अनियोजित विकास, प्रकृति की लूट, भ्रष्टाचार, पर्यावरणीय तबाही से धराली जैसी आपदाओं की मार झेलने को अभिशप्त उत्तराखण्ड
हिमालय के पर्यावरण की तबाही के अलग-अलग कारणों को मिलाकर अगर देखा जाये तो इसके बुनियाद में पूँजीवादी व्यवस्था की अराजकता, अमीरों की विलासिता और मुनाफे की अन्धी हवस है। हिमालय की आपदा केवल धराली जैसे गाँवों, शहरों, कस्बों की नहीं है बल्कि ये एक राष्ट्रीय आपदा है। छोटे-मोटे आन्दोलनों से इस समस्या का समाधान सम्भव नहीं है। हिमालय की इस तबाही को राष्ट्रीय फलक पर लाने और एक व्यापक आन्दोलन खड़ा करने की आज ज़रूरत है। नहीं तो बड़ी-बड़ी ठेका कम्पनियों को फायदा पहुँचाने, अमीरों की विलासिता और मुनाफे की अन्धी हवस में जिस प्रकार पूरे हिमालय की पारिस्थितिकीय तन्त्र को बर्बाद किया जा रहा है, आने वाले वक़्त में इसका खामियाजा पूरे उत्तर भारत को भुगतना पड़ सकता है। सरकारों के लिए ये आपदाएँ मौसमी चक्र बन चुकीं हैं, जो आती और जाती रहती हैं। उसके लिए जनता उजड़ती-बसती रहती है। लेकिन मुनाफ़ा निरन्तर जारी रहना चाहिए!