पूरे देश के स्तर पर औद्योगिक पूँजीपति वर्ग का छोटा साझीदार है। लाभकारी मूल्य का आन्दोलन मूलतः छोटे और बड़े लुटेरे शासक वर्गों के बीच की लड़ाई है, इसके ज़रिये पूँजीवादी भूस्वामी-फ़ार्मर-धनी किसान देश स्तर पर संचित अधिशेष (सरप्लस) में अपना हिस्सा बढ़ाने की माँग करते हैं। चूँकि उद्योग में मुनाफ़े की दर लगातार बढ़ाते जाने की सम्भावना खेती की अपेक्षा हमेशा ही बहुत अधिक होती है और चूँकि लूट के बड़े हिस्सेदार वित्तीय एवं औद्योगिक पूँजीपति वर्ग और साम्राज्यवादी भी हमेशा ही पूँजीवादी संकट का ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा लूट के छोटे साझीदार-धनी किसानों पर थोपने की कोशिश करते रहते हैं, इसलिए इनके बीच खींचतान चलती ही रहती है।

जरूरी है कि जनता के सामने क्रान्तिकारी विकल्प का खाका पेश किया जाये

आज चुनावों में हमें एक अलग ढंग से भागीदारी करनी चाहिए। चुनावों में उम्मीदवार खड़ा करना अपनी ताकत फ़ालतू खर्च करना है। इसके बजाय हमें चुनावों के गर्म राजनीतिक माहौल का लाभ उठाने के लिए इस दौरान जन सभाओं और व्यापक जनसम्पर्क अभियानों के द्वारा जनता तक अपनी बात पहुँचानी चाहिए, सभी संसदीय पार्टियों का और पूँजीवादी संसदीय व्यवस्था का भण्डाफ़ोड़ करना चाहिए तथा लोगों को यह बताना चाहिए कि किसी पार्टी को वोट देने से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, फ़र्क तभी पड़ेगा जब मेहनतकश जनता संगठित होकर सारी ताकत अपने हाथों में ले ले।

एक नये क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बार की ज़रूरत

हम समझते हैं कि व्यावहारिक ठोस कामों के नाम पर सिर्फ़ आर्थिक माँगों तक सीमित रहना, या फिर इन्हें एकदम ही छोड़ देना दोनों ग़लत है। मज़दूर वर्ग को आर्थिक माँगों के साथ ही उसके राजनीतिक अधिकारों के लिए भी लड़ने की शिक्षा देनी होगी तथा साथ ही उनके बीच क्रान्तिकारी राजनीतिक प्रचार की कार्रवाई को तेज़ करना होगा। इस तरह विभिन्न कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी ग्रुपों की सोच प्रयोगों में उतरेगी, उनके बीच का ठहराव टूटेगा और आपसी बहस-विचार को नयी गति मिलेगी।
हम ‘बिगुल’ को इसका साधन बनाना चाहते हैं। हम इसके माध्यम से सभी सर्वहारा क्रान्तिकारियों को भारतीय क्रान्ति की समस्याओं पर खुली बहस का न्यौता देते हैं। यह अच्छा रहेगा। इससे मेहनतकश आबादी की राजनीतिक शिक्षा का काम भी तेज़ होगा और भविष्य में बनने वाली क्रान्तिकारी पार्टी का उनमें व्यापक आधार तैयार होगा।