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निर्माण मज़दूर की कलम से 

मेरे मज़दूर भाईयो, मैं निर्माण क्षेत्र से जुड़ा मज़दूर हूँ। हमारा काम गाड़ियों से रेती, बजरी, सीमेण्ट आदि उतारना और लादना होता है। काम के दौरान न तो किसी भी प्रकार का सुरक्षा इन्तज़ाम होता और रोज़-रोज़ काम का मिलना भी निश्चित नहीं होता। बहुत बार खाली हाथ भी घर लौटना पड़ जाता है। बिगुल अखबार पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि हम दुनिया भर के मज़दूरों को क्यों संगठित होना चाहिए क्योंकि एकजुट होकर ही हम मालिक वर्ग को अपनी माँगों पर झुका सकते हैं। हम नरवाना के मज़दूरों ने कुछ महीने पहले हड़ताल की थी और अपनी कई माँगों को मनवाने में सफल रहे थे।

देश के निर्माण मज़दूरों की भयावह हालत, एक क्रान्तिकारी बैनर तले संगठित एकजुटता ही इसका इलाज

निर्माण कार्य में लगे मज़दूर असंगठित मज़दूर होते हैं। आज देश में लगभग 45 करोड़ संख्या इन्हीं असंगठित मज़दूरों की है, जो कुल मज़दूरों की आबादी का 90% के क़रीब है। लेकिन देश में बैठी मोदी सरकार ने आज पूरा इन्तज़ाम कर लिया है कि मज़दूरों का खून चूसने में कोई असर न छोड़ा जाये। आपको पता हो कि अभी पहले से मौजूद श्रम क़ानून इतने काफ़ी नहीं थे जो पूर्ण रूप से मज़दूरों के हकों और अधिकारों की बात कर सके, और किसी भी तरह की दुर्घटना होने पर उनके लिए किसी भी तरह की त्वरित कार्रवाई करे। अभी कहने को सही, कागज़ पर कुछ श्रम क़ानून मौजूद होते हैं। थोड़ा हाथ-पैर मारने पर और श्रम विभाग के कुछ चक्कर काटने पर गाहे-बगाहे कुछ लड़ाइयाँ मज़दूर जीत जाते हैं। साल में एक या दो बार श्रम विभाग के अधिकारी भी सुरक्षा जाँच के लिए (जो बस रस्मअदायगी ही होती है) निकल जाते हैं। लेकिन अम्बानी-अडानी जैसे पूँजीपतियों के मुनाफ़े को और बढ़ाने के लिए सरकार पुराने सारे श्रम क़ानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड लाने की तैयारी में है।

आपस की बात

हम ‘मज़दूर बिगुल’ के लेखों को चाव से पढ़ते हैं साथ ही इससे सीख भी लेते हैं तथा अपने अन्य मज़दूर भाइयों को भी इसके बारे में बताते हैं। साथियो मैं आप सबसे यही कहना चाहूँगा कि हमें एकजुट होना होगा और मज़दूर राज कायम करना होगा तभी हम अपने दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।