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कविता : असली कारण को पहचानो / आनन्‍द

काम की तलाश में घूम रहे हैं लोग,
एक-दूसरे की जाति-धर्म को
दोष दे रहे हैं लोग,
भाई-भतीजे, बुजुर्गों-रिश्तेदारों
को दोष दे रहे हैं लोग

मानवीय श्रम

अगर हमें मौक़ा मिले तो
इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं
मगर बेड़ियाँ से जकड़ रखा है हमारे
जिस्म व आत्मा को इस लूट की व्यवस्था ने
हम चाहते हैं अपने समाज को
बेहतर बनाना मगर
इस मुनाफ़े की व्यवस्था ने
हमारे पैरों को रोक रखा है
हम चाहते हैं एक नया समाज बनाना।
मगर इस पूँजी की व्यवस्था ने
हमें रोक रखा है

मजदूर एकता ज़ि‍न्दाबाद

यह बात आज हम लोग शायद न मान पायें मगर सच यही है कि लूट, खसोट व मुनाफे पर टिकी इस पूँजी की व्यवस्था में उम्रदराज लोगों का कोई इस्तेमाल नहीं है। और पूँजी की व्यवस्था का यह नियम होता है कि जो माल(क्योंकि पूँजीवादी व्यवस्था में हर व्यक्ति या रिश्ते-नाते सब माल के ही रूप होते हैं) उपयोग लायक न हो उसे कचरा पेटी में डाल दो। हम अपने आस-पास के माहौल से दिन-प्रतिदिन यह देखते होंगे कि फलाने के माँ-बाप को कोई एक गिलास पानी देने वाला भी नहीं जबकि उनके चार-चार लड़के हैं। फलाने के कोई औलाद नहीं और वो इतने गरीब है कि उनका बुढ़ापा जैसे-तैसे घिसट-घिसट कर ही कट रहा है। फलाने के लड़के नहीं है मगर लड़की व दामाद ने तीन-तिकड़म कर सम्पत्ति‍ पर कब्जा करके माँ-बाप को सड़क पर ला दिया।

काम की तलाश में

आखिर समझ में नही आता कि इतनी बड़ी,
मज़दूर आबादी का ही भाग्य क्यों मारा जाता है,
भगवान इन्हीं लोगों से क्यों नाराज रहता है,

जय भारत मारुती कम्पनी में मज़दूरों के काम के भयंकर हालात!

यह कम्पनी किसी भी मज़दूर को कम्पनी के तहत नही भर्ती करती है। सड़क से मज़दूरों को पकड़कर काम करवाने के लिए इस कम्पनी ने 12 ठेकेदार रख रखे हैं। जिसके माध्यम से मज़दूरों को भर्ती होना होता है। मशीनों के माध्यम से बहुत ही कठिन व उन्नत टेक्नोलोजी के काम को भी टुकड़ों मे बाँटकर एकदम इतना आसान बना दिया है कि किसी भी मशीन को 10-12 साल का बच्चा भी चला लेगा जैसे-लर्निंग मशीन, सी.एन.सी. मशीन, पंचिग मशीन, ड्रिल मशीन, मिग वेल्ड़िग मशीन, पावर प्रेस मशीन आदि-आदि सभी मशीनें इतनी आसान बना दी हैं। कि उन मशीनों में पीस रखकर सिर्फ एक बटन दबाना होता है।

इलाक़ाई एकता ही आज की ज़रूरत है!

यह बात तो जगजाहिर है कि आज सभी कम्पनियों मे मज़दूरों को ठेकेदार के माध्यम से, पीसरेट, कैजुअल व दिहाड़ी पर काम पर रखा जाता है। मज़दूरों को टुकड़ो मे बाँटने के लिए आज पूरा मालिक वर्ग सचेतन प्रयासरत है। ऐसी विकट परिस्थतियों मे भी आज तमाम मज़दूर यूनियन के कार्यकर्ता या मज़दूर वर्ग से गद्दारी कर चुकीं ट्रेड यूनियनें उसी पुरानी लकीर को पीट रहे हैं कि मज़दूर एक फैक्ट्री मे संघर्ष के दम पर जीत जाऐगा। बल्कि आज तमाम फैक्ट्रियों मे जुझारू आन्दोलनों के बाबजूद भी मज़दूरों को जीत हासिल नहीं हो पायी। क्योंकि इन सभी फैक्ट्रियों मे मज़दूर सिर्फ एक फैक्ट्री की एकजुटता के दम पर संघर्ष जीतना चाहते थे। दूसरा इन तमाम गद्दार ट्रेड यूनियनों की दलाली व मज़दूरों की मालिक भक्ति भी मज़दूरों की हार का कारण है। वो तमाम फैक्ट्रियाँ जिनमे संघर्ष हारे गये – रिको, बजाज, हीरो, मारूति, वैक्टर आदि-आदि।

