सब मज़दूरों के हित एक जैसे हैं, और मालिकों के एक जैसे!
मैं, मेरा भाई और पिताजी तीनों काम करते हैं और फिर भी ढंग से खर्च नहीं चला पाते। लेकिन शहर में रहकर और जीवन के लिए संघर्ष करके मुझे यह एहसास ज़रूर हुआ कि काम करने वालों के हक़-अधिकार एक जैसे होते हैं और मालिकों के हित एक जैसे होते हैं चाहे फिर वे किसी भी जाति और धर्म के क्यों न हों। खान-पान को लेकर बनी सोच और ऊँच-नीच के तमाम विचार अब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते। मुझे दुकान पर जहाँ काम करते हैं वहीं एक साथी के माध्यम से भगतसिंह के विचारों के बारे में और मज़दूरों के अधिकारों के बारे में जानकारी मिली।