पीएम केयर्स फ़ण्‍ड : एक और महा-घोटाला!

– प्रसेन

पूरा देश कोरोना वायरस की वजह से त्रस्त है। करोड़ों मेहनतकश परिवार भुखमरी के कगार पर पहुँच गये हैं। देशभर में भूख से कई मौतें हो चुकी हैं। सरकार और कारख़ाना मालिकों के पल्ला झाड़ लेने के बाद तमाम औद्योगिक शहरों से सैकड़ों किलोमीटर चलकर भूख और पुलिस का ज़ुल्म सहते हुए, अपने बच्चों की मौत तक देखते हुए जो मज़दूर अपने घर पहुँच गये, उनके साथ भुखमरी भी पहुँच गयी है। जो मज़दूर कहीं बीच में या राज्यों के बार्डर पर रोक लिये गये हैं, उन्‍हें जिन कैम्पों में रखा गया है वहाँ की हालत बहुत ख़राब है। डॉक्टरों तक के लिए पर्याप्त सुरक्षा किट नहीं है। लेकिन इसी बीच भाजपा ने कोरोना से निपटने के नाम पर अब एक बड़ा खेल खेला है।

इस नये खेल का नाम है ‘पीएम केयर्स’! कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण किसी भी आपातकालीन या संकटपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष’ या संक्षेप में ‘पीएम केयर्स’ नाम का नया फ़ण्‍ड बनाया गया है। बहुत से लोगों को लग सकता कि ‘पीएम केयर्स’ लोगों की ‘देखभाल’ के लिए बनाया गया है। लेकिन इसका ढाँचा, इसके बनने की प्रक्रिया और इसकी कार्यप्रणाली पहले ही ‘पूत के पाँव’ दिखा देती है।

‘पीएम केयर्स’ ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे और इसके सदस्यों में विदेश मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं। यह एक ट्रस्ट है जिसमें ‘प्रधानमंत्री शब्द’ इस्तेमाल किया गया है। लेकिन ये सारे नाम केवल भ्रम पैदा करने के लिए हैं। इसमें केवल भाजपा के नेता हैं! पदाधिकारी सरकारी नाम से ज़रूर हैं लेकिन ट्रस्ट में वे ‘व्यक्तिगत’ हैसियत से हैं।

इस ट्रस्ट की निर्माण-प्रक्रिया नियम-क़ानूनों को ताक पर रख कर आगे बढ़ी है। पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने ‘पीएम केयर’ फ़ण्ड के काग़ज़ात की छानबीन कर पता लगाया कि इस फ़ण्‍ड को 27 मार्च को ही बनाया गया था। उसी दिन इसकी ट्रस्ट-डीड रजिस्टर्ड हुई थी। उसी दिन उसका पैन कार्ड नम्बर भी ले लिया गया और उसी दिन इसको आयकर विभाग से (80 जी) छूट का प्रमाणपत्र भी हासिल हो गया। यानी नियम-क़ानून गया भाड़ में! वैसे भी ‘लोकतंत्र’ में नियमों का इस्तेमाल ही यही होता है कि सरकार और पूँजीपतियों के फ़ायदे के लिए जब चाहे गढ़ लिये जायें और जब चाहे तोड़ दिये जायें।

इस ट्रस्ट की कार्यप्रणाली में इतने झोल हैं जो इसकी पोल खोल देते हैं। इसमें पारदर्शिता की कोई गुंजाइश नहीं है। ‘पीएम केयर्स’ फ़ण्‍ड का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा ऑडिट नहीं करवाया जायेगा जो हर सरकारी संस्‍था के लिए ज़रूरी होता है। इस फ़ण्‍ड में चाहे जितना मर्ज़ी उतना योगदान किया जा सकता है। इसकी कोई सीमा नहीं तय की गयी है। इसमें दी जाने वाली दान राशि पर धारा 80(जी) के तहत आयकर से छूट दी जायेगी। बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कॉरपोरेट मंत्रालय ने यह भी साफ़ किया कि अगर कम्पनियाँ पैसा देंगी तो इन्हें कम्पनियों की कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) के मद में शामिल कर लिया जायेगा। मज़े की बात यह है कि कम्‍पनियाँ अपने इस बजट से राज्यों के ‘आपदा राहत कोष’ में दान नहीं दे सकती हैं जोकि सरकारी संस्‍थाएँ हैं। राज्यों को दान करने पर उन्हें कोई छूट नहीं मिलेगी। मतलब पैसा देना हो तो मोदी की झोली में सीधे डालो, और कहीं नहीं।

इस फ़ण्‍ड की स्थापना के ख़ि‍लाफ़ एडवोकेट एम.एल. शर्मा ने जनहित याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि सरकार इसके लिए न तो कोई अध्यादेश लायी और न ही कोई गज़ट नोटिफ़ि‍केशन किया। याचिका में इस फ़ण्‍ड में अबतक मिले दान को सरकार के संयुक्त खाते में ट्रांसफर करने और अदालत की निगरानी में इसकी एसआईटी जाँच की माँग की। जैसी कि अपेक्षा थी, सुप्रीम कोर्ट ने पहली ही सुनवाई में याचिका को फटाफट ख़ारिज कर दिया।

‘पीएम केयर्स’ बनते ही इसके लिए जमकर वसूली शुरू हो गयी। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के रेज़ीडेंट डॉक्टरों के संगठन ने एम्स प्रबन्‍धन द्वारा पीएम केयर्स फ़ण्‍ड के लिए अपने कर्मचारियों के एक दिन का वेतन काटने के फ़ैसले का विरोध किया। दिल्ली में सिर्फ़ एम्स ही नहीं बल्कि आरएमएल, लेडी हार्डिंग, वीएमएमसी, सफ़दरजंग और अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी पीएम केयर्स फ़ण्‍ड में कोरोना महामारी के नाम पर की जाने वाली वसूली देने से मना कर दिया। और क‍हा कि यह रकम स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों के लिए सुरक्षा किट ख़रीदने पर ख़र्च होनी चाहिए। इतना ही नहीं, इस फ़ण्‍ड की वसूली के लिए धोखाधड़ी का भी इस्‍तेमाल किया जा रहा है। दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के शिक्षकों-कर्मचारियों का वेतन काटते समय कहा गया कि यह रकम पहले से बने हुए सरकारी ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ में दी जायेगी। लेकिन बाद में उसे मोदी के फ़ण्‍ड में जमा करा दिया गया। कई सरकारी विभागों में नोटिस जारी करके एक-एक दिन का वेतन काटकर इस फ़र्ज़ी फ़ण्‍ड में जमा कराया जा रहा है।

बहुत बड़ा सवाल यह है कि जब पहले से ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ बना हुआ है तो नया फ़ण्‍ड बनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना जनवरी, 1948 में जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से की गयी थी। प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव इस कोष के सचिव होते हैं। वहीं निदेशक स्तर का एक अधिकारी उनकी इस काम में मदद करता है। प्रधानमंत्री के निर्देश पर वो इस खाते का संचालन करते हैं। साल 2009-10 से 2018-19 के बीच इस फ़ण्‍ड में कुल 4713.57 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे, लेकिन इस दौरान इसमें से सिर्फ़ 2524.77 करोड़ रुपये ही ख़र्च किये जा सके। इसमें से वित्त वर्ष 2014-15 से 2018-19 के बीच कोष में कुल 3383.92 करोड़ रुपये मिले जिनमें से इन पाँच सालों में सिर्फ 1594.87 करोड़ रुपये ही ख़र्च किये गये। इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत में 3800 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में थे। पिछला साल 3230 करोड़ से शुरू हुआ, 783 करोड़ साल में प्राप्त हुए और ख़र्च सिर्फ़ 212 करोड़ हुआ। पर यह 3800 करोड़ हैं कहाँ? अब नया फ़ण्‍ड बनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? पता चला कि 3300 करोड़ रुपये से ज़्यादा बैंकों के परपेचुअल बॉण्ड आदि में लगा दिया गया है अर्थात बैंकों की पूँजी बन चुका है! बैंकों की जो पूँजी डूबी है उसका एक हिस्सा यहाँ से भी आया है! अपने छह साल के शासन में मोदी ने ओएनजीसी से लेकर रिज़र्व बैंक तक तमाम संस्‍थाओं के संसाधनों को जिस तरह से लूटा है, यह भी उसी कड़ी का एक‍हिस्‍सा है। अब भाजपा कोरोना के नाम पर पीएम केयर्स फ़ण्‍ड बनाकर अरबों रुपये बटोर रही है जिसका इस्‍तेमाल फिर किसी राज्‍य के विधायकों को ख़रीदने में किया जायेगा। क्‍योंकि कोरोना से लड़ने में पीएम केयर्स फ़ण्‍ड ने क्‍या योगदान दिया, इसे अभी न कोई जान पाया है और न ही जान पायोगा।

साफ़ है ‘पीएम केयर्स’ जनता को कोरोना से निजात दिलाने के लिए नहीं बना है! बल्कि ये कर्मचारियों व आम आदमी को ठगने के लिए बना है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों को तो टैक्स में छूट मिल जायेगी। इतना ही नहीं, मोदी ने जनता के हित में ख़र्च करने के लिए दिये जाने वाले धन जैसे कि सांसद निधि को भी सीधे डकारना शुरू कर दिया है। 70 सांसद अपनी सांसद निधि से 1 करोड़ रुपये पीएम केयर्स में दे चुके हैं। बाक़‍ियों से भी कहा जा रहा है। यानी सांसदों ने अपनी जेब की बजाय जनता की जेब से निकाल कर ऐसे कोष में दान कर दिया जिसमें हिसाब माँगना सम्‍भव नहीं। वास्तव में, यह एक बहुत बड़ा घोटाला है। भाजपा और संघ परिवार इस पैसे को अपने फ़ासीवादी एजेंडा को और तेज़ी से लागू करने में इस्तेमाल करेंगे। कोरोना जैसी महामारी का समय भी भाजपा जैसी फ़ासीवादी पार्टी के लिए अपनी काली कारगुज़ारियों को आगे बढ़ाने का एक अवसर है। हमें ‘पीएम केयर्स’ में पारदर्शिता की माँग ज़ोरों से उठानी चाहिए और हमें ये भी याद रखना चाहिए कि मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था से बड़ी महामारी कोई नहीं है। इस व्यवस्था को ध्वस्त करके ही हर तरह की महामारी से बचा जा सकता है।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल-मई 2020


 

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