Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

आपस की बात

हम ‘मज़दूर बिगुल’ के लेखों को चाव से पढ़ते हैं साथ ही इससे सीख भी लेते हैं तथा अपने अन्य मज़दूर भाइयों को भी इसके बारे में बताते हैं। साथियो मैं आप सबसे यही कहना चाहूँगा कि हमें एकजुट होना होगा और मज़दूर राज कायम करना होगा तभी हम अपने दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।

काम की तलाश में

आखिर समझ में नही आता कि इतनी बड़ी,
मज़दूर आबादी का ही भाग्य क्यों मारा जाता है,
भगवान इन्हीं लोगों से क्यों नाराज रहता है,

इस लूटतन्त्र के सताये एक नाबालिग मज़दूर की कहानी

मै पिण्टू, माधोपुरा बिहार का रहने बाला हूँ, अपने घर में बहन-भाई में सबसे बड़ा मैं ही हूँ। मेरी उम्र 15 साल है। मुझसे छोटी मेरी दो बहने हैं। 2010 मे मेरे पापा गुजर गये, तो अब मेरी माँ व हम तीन भाई-बहन ही हैं। ग़रीबी तो पहले से ही थी, लेकिन पापा के गुजरने के बाद दुनिया के तमाम नाते-रिश्तेदारों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया। गाँव के कुछ लोग गुड़गाँव मे काम करते थे तो मेरी माँ ने बड़ी मुसीबत उठाकर 4 रुपये सैकड़ा पर 1000 रुपये लेकर व जो काम करते थे उनसे हाथ जोड़कर मुझे जैसे-तैसे गुड़गाँव भेज दिया। क्योंकि घर मे सबसे बड़ा मैं ही था और गाँव पर भी मेरी माँ और मैं मज़दूरी करके ही पेट पाल रहे थे। खेत व जमीन मेरे पास कुछ नहीं है, बस रहने के लिए गाँव में एक झोपड़ी है।

इलाक़ाई एकता ही आज की ज़रूरत है!

यह बात तो जगजाहिर है कि आज सभी कम्पनियों मे मज़दूरों को ठेकेदार के माध्यम से, पीसरेट, कैजुअल व दिहाड़ी पर काम पर रखा जाता है। मज़दूरों को टुकड़ो मे बाँटने के लिए आज पूरा मालिक वर्ग सचेतन प्रयासरत है। ऐसी विकट परिस्थतियों मे भी आज तमाम मज़दूर यूनियन के कार्यकर्ता या मज़दूर वर्ग से गद्दारी कर चुकीं ट्रेड यूनियनें उसी पुरानी लकीर को पीट रहे हैं कि मज़दूर एक फैक्ट्री मे संघर्ष के दम पर जीत जाऐगा। बल्कि आज तमाम फैक्ट्रियों मे जुझारू आन्दोलनों के बाबजूद भी मज़दूरों को जीत हासिल नहीं हो पायी। क्योंकि इन सभी फैक्ट्रियों मे मज़दूर सिर्फ एक फैक्ट्री की एकजुटता के दम पर संघर्ष जीतना चाहते थे। दूसरा इन तमाम गद्दार ट्रेड यूनियनों की दलाली व मज़दूरों की मालिक भक्ति भी मज़दूरों की हार का कारण है। वो तमाम फैक्ट्रियाँ जिनमे संघर्ष हारे गये – रिको, बजाज, हीरो, मारूति, वैक्टर आदि-आदि।

जय भारत मारुती कम्पनी में मज़दूरों के काम के भयंकर हालात!

यह कम्पनी किसी भी मज़दूर को कम्पनी के तहत नही भर्ती करती है। सड़क से मज़दूरों को पकड़कर काम करवाने के लिए इस कम्पनी ने 12 ठेकेदार रख रखे हैं। जिसके माध्यम से मज़दूरों को भर्ती होना होता है। मशीनों के माध्यम से बहुत ही कठिन व उन्नत टेक्नोलोजी के काम को भी टुकड़ों मे बाँटकर एकदम इतना आसान बना दिया है कि किसी भी मशीन को 10-12 साल का बच्चा भी चला लेगा जैसे-लर्निंग मशीन, सी.एन.सी. मशीन, पंचिग मशीन, ड्रिल मशीन, मिग वेल्ड़िग मशीन, पावर प्रेस मशीन आदि-आदि सभी मशीनें इतनी आसान बना दी हैं। कि उन मशीनों में पीस रखकर सिर्फ एक बटन दबाना होता है।

कम्पनी न्यूनतम मज़दूरी नहीं देगी, मगर कम खर्च में बजट बनाकर जीने की “ट्रेनिंग” ज़रूर दिलवा देगी