मजदूर की कलम से कविता : मैंने देखा है… / आनन्‍द

मैंने देखा है…
वो महीने की 20 तारीख़ का आना
और 25 तारीख़ तक अपने ठेकेदार से
एडवांस के एक-एक रुपये के लिए गिड़गिड़ाना
और उस निर्दयी जालिम का कहना कि
‘तुम्हारी समस्या है।
मुझे इससे कोई मतलब नहीं,’ – मैंने देखा है।

एक मजदूर से बातचीत

साम-दाम-दण्ड-भेद जो तरीक़ा चले उन्हें चलाकर ये मालिक कारीगरों को निकालकर हेल्पर भरती कर रहा है। कारीगर महोदय अभी तक किसी एक पेशे के कारीगर हुआ करते थे। अब दर-दर की ठोकर खाकर घूम रहे हैं। अभी तक आराम के 7000 रुपये उठा रहे थे। अब हेल्परी के (3500-4000) रु. पा रहे हैं। मालिक तभी तक खुश रहता है जब तक उसको मुनाफा होता रहता है। तुम्हारी जी-हुजूरी से और बाबूजी-बाबूजी कहने से मालिक नहीं खुश होता है। किसी मजदूर को अगर बैठाकर तनख्वाह देनी पड़ जाये तो ज्यादा से ज्यादा कोई भी मालिक एक महीना तक तनख्वाह देगा उसके बाद भी अगर काम न आया तो फैक्ट्री में ताला डाल देगा। तुम चाहे कितने भी पुराने क्यों न हो। आज के दौर में अगर हमें ज़िन्दा रहना है तो मजदूर वर्ग के रूप में एकजुट होना होगा।

मालिक की मिठास के आगे ज़हर भी फेल

यह हालत हर फ़ैक्ट्री की है। मेरी उम्र ज़्यादा तो नहीं है, लेकिन पिछले 4 सालों में करीब 15 फ़ैक्ट्री में काम का अनुभव है। हर फ़ैक्ट्री का मालिक बड़ा मृदुभाषी मीठा दिखता है, मगर इनकी मिठास के आगे ”विष फेल” है।

मालिकों के लिए हम सिर्फ मुनाफा पैदा करने की मशीन के पुर्जे हैं

एक दिन वह पावर प्रेस की मशीन चला रहा था। मशीन पुरानी थी, मिस्त्री उसे ठीक तो कर गया था, लेकिन चलने में उसमें कुछ दिक्कत आ रही थी। तो उस नौजवान ने सोचा चलो मालिक को बता दे कि यह मशीन अब ठीक होने लायक नहीं रह गयी है। जैसे ही वह उठा, खुली हुई मशीन की गरारी में उसका स्वेटर फँस गया और मशीन ने उसकी बाँह को खींच लिया। स्वेटर को फाड़ती हुई, माँस को नोचती हुई मशीन से उसकी हड्डी तक में काफी गहरी चोट आयी। अगर उसके बगल वाले कारीगर ने तुरन्त उठकर मशीन बन्द नहीं कर दी होती तो वह उसकी हड्डी को भी पीस देती! उसके ख़ून की धार बहने लगी, पूरी फैक्ट्ररी में निराशा छा गयी। चूँकि उसका ई.एस.आई. कार्ड नहीं बना था। इसलिए मालिक ने एक प्राइवेट अस्पताल में उसे चार-पाँच दिन के लिए भर्ती कराया और कोई भी पुलिस कार्रवाई नहीं हुई। कोई हाल-चाल पूछने जाये तो किसी को कुछ भी बताने से मना कर देता और कहता, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!! शायद वह इसलिए नहीं बता रहा था कि कहीं मालिक को पता न लग जाये और वह जो कर रहा है, कहीं वह भी करना बन्द न कर दे।