चीनी क्रान्ति के नेता और मज़दूर वर्ग के महान शिक्षक माओ त्से-तुङ के जन्मदिवस (26 दिसम्बर) के अवसर पर
क्रान्तिकारी जनदिशा के बारे में कुछ ज़रूरी उद्धरण

पिछले बीस साल से ज़्यादा अरसे से हमारी पार्टी रोज़ाना जन-कार्य कर रही है, तथा पिछले दस-बारह वर्षों से वह रोज़ाना जनदिशा की चर्चा कर रही है। हमारा हमेशा यह मत रहा है कि क्रान्ति को विशाल जन-समुदाय पर निर्भर रहना चाहिए और सभी लोगों के प्रयत्नों पर निर्भर रहना चाहिए, तथा महज़ चन्द आदमियों द्वारा आदेश जारी किये जाने का हमने हमेशा विरोध किया है। लेकिन अब भी कुछ साथी अपने काम में जनदिशा को पूरी तरह कार्यान्वित नहीं करते। वे अब भी इने-गिने लोगों पर निर्भर रहते हैं और अलग-थलग रहकर कार्य करते हैं। इसकी एक वजह यह है कि वे लोग जो कुछ भी करते हैं वह सब उन लोगों को बताने से कतराते हैं जिनका वे नेतृत्व करते हैं तथा वे यह नहीं जानते कि अपने नेतृत्व में चलने वाले लोगों की पहलक़दमी और सृजन-शक्ति का क्यों और कैसे विकास किया जाये। मनोगत रूप से तो वे भी यह चाहते हैं कि हर आदमी काम में हाथ बटाये, लेकिन वास्तव में वे दूसरे लोगों को यह नहीं बताते कि उन्हें क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए। ऐसी हालत में, भला यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि हर आदमी सक्रिय बन जायेगा तथा यह कैसे हो सकता है कि कोई काम अच्छी तरह किया जा सकेगा? इस समस्या को सुलझाने के लिए, बुनियादी बात है जनदिशा की विचारधारात्मक शिक्षा देना, लेकिन साथ ही हमें इन साथियों को काम के बहुत से ठोस तरीक़े भी सिखाने चाहिए।

“‘शानशी-स्वेय्वान दैनिक’ के सम्पादकीय विभाग के साथ बातचीत” (2 अप्रैल 1948)

जन-समुदाय के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए, हमें जन-समुदाय की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार काम करना चाहिए। जन-समुदाय के लिए किये जाने वाले तमाम कार्यों का आरम्भ उसकी आवश्यकताओं के आधार पर होना चाहिए न कि किसी व्यक्ति की सदिच्छाओं के आधार पर। ऐसा अक्सर देखने में आता है कि वस्तुगत रूप से तो जन-समुदाय के लिए किसी परिवर्तन की आवश्यकता है, लेकिन मनोगत रूप से वह इस आवश्यकता के प्रति अभी जागरूक नहीं हो पाया, इस परिवर्तन को करने के लिए अभी तैयार अथवा संकल्पबद्ध नहीं हो पाया। ऐसी स्थिति में हमें धीरज के साथ इन्तज़ार करना चाहिए। हमें यह परिवर्तन तब तक नहीं लाना चाहिए जब तक हमारे कार्य के ज़रिए जन-समुदाय का अधिकांश भाग उक्त आवश्यकता के प्रति जागरूक न हो जाये तथा वह उसे कार्यान्वित करने के लिए तैयार और संकल्पबद्ध न हो जाये। अन्यथा हम जन-समुदाय से अलग हो जायेंगे। जब तक जन-समुदाय जागरूक और तैयार नहीं हो जाता, तब तक कोई भी ऐसा काम जिसमें उसके शामिल होने की ज़रूरत है, महज़ एक खानापूरी करने के समान होगा तथा वह असफल हो जायेगा… यहाँ दो उसूल हैं; पहला उसूल है जन-समुदाय की वास्तविक आवश्यकताओं को देखना, न कि अपनी कल्पना के आधार पर उसकी आवश्यकताओं का निर्णय कर देना, तथा दूसरा उसूल है जन-समुदाय की आकांक्षा, जिसे अपना संकल्प ख़ुद करना चाहिए न कि हमें उस पर अपना संकल्प लादना चाहिए।

“सांस्कृतिक कार्य में संयुक्त मोर्चा” (30 अक्तूबर 1944)

फ़रमानशाही पर अमल करना सभी तरह के कामों में ग़लत है, क्योंकि जन-समुदाय की राजनीतिक चेतना के स्तर से आगे बढ़ने और स्वेच्छा के उसूल का उल्लंघन करने वाली यह प्रवृत्ति जल्दबाज़ी की बीमारी को ज़ाहिर करती है। हमारे साथियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि जिन बातों को वे ख़ुद समझते हैं उन्हें जन-समुदाय भी समझता है। आम जनता उन बातों को समझती है अथवा नहीं तथा वह कार्रवाई करने के लिए तैयार है अथवा नहीं, इसका पता सिर्फ़ जन-समुदाय के बीच जाने और जाँच-पड़ताल करने से ही चल सकता है। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हम फ़रमानशाही से बच जायेंगे। किसी काम में दुमछल्लावादी रुख अपनाना भी गलत है, क्योंकि जन-समुदाय की राजनीतिक चेतना के स्तर से पिछड़ जाने और जन-समुदाय का आगे की ओर नेतृत्व करने के उसूल का उल्लंघन करने वाली यह प्रवृत्ति सुस्ती की बीमारी को ज़ाहिर करती है। हमारे साथियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि उन बातों को जन-समुदाय भी नहीं समझता जिन्हें हमारे साथी ख़ुद अभी तक नहीं समझ पाते। यह बात अक्सर देखने में आती है कि जन-समुदाय हमसे आगे बढ़ जाता है तथा एक कदम और आगे बढ़ने के लिए लालायित रहता है; फिर भी हमारे साथी जन-समुदाय के नेता की भूमिका अदा नहीं कर पाते और कुछ पिछड़े हुए तत्वों के दुमछल्ले बन जाते हैं, उनके विचारों को प्रतिबिम्बित करते हैं, इतना ही नहीं उनके विचारों को ग़लती से व्यापक जन-समुदाय के विचार समझ बैठते हैं।

“मिलीजुली सरकार के बारे में” (24 अप्रैल 1945)

जनता के विचारों को एकत्र करके उनका निचोड़ निकालना, उसके बाद जन-समुदाय के बीच जाना, उन विचारों पर डटे रहना और उनको कार्यान्वित करना, ताकि नेतृत्व के सही विचारों का निर्माण किया जा सके – यह नेतृत्व का बुनियादी तरीक़ा है।

“नेतृत्व के तरीक़ों से सम्बन्धित कुछ सवाल” (1 जून 1943)

हमारी पार्टी के समूचे अमली काम में, सही नेतृत्व के लिए “जन-समुदाय से लेकर जन-समुदाय को ही लौटा देने” का तरीक़ा अपनाना ज़रूरी है। इसका मतलब यह है; जन-समुदाय के विचारों को (बिखरे हुए और अव्यवस्थित विचारों को) एकत्र करो और उनका निचोड़ निकालो (अध्ययन के ज़रिए उन्हें केन्द्रित और सुव्यवस्थित विचारों में बदल डालो), इसके बाद जन-समुदाय के बीच जाओ, इन विचारों का प्रचार करो और जन-समुदाय को समझाओ जिससे वह उन्हें अपने विचारों के रूप में अपना ले, उन पर दृढ़ता से क़ायम रहे और उन्हें कार्य रूप में परिणित करे, तथा इस प्रकार की कार्रवाई के दौरान इन विचारों के अचूकपन की परख कर लो। इसके बाद फिर एक बार जन-समुदाय के विचारों को एकत्र करके उनका निचोड़ निकालो और फिर एक बार जन-समुदाय के बीच जाओ ताकि उन विचारों पर अविचल रहा जा सके और उन्हें कार्यान्वित किया जा सके। इस प्रकार की प्रक्रिया को एक अन्तहीन चक्र के रूप में बार-बार दोहराते रहने से वे विचार हर बार पहले से ज़्यादा सही, पहले से ज़्यादा सजीव और पहले से ज़्यादा समृद्ध बनते जायेंगे। यही है मार्क्सवाद का ज्ञान-सिद्धान्त।

“नेतृत्व के तरीक़ों से सम्बन्धित कुछ सवाल” (1 जून 1943)

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2021


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments