भारत में फ़िलिस्तीन के समर्थन में चलाया जा रहा है बीडीएस (BDS) अभियान!
बिगुल संवाददाता
फ़िलिस्तीन में इज़रायली सेटलरों द्वारा जारी जनसंहार इस सदी का सबसे बड़ा मानवीय संकट है और दुनियाभर में लोग इस क़त्लेआम के ख़िलाफ़ और फ़िलिस्तीनी मुक्ति-संघर्ष के समर्थन में सड़कों पर उतरकर प्रतिरोध कर रहे हैं।
ग़ज़ा में पैदा की गयी भुखमरी, बीमारी और मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए कई देशों से इन्साफ़पसन्द लोग राहत सामाग्री लेकर समुद्र के रास्ते निकल पड़े थे, मगर वहाँ पहुँचने से पहले ही उनके जहाज़ (मैडलीन) को सेटलरों की फ़ौज ने बन्धक बना लिया और राहत सामग्रियाँ ज़ब्त कर ली, सड़क के रास्ते जा रहे लोगों को तो काफ़ी पहले ही अलग-अलग देशों की सीमाओं पर रोक दिया गया।
प्रतिरोध के इस रूप के अलावा कई देशों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में बी.डी.एस. आन्दोलन चलाया जा रहा है। इस आन्दोलन का मक़सद है कि फ़िलिस्तीनियों को भी बाक़ी इन्सानों की तरह जीने का समान अधिकार मिलना चाहिए। उन्हें क़ैद करने वाली ताक़तों को पूरी दुनिया से अलग-थलग कर उन्हें कमज़ोर और ख़त्म किया जाये। दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद-विरोधी आन्दोलन से प्रेरित, बी.डी.एस आन्दोलन यह आह्वान करता है कि इज़रायल पर अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन करने के लिए दबाव डाला जाये।
भारत में भी बीडीएस अभियान को काफ़ी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। देश के कई राज्यों में फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन (IPSP) द्वारा यह अभियान चलाया जा रहा है। पटना, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, हरियाणा समेत कई अन्य जगहों पर इस अभियान के तहत गलियों-मुहल्लों में व्यापक पर्चा वितरण किया जा रहा है, घर-घर जाकर लोगों को फ़िलिस्तीन के संघर्ष से अवगत कराया जा रहा है। इज़रायली ज़ायनवादियों द्वारा की जा रही बर्बरता के पीछे के कारणों को बताते हुए लोगों से यह अपील की जा रही है कि वे ‘बीडीएस’ अभियान के साथ जुड़ें और इज़रायली सेटलर प्रोजेक्ट की मददगार कम्पनियों का हर रूप में पूर्ण बहिष्कार करें।
दिल्ली के करावल नगर, खजूरी, शाहबाद देरी, पुरानी दिल्ली इलाक़े के साथ विश्वविद्यालय कैम्पसों में भी बीडीएस अभियान से लोगों को जोड़ा जा रहा है और अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शन आयोजित करके साम्राज्यवादी मीडिया द्वारा फैलाये जा रहे झूठे प्रचार का पर्दाफ़ाश किया जा रहा है। लोगों के बीच इन अभियानों के बढ़ते असर को देखकर पुलिस प्रशासन द्वारा लगातार इसे रोकने की कोशिश की जा रही है, कभी डरा-धमकाकर तो कभी फ़र्ज़ी मुक़दमे लगाकर!
पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों जैसे कि गोरखपुर, इलाहाबाद, बनारस, मऊ और अम्बेडकरनगर में भी जब फ़िलिस्तीन की मुक्ति के समर्थन में नियमित पर्चा वितरण, नुक्कड़ सभाओं , पोस्टर इत्यादि के माध्यम से बात पहुँचायी जा रही है। फ़ासीवादी योगी सरकार को यह प्रदर्शन फूटी आँखों नहीं सुहा रहे हैं। अपने चरित्र के अनुरूप ही इन भारतीय फ़ासीवादियों की भी इज़रायली ज़ायनवादी-फ़ासिस्टों से एकता बनती है और इसी वजह से पहले ही योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में फ़िलिस्तीन के समर्थन में कोई प्रदर्शन आदि न होने देने की बात कही थी। इसके बावजूद तमाम दमनात्मक कार्रवाइयाँ सहते हुए भी ‘फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ के कार्यकर्ता लोगों के बीच बीडीएस अभियान को लोकप्रिय बनाने और सच को लोगों तक पहुँचाते हुए फ़िलिस्तीन के पक्ष में जनसमर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। ऐसी ही एक दमनात्मक कार्रवाई का सामना ‘फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ के कार्यकर्ताओं को गोरखपुर में करना पड़ा जब एक नुक्कड़ सभा के बाद भीड़ इकट्ठा करके सड़क जाम करने आदि का फ़र्ज़ी आरोप लगाते हुए तिवारीपुर थाने की पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं पर फ़र्ज़ी मुक़दमा दायर कर दिया। इन कार्यकर्ताओं ने जब इस फ़र्ज़ी एफ़आईआर को हाईकोर्ट में चुनौती दी तो जज ने यह कहते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया कि ‘यह नेशनल पॉलिसी का मामला है’।
