सैंया भये दोबारा कोतवाल, अब डर काहे का!
वृषाली
उन्नाव बलात्कार काण्ड और फिर युवती के परिजनों की सुनियोजित हत्याओं ने एक बार फिर यह साबित किया है कि भाजपा का ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा भी कोरा जुमला है! बलात्कार के अपराधी भाजपाई विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को लम्बे समय तक बचाया जाना, स्थानीय भाजपाई सांसद साक्षी महाराज का जेल में धन्यवाद ज्ञापित करने पहुँच जाना, लड़की के पिता की पुलिस हिरासत में मौत, घरवालों को धमकियाँ, चाचा को बरसों पुराने केस में जेल में डालना और अन्त में युवती व उसके परिजनों तथा वकील पर ट्रक चढ़ा देना साबित करते हैं कि देश में जंगल राज चल रहा है, जहाँ भाजपाइयों के अपराधों को अपराध ही नहीं समझा जाता!
चन्द दिन के अन्दर बलात्कारियों को फाँसी देने के मोदी के जुमले का भाजपा ने अपने गुर्गों से प्रचार तो ख़ूब कराया है, लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि ख़ुद भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के ऊपर लगे बलात्कार के आरोप का मामला 2017 से चल रहा है। यही नहीं, पीड़िता को केस दर्ज करवाने मात्र के लिए मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह की कोशिश करनी पड़ी। बलात्कारी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का सबक़ अगले ही कुछ दिनों में पीड़िता के बाप को पुलिस हिरासत में अपनी जान गँवा देने के रूप में मिला। हल्ला-हंगामे के बाद विधायक पर केस तो दर्ज हो गया लेकिन विधायक ठहरे पुराने खिलाड़ी, इतनी आसानी से कहाँ मानते। लड़की के चाचा को 19 साल पुराने केस में सज़ा हुई और परिवार को जान से मारने की धमकियाँ मिलती रहीं। 28 जुलाई 2019 में आख़िरकार बलात्कार पीड़िता की गाड़ी को ट्रक से कुचल दिया गया, जिस घटना में उसकी दो रिश्तेदार महिलाओं की मौत हो गयी और रिपोर्ट लिखे जाने तक पीड़िता और उसके वकील की हालत नाज़ुक बनी हुई थी। दुर्घटना का षड्यन्त्र साफ़ तौर पर बलात्कारी विधायक की ओर इशारा कर रहा था, लेकिन बेशर्मी के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए भाजपा के कई कार्यकर्ता ख़रीदी गयी भीड़ के साथ सड़कों पर उतरकर अपराधी विधायक के समर्थन में नारे लगाने में लगे। पूरी घटना में भाजपा की महिला बाल विकास मन्त्री से लेकर सभी “ओजस्वी-तेजस्वी” मुँह में दही जमाकर बैठे रहे। इससे यही पता चलता है कि इस ‘रामराज्य में भाजपाई हिंसा, हिंसा न भवति!’
मामले को सुप्रीम कोर्ट भेजे जाने के बाद केस की अदालती कार्यवाही में तेज़ी आयी है और सीबीआई ने अपराधी के ख़िलाफ़ कई अहम सुराग पेश किये हैं। पर कौन जानता है कि आने वाले समय में जेल से बाहर आकर ये श्रीमान भी लोकतन्त्र के तथाकथित मन्दिर में विराजमान मिलें!
शुचिता-संस्कार और संस्कृति का ढिंढोरा पीटने वालों ने इस देश में जितना गन्द मचा रखा है, वह सबके सामने है। हाल ही में संघ और भाजपा नेताओं-नेत्रियों के बहुत सारे अश्लील वीडियो वायरल हुए हैं। संस्कार की चिलमन के पीछे बेशुमार सड़ाँध ठाठे मार रही है। भाजपा विधायकों पर कर्नाटक विधानसभा में अश्लील वीडियो देखने से लेकर इनके सरगना तक पर लड़की का पीछा करने के आरोप लगे थे। हाल में ही कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद कश्मीरी महिलाओं पर घटिया बयान देने वाले तीन तलाक़ पर मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति पर डींगें हाँक रहे हैं!
पिछले कुछ समय से भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसमें सभी पार्टियों के गुण्डे, मवाली, हत्यारे और बलात्कारी आकर शरण प्राप्त कर रहे हैं। इस देश के प्रधान सेवक उर्फ़ चौकीदार ने हाल ही में सीना फुलाते हुए कहा था कि कमल का फूल पूरे देश में फैल रहा है, लेकिन वे यह बताना भूल गये कि दरअसल यह फूल औरतों, दलितों, अल्पसंख्यकों और मज़दूरों के ख़ून से सींचा जा रहा है। एक तरफ़ भयंकर बेरोज़गारी और दूसरी तरफ़ ऐसी घटनाएँ दिखाती हैं कि पूरे देश में फ़ासीवाद का अँधेरा गहराता जा रहा है। गो-रक्षा, लव-जिहाद, ‘भारत माता की जय’, राम मन्दिर की फ़ासीवादी राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ आम जनता को बाँटने और आपस में लड़ाने के लिए खेली जाती है। भारत माता की रक्षा करने का दम्भ भरते हुए ये फ़ासीवादी उन्माद मचाते हुए देश की असली माताओं-बहनों के साथ कुकर्म कर रहे हैं। उनके देश की परिभाषा बस काग़ज़ पर बना एक नक़्शा है। बढ़ते निरंकुश स्त्री-विरोधी अपराधों से यह ज़ाहिर हो जाता है कि संघियों की देश की परिभाषा में महिलाओं के लिए स्थान सिर्फ़ और सिर्फ़ एक भोग्य वस्तु का है। पूँजीवादी व्यवस्था और पितृसत्ता के चलते हमारा समाज जिस स्त्री-विरोधी मानसिकता से ग्रसित है उसके कारण फ़ासीवाद के इस दौर में स्त्रियों पर हमले और भी बर्बर, और भी निर्मम होते जा रहे हैं।
जनता को इस ख़ुशफ़हमी में रहने की ज़रूरत नहीं कि हम तो बचे हुए हैं। सुरक्षित कोई नहीं है और शिकार कोई भी बन सकता है, इसलिए चाक-चौबन्द रहने की आवश्यकता है। पूरे देश में उठे विरोध के स्वर के बाद ही उन्नाव के बलात्कारी के ख़िलाफ़ कार्यवाही आगे बढ़ी है। न केवल व्यापक एकजुटता बल्कि स्त्री मुक्ति के प्रश्न पर सही समझदारी के दम पर हम सत्ता में पहुँच रखने वाले हैवानों से टकरा सकते हैं। रहे-सहे क़ानूनी अधिकारों की भी एकजुट संघर्ष के बूते ही हिफ़ाज़त सम्भव है।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2019
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन