डाइकिन के मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!
बिगुल संवाददाता
आठ जनवरी 2019 को देशव्यापी हड़ताल के दौरान डाइकिन व अन्य कारख़ानों के मज़दूर निमराना औद्योगिक क्षेत्र में शान्तिपूर्ण ढंग से अपनी रैली निकाल रहे थे। रैली जब डाइकिन कारख़ाने के मुख्य गेट के सामने से निकली तब कारख़ाना प्रबन्धन की शह पर पहले से ही तैयार बैठे गुण्डे-बाउंसरों के साथ पुलिस ने मज़दूरों के ऊपर हमला कर दिया। कम्पनी इस हमले की तैयारी पहले से कर रही थी। गुण्डे-बाउंसरों को होटलों में ठहराया गया था, सुबह के वक़्त रैली के लिए पर्चा बाँट रहे मज़दूरों के ऊपर भी हमला हुआ किया गया था। मज़दूरों के ऊपर हमला करने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे डण्डों पर पहले से ही कीलें लगा कर तैयारी की गयी थी, जिसकी वजह से मज़दूरों को काफ़ी गम्भीर चोटें आयीं। इस हमले में क़रीब चालीस मज़दूर बुरी तरह से घायल हुए। दमन का चक्र ठहरा नहीं, उसी रात मज़दूरों के कमरों पर जाकर न सिर्फ़ उनके साथ हाथापाई, बदसलूकी की गयी बल्कि कई मज़दूरों को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार भी किया गया। रात में चौदह मज़दूरों को उनके घर से गिरफ़्तार किया गया। हालाँकि बाद में उन मज़दूरों को छोड़ दिया गया। किन्तु, मज़दूरों पर झूठे मुक़दमे थोप दिये गये, जिसके तहत 307 जैसी गम्भीर धाराएँ भी लगयी गयी। यह रिपोर्ट लिखे जाने के वक़्त तक यूनियन के सचिव रुकमुद्दीन समेत अट्ठारह मज़दूर जेल में बन्द हैं। एक झटके में 450 स्थायी और 500 अस्थायी श्रमिकों को काम से निकाल दिया गया। ग़ौरतलब है कि, मज़दूर जब भी यूनियन पंजीकरण या किसी अन्य मुद्दे के लिए संघर्ष करते हैं, तब प्रशासन-मालिकान मिलकर उसे झूठे मुक़दमों में उलझा कर उनकी आवाज़ को दबा देते हैं। चाहे हौण्डा टप्पूकड़ा का उदाहरण हो या मारुति मानेसर का, हर जगह यही कहानी दोहरायी गयी है।
डाइकिन के मज़दूर नीमराना औद्योगिक क्षेत्र में सबसे जुझारू मज़दूरों में से एक हैं। अन्य कारख़ानों के मज़दूरों के ऊपर हो रहे दमन का मामला हो या डाइकिन मज़दूरों के तबादले, निलम्बन, निष्कासन का मुद्दा या अस्थायी मज़दूरों को स्थायी करने की माँग, वे हमेशा संघर्ष करते रहे हैं। वे 2013 से अपनी यूनियन को पंजीकृत करवाने के लिए संघर्ष लड़ हैं।
वर्ष 2013 में मज़दूरों की यूनियन पर स्टे लगा दिया गया था और कम्पनी द्वारा उसके बाद 125 मज़दूरों को निलम्बित कर दिया था। मज़दूरों के दबाव के चलते कम्पनी ने पहले तो निकाले गये मज़दूरों को काम पर वापिस रखने का आश्वासन दिया, लेकिन मज़दूरों को काम पर बहाल करने की जगह 125 निलम्बित मज़दूरों में से 89 को बर्ख़ास्त कर दिया। इसके बावजूद मज़दूरों ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार कम्पनी पर निकाले गये मज़दूरों को काम पर वापिस रखने का दबाव बनाये रखा। जिसके फलस्वरूप कम्पनी को 39 मज़दूरों के अलावा अन्य मज़दूरों को दोबारा काम पर बहाल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। कम्पनी ने एक लिखित समझौते के तहत बाक़ी 39 श्रमिकों को एक जाँच कमिटी गठित कर 80 दिन के भीतर काम पर वापिस रखने का वादा किया। सिर्फ़ मैनेजमेण्ट के प्रतिनिधियों से मिलकर बनी इस एक तरफ़ा कमिटी ने बर्ख़ास्त किये गये 39 मज़दूरों में से सिर्फ़ 21 मज़दूरों को काम पर वापिस लेने का फ़ैसला किया। इसके अलावा 400 ठेका मज़दूरों को भी काम से निकाल दिया गया। अपने संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए मज़दूरों ने साल 2015 में अनिश्चितकाल के लिए श्रम विभाग, जयपुर पर धरना भी दिया। उन्होंने यूनियन पंजीकरण के लिए दोबारा से फ़ाइल लगायी। इस बीच कारख़ाना प्रबन्धन द्वारा मज़दूरों को