“ठेकेदार अपना आदमी है!”
मज़दूर ये नहीं समझते कि अगर वो अपना आदमी है तो क्या उसको हमारे अधिकार छीनने चाहिए यदि वो अपना आदमी है तो उसे तो हमारा ज़्यादा ख़्याल रखना चाहिए था, मगर वो तो बाकी सभी ठेकेदारों की तरह ही हमारी लूट कर रहा है। अगर उसको हमारा रिश्तेदार या गाँव का आदमी होकर भी हमारी लूट करने में थोड़ी-सी शर्म नहीं है, तो हम लोग अपना अधिकार माँगने में इतना क्यों शर्माते हैं मेरे विचार से तो इस मुनाफे की दौड़ में कोई अपना-पराया नहीं होता। अगर ठेकेदार ज़्यादा कमाई करने के लिए अपने रिश्तेदारों या गाँव-देहात के लोगों का ख़ून चूसने में संकोच नहीं करता तो हमें भी उससे अपने अधिकार लेने में हिचक नहीं दिखानी चाहिए।