‘जितना मिले उसमें ही खुश रहो’ जी हाँ यह राय है, ‘मैट्रिक्स क्लोथिंग प्रा.लि.’ कम्पनी की जो खाण्डसा रोड़ मोहम्मदपुर गाँव, गुड़गांव में स्थित है। इस कम्पनी के मालिक का नाम ‘गौतम नायर’ है। एक दिन शाम 3 बजे से कम्पनी के पर्सनल विभाग की तरफ से एक अभियान लिया गया कि कम्पनी के सभी मजदूरों को यह बताना है कि बचत कैसे होती है। इस अभियान मे पर्सनल विभाग के 5 लोगों का पूरा एक दस्ता चल रहा था। यह दस्ता चार मंजिला कम्पनी के चारो डिपार्ट मे (एक डिपार्ट मे सिलाई की कम से कम 8 लाइन और हर लाइन मे कम से कम 25 मजदूर) बाकायदा 10 मिनट के लिए एक लाइन को बन्द कराया जाता जिसमे एक लाइन के सभी मजदूरों को एक जगह इकट्ठा कर भाषण में यह बताया जाता है कि आपकी तनख्वा पी.एफ., ई.एस.आई. काटकर लगभग 4700 रु है और इतनी महँगाई मे 4700 रु मे खर्च चलाना मुश्किल पड़ता है। मगर आप लोग अगर अपना बजट बनाकर खर्च करें तो आप इस तनख्वा मे भी बचत कर सकते है। और उस बचत से आप एक दिन गाड़ी, प्लाट, घर खरीद सकते हैं।

मज़दूरों को दूसरों के भरोसे रहना छोड़कर ख़ुद पर भरोसा करना होगा!

हमें एक ऐसी ताकत बनानी होगी कि लूटेरे हमें जात-धर्म के नाम पर बाँट ही ना पाये। इसी तरह जब पल्लेदार के साथ कोई समस्या हो तो सेल्स मैन उनके साथ आये। जब भी किसी मज़दूर के साथ कोई भी परेशानी हो तो हम सबकी नींद हराम हो जाये। हमें जागना ही होगा-अपने हक़ के लिए, अपने अधिकार के लिए। हमारा धर्म है कि हम मेहनतकशों की जारी लूट के खिलाफ़ एकजुट होकर लड़े। दोस्तों, मेहनतकश साथियों हमारे लिए कोई लड़ने नहीं आने वाला चाहे वो ‘आम आदमी पार्टी’ हो अन्ना हजारे या नरेन्द्र मोदी। दोस्तो हम मज़दूरों को ही अब अपने कदम बढ़ाने होंगे।

हमें सच्ची आज़ादी चाहिए!

शाहों की नहीं, नेता की नहीं,
दौलत की हुकूमत आज भी है
इंसानों को जीने के लिए पैसे की जरूरत आज भी है।
वे लोग जो कपड़ा बुनते हैं, वही लोग अधानंगे हैं
यह कैसी सोने की चिड़िया
जहाँ पग-पग पर भिखमंगे हैं!

पूँजीपतियों को श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाने की और भी बड़े स्तर पर खुली छूट

पूँजीवादी लेखकों से इसके पक्ष में लेख लिखवाकर श्रम अधिकारों को क़ानूनी तौर पर ख़त्म करने का माहौल बनाया जा रहा है। इसका एक उदाहरण है झुनझुनवाला का 8-7-14 को दैनिक जागरण में छपा लेख। वह लिखता है कि श्रम क़ानूनों का ढीला करने से रोज़गार बढ़ेंगे, मज़दूरों का भला होगा। वह कहता है कि मनरेगा योजना भी ख़त्म कर दी जानी चाहिए और इस पर सरकार के सालाना ख़र्च होने वाले चालीस करोड़ रुपये पूँजीपतियों को सब्सिडी के रूप में देने चाहिए। उसके हिसाब से इस तरीके से रोज़गार बढ़ेगा। वह मोदी सरकार को कहता है कि राजस्थान की तरज पर तेज़ी से श्रम क़ानूनों में बदलाव किया जाये। झुनझुनवाला की ये बातें पूरी तरह मुनाफ़ाख़ोरों का हित साधने के लिए हैं। मज़दूर हित की बातें तो महज़ दिखावा है।

दुनिया के मज़दूर भाई एक हो।

प्यारे साथियो, अब समय आ गया है कि हम कारख़ानों में काम करने वाले ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में कार्य करने वाला मज़दूर, चाहे वह इमारत बनाने वाला हो या फिर कार या मोटर साइकिल – सभी को मिलकर एक साथ पूँजीवाद के खि़लाफ़ आवाज़ उठानी होगी, क्योंकि आजतक मज़दूरों की आवाज़ दबायी जाती थी। लेकिन अब दुनिया के मज़दूर एक हो रहे हैं और एक दिन पूँजीवाद को ख़त्म करके ही रहेंगे। मज़दूर राज क़ायम करके रहेंगे।