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(मज़दूर बिगुल के फ़रवरी 2020 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
सीएए-एनपीआर-एनआरसी
सरकार की धोखेबाज़ी से सावधान! एनपीआर ही एनआरसी है! सिविल नाफ़रमानी की राह चलेंगे! एनपीआर फ़ॉर्म नहीं भरेंगे!
सीएए+एनपीआर+एनआरसी सभी के लिए क्यों ख़तरनाक हैं; सिर्फ़ मुसलमानों पर ही इसकी मार नहीं पड़ेगी
असम में डिटेंशन कैम्प के भीतर क्या-क्या होता है / नितिन श्रीवास्तव (बीबीसी संवाददाता)
अपने लिए जेल ख़ुद बना रहे हैं असम में एनआरसी से बाहर हुए मज़दूर / अफ़रोज़ आलम साहिल
एनआरसी लागू नहीं हुआ पर ग़रीबों पर उसकी मार पड़नी शुरू भी हो गयी!
आन्दोलन : समीक्षा-समाहार
फ़ासीवाद/साम्प्रदायिकता
भाजपा शासन के आतंक को ध्वस्त कर दिया है औरतों के आन्दोलन ने!
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की देशभक्ति का सच
संघी नेताओं के बच्चे ऐशो-आराम में पलेंगे : नेता, सेठ और अफ़सर बनेंगे; जनता के बच्चे ज़हरीले प्रचार के नशे में पागल हत्यारे बनेंगे
हँसी भी फ़ासीवाद-विरोधी संघर्ष का एक हथियार है! / कविता कृष्णपल्लवी
संघी ढोल की पोल
सियाचिन में खड़े जवान भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बटोरने का साधन हैं!
ये झूठ है! झूठ है! झूठ है!
शिक्षा/रोज़गार
कारख़ाना इलाक़ों से
शिवम ऑटोटेक के मज़दूरों की जीत मगर होण्डा के मज़दूरों का संघर्ष 80 दिन बाद भी जारी
कला-साहित्य
कचोटती स्वतंत्रता / तुर्की के महाकवि नाज़िम हिकमत
ज़िम्बाब्वे के प्रमुख कवि चेन्जेराई होव की चार कविताएँ