राजस्‍थान में भाजपा राज में जर्जर स्‍कूल व्‍यवस्‍था की भेंट चढ़े सात मासूम बच्‍चे

हिमेश

झालावाड़ (राजस्थान) के पिपलोढ़ी गाँव के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की छत गिरने से 7 बच्चों की दर्दनाक मौत हो गयी और 28 बच्चे गम्भीर रूप से घायल हो गये। यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि यह फ़ासीवादी भाजपा के राज में शिक्षा व्यवस्था व प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलती है।

25 जुलाई को अपने कक्षा में बैठे बच्‍चों से प्रार्थना करवायी जा रही थी, तभी छत में दरारें पड़नी शुरू हुईं और पत्थर नीचे गिरने लगे। बच्चों और ग्रामीणों ने पहले भी स्कूल भवन की जर्जर हालत की शिकायत प्रशासन तक पहुँचाई थी, लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी अनदेखी की गयी। जिस दिन हादसा हुआ, बच्चों ने शिक्षकों को भी छत की दरारों की जानकारी दी थी, लेकिन उन्हें डाँटकर कक्षा में बैठा दिया गया। कुछ ही देर बाद पूरी छत ढह गयी और सात मासूमों की मौके पर ही जान चली गयी।

यह कोई पहली घटना नहीं है। हादसे के महज तीन दिन बाद राजस्थान के ही जैसलमेर में एक सरकारी स्कूल में पहली कक्षा के छात्र पर लोहे का गेट गिर गया, जिससे उसकी मौत हो गयी। ये घटनाएँ बताती हैं कि भाजपा शासित राजस्थान में शिक्षा व्यवस्था और स्‍कूलों की क्या हालत है! सरकार ने मृत बच्चों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा और परिवार के किसी सदस्य को संविदा नौकरी देने का आश्वासन दिया है। भाजपा राज में वायदों का क्‍या होता है, यह तो सभी को पता है। लेकिन असली सवाल यह है कि सरकारी स्कूलों की ऐसी दुर्दशा क्यों है, और इनकी मरम्मत को लेकर गम्भीर क़दम क्यों नहीं उठाये जाते?

वजह साफ़ है – “जनता के वोटों” से सत्ता में आये ये नेता “चुनाव जीतने” के बाद जनता की समस्याओं से किनारा कर लेते हैं। विडम्बना यह है कि इन नेताओं के बच्चे प्राइवेट और नामी स्कूलों में पढ़ते हैं, वहीं आम जनता के बच्चे सरकारी स्कूलों की लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं। भाजपा की शिक्षा व्यवस्था को लेकर मंशा तब और साफ़ हो जाती है जब खुद राज्य के शिक्षा मन्त्री मदन दिलवर यह कहते हैं कि “स्कूलों की मरम्मत करना कोई घर का काम नहीं है जो अपनी जेब से पैसे देकर करवा लें।” वहीं दूसरी तरफ़ इसी सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति, हेफा, पीएम ई-विद्या योजना आदि जैसी स्कीमों को लागू करके शिक्षा का निजीकरण करने और निजी संस्थानों को लूटने की खुली छूट दी जा रही है। दिलवर जी केवल अपने घर के लिए जनता का पैसा लेते हैं, लेकिन घर से कुछ देते नहीं हैं। चलिये, कोई बात नहीं, लेकिन जनता का पैसा अदानी, अम्‍बानी, टाटा, बिड़ला को कर्ज माफ़ी और रियायतें देने में बाँटने के बजाय जनता के हित के कामों में तो कर सकते हैं! लेकिन क्‍यों करें? अरबों का चन्‍दा देने वाले धन्‍नासेठों की सेवा करने के लिए ही तो ये सत्‍ता में बैठे हैं! आम जनता के बच्‍चों की जान से इन्‍हें क्‍या लेना-देना?

सरकारी आँकड़ों पर भी एक नज़र दौड़ाएँ तो हम पाएँगे कि अकेले राजस्थान में ही 2710 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिन्हें मरम्मत की सख्त ज़रूरत है साथ ही 32% स्कूलों में बिजली नहीं है और 9% स्कूल तो ऐसे हैं जिनमें पीने का पानी की भी व्यवस्था नहीं है। राजधानी जयपुर में ही एक सर्वे के अनुसार 36% स्कूलों में छात्रों के लिए और 20% स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय ही नहीं बनाए गये हैं।

जब देश के सबसे बड़े राज्य की शिक्षा व्यवस्था की यह हालत है तो हम अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि देशभर में शिक्षा व्यवस्था का क्या स्तर होगा! कुछ आँकड़ों से इसकी पड़ताल की जा सकती है। भारत के करीब 22% सरकारी स्कूलों की हालत जर्जर है और तुरन्त मरम्मत की माँग करती है। करीबन 1.5 लाख स्कूलों में केवल एक शिक्षक पढ़ाता है जबकि 368वीं संसदीय रिपोर्ट के अनुसार में देश में 10 लाख शिक्षकों के पद खाली है जिन्हें तुरन्त भरा जा सकता है। व्यवस्था इतनी दयनीय हालत में है कि 40% स्कूलों में या तो शौचालय बनाया ही नहीं गया है या तो इस्तेमाल करने योग्य नहीं है।

असल में सरकार द्वारा सचेतन तौर पर और व्यवस्थागत तरीक़े से लगातार सरकारी शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद किया जा रहा है। सरकारी संस्थानों से निवेश रोककर उन्हें निजी हाथों में दिया जा रहा है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद से लगभग 90 हज़ार सरकारी स्कूलों को बन्द किया जा चुका है, जबकि लगभग 15% निजी स्कूलों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। बजट में शिक्षा पर लगातार कटौती की जा रही है, जो हैं उनका भी बड़ा हिस्सा निजी संस्थानों को दिया जा रहा है। उच्च शिक्षा की भी हालत कमोबेश वैसी ही है। निजी स्‍कूल व शिक्षा का माफिया भी भाजपा को करोड़ों में चन्‍दा देता है। तो इसमें ताज्‍जुब की बात क्‍या है कि सरकारी स्‍कूल व्‍यवस्‍था को जो-कुछ बचा था उसे भी हर जगह भाजपा सरकार बन्‍द और बरबाद कर रही हैं। कुल मिलाकर भाजपा के शासनकाल में शिक्षा जैसी बुनियादी चीज़ को भी खरीदने-बेचने के माल में तब्दील कर दिया गया है। जिसके पास ख़रीदने की औकात है आकर ख़रीद ले! आमजन के लिए बेहतर शिक्षा ले पाना लगातार मुश्किल किया जा रहा है। ऐसे में हमे सोचना होगा कि क्या हम अपने आने वाली पीढ़ी को यही भविष्य देना चाहते हैं?

 

मज़दूर बिगुल, अगस्त 2025

 

 

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