निलम्बन, निष्कासन, तबादला करने की प्रक्रिया जारी रही। कारख़ाना प्रबन्धन ने सरकार-प्रशासन के साथ मिलकर दोबारा पंजीकरण प्रक्रिया को रोकने का प्रयास किया। लेकिन मज़दूर पीछे नहीं हटे और उन्होंने तीसरी बार यूनियन पंजीकरण के लिए फ़ाइल लगायी। इस दफ़ा मज़दूरों के संघर्ष की ताक़त और अदालत के हस्तक्षेप के कारण कम्पनी प्रबन्धन अपनी चाल में कामयाब नहीं हो सका और यूनियन को पंजीकरण मिल गया। किन्तु कारख़ाना प्रबन्धन यूनियन को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं था। उसने यूनियन से बात करने से इंकार कर दिया, तथा मज़दूरों को झण्डा नहीं लगाने दिया गया।
इसी क्रम में 8 जनवरी 2019 को हुई देशव्यापी हड़ताल के दौरान मज़दूर जब अपनी रैली निकाल रहे थे तब उन पर हमला किया गया। मज़दूरों पर झूठे मुक़दमे लगाये गये और उन्हें गिरफ़्तार किया गया। तथा एक झटके में क़रीब एक हज़ार मज़दूरों को काम से निकाल दिया। 8 जनवरी के बर्बर लाठीचार्ज और मज़दूरों की झूठे केस थोप कर की गयी गिरफ़्तारी के बाद नीमराना एसडीएम कार्यालय पर मज़दूरों की त्रिपक्षीय बैठक जब किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँची तो अपने गिरफ़्तार साथियों की जल्द रिहाई और काम से निकाले गये मज़दूरों की बहाली के लिए डाइकिन मज़दूरों ने 5 फ़रवरी 2019 को एसडीएम कार्यालय पर मज़दूर पंचायत का आह्वान किया। अपने संघर्ष से इलाक़े के अन्य मज़दूरों को जोड़ने और उनका समर्थन हासिल करने के लिए 17 फ़रवरी 2019 को नीमराना में मज़दूर रैली निकाली गयी। रैलियों और सभाओं के ज़रिये लगातार पूरे सेक्टर के मज़दूरों से आह्वान किया गया कि वो भी डाइकिन के मज़दूरों के समर्थन में आगे आये। डाइकिन के मज़दूरों ने एक बार फिर कम्पनी प्रबन्धन पर दबाव बनाने और अपनी माँगें मनवाने के लिए 20 फ़रवरी से क्रमिक अनशन पर बैठने का फ़ैसला लिया। डाइकिन के मज़दूरों का संघर्ष अभी भी अलवर जि़ला मुख्यालय पर क्रमिक अनशन के रूप में जारी है। ज़िला प्रशासन मज़दूरों के ग़ुस्से को शान्त करने के लिए मध्यस्थ्ता करने के लिए मजबूर तो हुआ लेकिन कम्पनी के साथ कई चक्र वार्ताओं के बाद भी मज़दूरों की माँगें नहीं मानी जा रही हैं। डाइकिन मज़दूरों के इस संघर्ष में ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन और बिगुल मज़दूर दस्ता लगातार साथ खड़ा है। 8 फ़रवरी को डाइकिन मज़दूरों पर हुए लाठीचार्ज के विरोध में ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन ने पूरे इलाक़े के मज़दूरों के बीच पर्चा वितरण किया। साथ ही दिल्ली स्थित बीकानेर हाउस पर आयोजित प्रदर्शन में शिरकत कर राजस्थान सरकार से भी डाइकिन मज़दूरों पर हुए बर्बर पुलिसिया लाठीचार्ज की भर्त्सना की। डाइकिन मज़दूरों के साथ हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ पूरे सेक्टर के मज़दूरों को आवाज़ उठानी ही होगी। क्योंकि जो आज डाइकिन के मज़दूरों के साथ हो रहा है, वही इस सेक्टर में काम करने वाले हर मज़दूर की कहानी है। फै़क्टरी या कम्पनी का नाम बदल जाने से वहाँ काम कर रहे मज़दूरों की समस्याएँ नहीं बदलतीं। जो परेशानियाँ डाइकिन के मज़दूरों की हैं, ठीक वही समस्याएँ अन्य कम्पनियों में काम कर रहे मज़दूरों की है। आज अलग-अलग फै़क्टरियों में मज़दूरों के अधिकारों का हनन बेरोकटोक एक ही तरीक़े से किया जा रहा है। इस शोषण को रोकने का और अपने अधिकार हासिल करने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वो है सेक्टरगत एकता स्थापित करना। आज डाइकिन मज़दूरों के बहादुर साथियों के संघर्ष के समर्थन में नीमराना के हर मज़दूर को आगे आना होगा।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2019
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन