Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

एक मज़दूर की कहानी जो बेहतर ज़िन्दगी के सपने देखता था!

अब तक शायद प्रकाश आने वाली बेहतर ज़िन्दगी के सपने साथ लेकर इस दुनिया से विदा हो चुका होगा। जिस ज़मीन के टुकड़े की ख़ातिर उसने अपने आप को रोगी बनाया, उसे भी वह हासिल नहीं कर सका और जिस औलाद के लिए घर बनाने और ज़मीन लेने के बारे में सोचता था, वह भी प्रकाश से नाराज़ रहे, क्योंकि ज़मीन ख़रीदने के चक्कर में बच्चे छोटी-छोटी चीज़ों के लिए तरसते थे। वे प्रकाश की चिन्ताओं को नहीं समझते थे।

“अपना काम” की ग़लत सोच में पिसते मज़दूर

दोस्तो! मुझे तो यही समझ आता है कि चाहे वेतन पर काम करने वाले मज़दूर हो या पीस रेट पर सब मालिकों के ग़ुलाम ही हैं। इस गुलामी के बन्धन को तोड़ने के लिए हम मज़दूरों के पास एकजुट होकर लड़ने के सिवा कोई रास्ता भी नहीं है। मैं नियमित मज़दूर बिगुल अख़बार पड़ता हूँ। मुझे लगता है कि मज़दूर वर्ग की सच्ची आज़ादी का रास्ता क्या होगा; यहीं इस अखबार के माध्यम से बताया जाता है।

चाहे हरियाणा हो या बंगाल सब जगह मज़दूरों के हालात एक जैसे हैं

हरियाणा सरकार द्वारा तय न्यूनतम मज़दूरी सिर्फ़ किताबों की शोभा बढाती है जबकि असल में मज़दूर मात्र 3000 से 3500 प्रति महीना मिलती है। कहने को तो हमारे संविधान में 250 से ऊपर श्रम क़ानून हैं लेकिन मज़दूरों के लिए इनका कोई मतलब नहीं है। इन मज़दूरों के शारीरिक हालत तो और भी दयनीय है, 35-40 की आयु में ही 55-60 वर्ष के दिखाई देते हैं। पूँजीवादी मुनाफे की अन्धी हवस ने इनके शरीर से एक एक बूँद ख़ून निचोड़कर सिक्कों में ढाल दिया है। मज़दूर वर्ग को अब समझना होगा कि इस व्यवस्था में इनका कोई भविष्य नहीं है। उसे संगठित होकर इस आदमखोर पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकना होगा और एक शोषण विहीन समाज की स्थापना करनी होगी तब जाकर सही मायनों में मज़दूर वर्ग मनुष्य होने पर गर्व महसूस कर सकता है।

कथित आज़ादी औरतों की

आज कितना भी प्रगतिशील विचारों वाला व्यक्ति क्यों न हो वो सामाजिक परिवेश की जड़ता को अकेले नहीं तोड़ सकता और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि औरत वर्ग सिर्फ़ पुरुष वर्ग की खोखली बातों से नहीं आज़ादी के लिए तो महिलाओं को ही एक क़दम आगे बढ़कर दुनिया की जानकारी हासिल करनी होगी। और अपनी मुक्ति के लिए इस समाज से संघर्ष चलाना होगा। और दूसरी बात यह है कि महिला वर्ग के साथ ही पुरुष वर्ग का यह पहला कर्तव्य बनता है कि वो अपनी माँ-बहन, पत्नी या बेटी को शिक्षित करें। उनको बराबरी का दर्जा दे। उनको समाज में गर्व के साथ जीना सिखाये, उनको साहसी बनाये। क्योंकि अगर आप अपने महिला वर्ग के साथ अन्याय, अत्याचार करेंगे तो समाज में आप भी कभी बराबरी का दर्जा नहीं पा सकेंगे क्योंकि समाज के निर्माण का आधार महिलायें ही हैं। एक इंसान को जन्म से लेकर लालन-पालन से लेकर बड़ा होने तक महिलाओं की प्रमुख भूमिका है। अगर महिलायें ही दिमाग़ी रूप से ग़ुलाम रहेंगी तो वो अपने बच्चों की आज़ादी, स्वतन्त्रता व बराबरी का पाठ कहाँ से पढ़ा पायेंगी। दोस्तों आज पूँजीपति भी यही चाहता है कि मज़दूर मेरा ग़ुलाम बनकर रहे। कभी भी हक़-अधिकार, समानता व बराबरी की बात न करे और आज की स्थिति को देखते हुए पूँजीपति वर्ग की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं है।

