मोदी सरकार की अय्याशी और भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान : सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट
करोड़ों बेघरों के देश में नयी संसद बनाने पर 20 हज़ार करोड़ रुपये फूँकने की तैयारी
- अनुपम
कोरोना महामारी के इस दौर में जब लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रहीं हैं, स्वास्थ्य सेवाएँ लचर हैं, करोड़ों लोग रोज़गार खो चुके हैं और भारी आबादी दो वक़्त की रोटी के लिए मुहताज है, वहीं ख़ुद को देश का प्रधानसेवक कहने वाले प्रधानमंत्री ने 20 हजार करोड़ रूपये का एक ऐसा प्रोजेक्ट लाँच किया है जिससे जनता को कुछ नहीं मिलने वाला।
सेण्ट्रल विस्टा नाम के इस प्रोजेक्ट को चार साल में यानी कि 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन इसके तहत नये संसद भवन के लिए दो सालों के अन्दर ही बनाया जाना है। मोदी सरकार ने 2022 के 75वें स्वतंत्रता दिवस को इसके उद्घाटन का शिगूफ़ा उछालते हुए अभी हाल ही में 10 दिसम्बर को नयी संसद भवन का भूमिपूजन भी कर डाला। संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता की खुल्लमखुल्ला धज्जियाँ उड़ाने का यह कारनामा भी पूरे विधि-विधान से, जनता के पैसे को पानी की तरह बहाकर किया गया।
जैसी कि उम्मीद थी, सरकार के पालतू सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ ना-नुकुर करते हुए देश के संसाधनों की भयंकर लूट और बर्बादी करने वाले इस शर्मनाक प्रोजेक्ट को हरी झण्डी दिखा दी है। दरअसल इस मामले को पहले अदालत में ले जाने और फिर उस पर अदालत की मुहर लगवाने का यह सारा नाटक किया ही इसलिए गया था ताकि लोगों के बीच ढिंढोरा पीटा जा सके कि देखो, सबसे बड़ी अदालत ने भी इसे सही ठहराया है।
सोचने वाली बात यह है कि जिस देश में करीब 20 करोड़ लोग फ़ुटपाथों पर सोते हों और लगभग इतने ही लोग झुग्गियों में रहते हों, वहाँ 971 करोड़ की नयी संसद बनाना क्या एक घटिया मज़ाक नहीं है? क्या ऐसे लोकतंत्र को जोंकतन्त्र न कहा जाए, जहाँ पर जनता के ख़ून-पसीने की गाढ़ी कमाई से चूसे गये 20 हजार करोड़ रुपये जनता की छाती पर मूँग दल रहे नेताओं-मंत्रियों और अफ़सरों के नये कार्यालय खड़े करने पर उड़ा दिये जायेंगे। इस पर कोई सवाल न उठे, इसलिए गोदी मीडिया के ज़रिए माहौल बनाना शुरू कर दिया गया है कि नयी संसद का बनना कितना ज़रूरी है। उसके बनने से पहले ही उसके रंग-रूप-आकृति की व्याख्या करने में एक पैर पर खड़ी इस मीडिया के तेवर देखकर आपकी आँखें फटी की फटी रह जाती हैं।
पहले ही इस ख़र्चीले जनतंत्र के बोझ से इस देश की ग़रीब जनता कराह रही है। करोड़ों बेघरों के इस देश का राष्ट्रपति 340 कमरों के भव्य महल – राष्ट्रपति भवन में रहता है, जो दुनिया के सभी राष्ट्राध्यक्षों के आवासों (व्हाइट हाउस और बकिंघम पैलेस से भी) से बड़ा है। 2007 में इसके रख-रखाव की लागत सालाना 100 करोड़ रुपये आँकी गयी थी जो आज लगभग दोगुना हो चुकी होगी। राष्ट्रपति के स्टाफ़, घरेलू ख़र्चों और भत्तों पर करीब 75 करोड़ रुपये सालाना ख़र्च होते हैं। प्रधानमंत्री, मंत्रिमण्डल और सांसदों पर हर साल अरबों रुपये ख़र्च होते हैं। महामारी के दौर में ही मोदी सरकार ने 8000 करोड़ रुपये राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए दो नये आलीशान हवाई जहाज़ ख़रीदने पर उड़ा दिये।
इस दैत्याकार और बेहद ख़र्चीले नेताशाही और नौकरशाही के तंत्र का 90 फ़ीसदी से भी अधिक बोझ वह ग़रीब जनता उठाती है जिसे जीने की बुनियादी ज़रूरतें तक नसीब नहीं होतीं। टैक्सों से होने वाली कुल सरकारी आय का 90 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा आम लोग परोक्ष करों के रूप में देते हैं। 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा पूँजीपतियों और सम्पत्तिशाली वर्गों का होता है।
हमारे देश के मंत्रियों-नौकरशाहों के ठाट-बाट बड़े-बड़े बादशाहों को भी मात देने वाले हैं। लॉकडाउन के वक़्त भी जब सांसदों को अपनी सांसद निधि का इस्तेमाल लोगों तक अनाज वगैरह पहुँचाने में करना चाहिए था, उस वक़्त भी वे अय्याशियाँ करते रहे और जनता के दुख-दर्द की खिल्ली उड़ाते रहे। कोरोना संकट के इस दौर में इस ख़र्चीले प्रोजेक्ट का बोझ भी वह जनता उठायेगी, जिसके पास न तो रोज़गार की गारण्टी है, न घर की गारण्टी है और न ही स्वास्थ्य या शिक्षा की कोई गारण्टी है।
मोदी राज में लोगों को नफ़रत और झूठ के ज़हर की ख़ुराकें इस क़दर पिलायी गयी हैं कि उनका बड़ा हिस्सा अब किसी भी प्रचार को सही मान लेता है। जैसे, गोदी मीडिया बता रहा है कि संसद भवन पुराना हो गया है इसलिए नयी संसद की ज़रूरत है। वैसे तो जनता के लिए यह संसद भी सुअरबाड़ा ही है जहाँ बैठकर सिर्फ़़ हवाई गोले दागे जाते हैं और जनता को लूटने-खसोटने के लिए नये-नये क़ानून बनाये जाते हैं। मगर जनता की कमाई उड़ाने के लिए किस तरह झूठ बोला जा रहा है, इसे समझने के लिए बस इतना ही जान लेना चाहिए कि यह संसद भवन केवल 94 साल ही पुराना है और काफ़ी मज़बूत है। इंग्लैण्ड और अमेरिका के संसद भवन इससे कहीं ज़्यादा पुराने हैं। इंग्लैण्ड का संसद भवन लगभग ड़ेढ़ सौ साल पुराना है और अमेरिका के संसद भवन को बने हुए दो सौ साल हो चुके हैं।
एक तीर से कई निशाने लगाने वाला यह प्रोजेक्ट वास्तव में सेण्ट्रल भ्रष्टाचार प्रोजेक्ट है। सरकार के चहेते बिल्डरों और कम्पनियों को हज़ारों करोड़ के ठेके मिलेंगे और मंत्रियों-अफ़सरों की भी पाँचों उँगलियाँ घी में होंगी।
इस प्रोजेक्ट का निर्माण पूरा होने के बाद संसद भवन और राष्ट्रपति भवन के आसपास की खाली जगह भी ख़त्म हो जायेगी और जनता के लिए संसद भवन के पास जाकर विरोध-प्रदर्शन करना लगभग नामुमकिन हो जायेगा।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2021
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