एक छोटी सी जीत

मैं जितेन्द्र मैनपुरी (यू.पी.) का रहने वाला हूँ। मुझे गुड़गाँव आये 4 महीने हुए है और मैं गुड़गाँव पहली बार आया हूँ। हम अपने परिवार के तीन लोग साथ में है और तीनों एक ही फैक्ट्ररी ओरियण्ट क्रॉफ्ट, 7 पी सेक्टर-34 हीरो होण्डा चौक गुड़गाँव में चार महीने से काम कर रहे है। वैसे तो इस फैक्ट्री में कोई संगठन या एकता नहीं है। और न ही हो सकती है क्योंकि करीब 6 से 7 ठेकेदार के माध्यम से हेल्पर, कारीगर, प्रेसमैन, एक्पॉटर वगैरह भर्ती होते हैं जिनकी माँगे अलग है, काम अलग है और एक-दूसरे से कोई वास्ता नहीं है। मगर फिर भी एक छोटी सी जीत की खुशी तो होती ही है। ठीक इसी प्रकार बड़े पैमाने पर मज़दूर साथी लड़े तो हम सबकी ज़िन्दगी ही बदल जाये।

एक मज़दूर की आपबीती

दबी आवाज़ में एक ने कहा भी चलो हम सब मिलकर उससे (ठेकेदार) पूछते है कि ऐसा करने का तुमको क्या अधिकार बनता है? मगर साहस न हुआ किसी को। सब एकदूसरे का मुँह ताक रहे थे कि कोई आगे चल पड़े। किसी की हिम्मत न पड़ी क्योंकि सबको डर था कि कहीं मेहनत का पैसा भी न डूब जाये। और करीब 15-20 मज़दूरों ने तनख्वाह लेकर काम छोड़ दिया; जिसमें एक मैं भी था। फिर कल ठेकेदार सतीश का फोन आया कि आजा काम दबाकर चल रहा है तब मैंने फोन पर अपने दिल की भड़ास निकाली।

समयपुर, लिबासपुर का लेबर चौक

घटनाए और भी बहुत सारी है। मगर समस्या का दुखड़ा रोने से कुछ नहीं होता। मुख्य जड़ तो यही है। कि जब तक हम अपनी ताकत को नहीं पहचानते तब तक कुछ नहीं कर पाएंगे। एक आदमी आऐगा और दो सौ लोगों के बीच किसी में किसी एक मजदूर भाई को पीटकर चला जाऐगा।

एक मेहनतकश औरत की कहानी…

इस पूँजी की व्यवस्था में बिना पूँजी के लोगों की ऐसी ही हालत हो जाती है जैसे अभी पूजा की है। एकदम बेजान, चेहरा एकदम सूखा हुआ। 28 साल की उम्र में उसको स्वस्थ और सेहतमन्द होना चाहिए था मगर इस उम्र में जिन्दगी का पहाड़ ढो रही है और दिमागी रुप से असुन्तिल हो गयी है।

नम्बर एक हरियाणा की असलियत

सुबह 9:30 बजे से शाम 6:15 की ड्यूटी करने पर 8 घण्टे के पैसे मिलते हैं। इसमें से मज़दूर के 45 मिनट लंच के नाम पर कट जाते हैं। पूरे महीने की तनख्‍वाह 10 से 15 तारीख़ के बीच में मिलती है। 4300 रुपये महीना पर काम करने वाले वर्कर को 30 से 15 तारीख़ के बीच में अक्सर रुपयों की ज़रूरत पड़ जाती है। उस समय, ठेकेदार के आगे-पीछे भीख माँगते रहो, तब भी वे एक रुपया तक नहीं देते और ऐसे समय में 10 रुपये सैकड़ा के हिसाब से ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता है क्योंकि खाने-पीने का सामान, किराया-भाड़ा, दवा, सब्जी व किसी अन्य बुनियादी ज़रूरत का सामान उधारी की दुकान पर नहीं मिलता। इतना सब करने के बाद भी मज़दूर के घण्टे काटना व हाजिरी काट लेना जैसी चीज़ें चलती रहती हैं। अगर काम है तो जबरन ओवरटाइम करना पड़ता है, और अगर काम नहीं है तो जबरन भगा भी देते हैं। अगर कम्पनी में ही बने रहो तो हाजिरी ही नहीं चढ़ायेंगे। यहाँ काम करने के बाद हरियाणा के नम्बर एक होने की असलियत पता चली और यह अन्दाजा हुआ कि हरियाणा को असल में किन थैलीशाहों के लिए नम्बर एक कहा जाता होगा!

मजदूर की कलम से कविता : मैंने देखा है… / आनन्‍द

मैंने देखा है…
वो महीने की 20 तारीख़ का आना
और 25 तारीख़ तक अपने ठेकेदार से
एडवांस के एक-एक रुपये के लिए गिड़गिड़ाना
और उस निर्दयी जालिम का कहना कि
‘तुम्हारी समस्या है।
मुझे इससे कोई मतलब नहीं,’ – मैंने देखा है।