यह टिप्पणी स्पष्ट करती है कि एक तरफ़ जब भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भर के इन्साफ़पसन्द नागरिक इज़रायली क़त्लेआम के विरुद्ध खड़े हैं, वहीं भारतीय फ़ासीवादी एकदम नंगे रूप में इस भयंकर मानवीय त्रासदी में हत्यारे ज़ायनवादियों का खुलकर साथ दे रहे हैं। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश में इन्साफ़सन्द नागरिकों की बहुत बड़ी आबादी ज़ायनवादी नरसंहार के विरुद्ध खड़ी है और यह इस आन्दोलन का असर ही है कि फ़ासीवादी सरकार को इसे रोकने के लिए पूरी ज़ोर आज़माइश करनी पड़ रही है। बीडीएस कैम्पेन को लोगों का खुला समर्थन मिल रहा है और लोग इज़राइली कम्पनियों के उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं। कई इलाक़ों में लोगों ने ख़ुद भी ज़ायनवादियों को समर्थन करने वाली कम्पनियों और उत्पादों के बहिष्कार की जानकारी देने वाले पोस्टर लगा रखे हैं। इलाहाबाद, बनारस और लखनऊ में विभिन्न नागरिक संगठनों ने संयुक्त तौर पर प्रदर्शन करके इस क़त्लेआम को रोकने के लिए प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। इन प्रदर्शनों में भी ‘फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
पुणे में फ़िलिस्तीन के समर्थन में चलाये जा रहे शान्तिपूर्ण अभियान पर संघी गुण्डों का कायराना हमला और पुलिस का मूकदर्शक बनकर देखते रहना और बाद में फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता ज़ाहिर करने वाले नौजवानों पर ही फ़र्ज़ी आरोप मढ़ देना, इस बात को ही स्पष्ट करता है कि फ़ासीवादी ताक़तों की एकता ज़ायनवादी हत्यारों के साथ ही बनती है और सच को दबाने के लिए दोनों ही बर्बरता के किसी भी हद तक जा सकते हैं। मुम्बई पुलिस द्वारा भी ठीक यही दमनात्मक कार्रवाई आईपीएसपी (IPSP) के कार्यकर्ताओं के ऊपर की गयी। इसके अलावा हैदराबाद और विजयवाड़ा में भी फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन में लोग खुलकर सामने आ रहे हैं और अपनी एकजुटता जाहिर कर रहे हैं।
हैदराबाद में जनसम्पर्क अभियान के तहत मुशीराबाद, अशोक नगर, भगतसिंह नगर, सुन्दरैय्या पार्क, उस्मानिया विश्वविद्यालय, ई.एफ.एल.यू (EFLU), ओल्ड सिटी और लामाकाँ में जाकर लोगों से संवाद किया जा रहा है।
फ़िलिस्तीन के संघर्ष को लेकर बातचीत में लोगों के बीच गहरी संवेदना देखने को मिली और यह बहुत प्रेरक रहा कि छोटे बच्चे भी इस विषय को समझ रहे थे और अपना पक्ष स्पष्टता से रख रहे थे। स्थानीय आबादी ने अभियान में हिस्सेदारी के साथ-साथ आर्थिक सहयोग भी किया।
आन्ध्र प्रदेश के विजयवाड़ा और ताड़ेपल्ली की मज़दूर बस्तियों में भी लोगों ने फ़िलिस्तीन के मसले पर बीडीएस आन्दोलन की ज़रूरत को समझा और ज़ायनवादी इज़रायल के विरुद्ध लोगों को संगठित करने की ज़रूरत पर बल दिया। विजयवाड़ा के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में जैसे कि लोयला कॉलेज, गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, आचार्य नागार्जुन यूनिवर्सिटी में भी बीडीएस मुहिम जारी है और इसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
तिरुवनंतपुरम में बीडीएस अभियान के तहत पर्चे बाँटे गये और सेण्ट्रल पार्क, विथुरा चौक के आसपास पोस्टरिंग की गयी।
अलग-अलग जगहों पर चलाये गये अभियान में फ़िलिस्तीन की पूरी स्थिति से परिचित होने के बाद लोगों ने इसमें पहलक़दमी दिखाते हुए इज़रायली उत्पादों के बहिष्कार की बात कि और सक्रिय तौर पर अपनी दुकानों, घरों में बीडीएस के स्टिकर लगाये। उन भारतीय कम्पनियों के बहिष्कार की भी बात की गयी जो मुनाफ़े के सौदों के लिए हत्यारे इज़रायल के साथ व्यापार कर रहें हैं।
उपरोक्त राज्यों के कुछ शहरों में स्टारबक्स, डोमिनोज़, टाटा की कम्पनी ज़ूडियो और रिलायंस जैसी कम्पनियों के आउटलेट्स के बाहर भी प्रदर्शन किया गया, जिन्होंने अबतक सेटलरों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाये हुए हैं। लोगों के बीच पर्चे बाँटकर फ़िलिस्तीन की आज़ादी का समर्थन करने की अपील करते हुए, बीडीएस मुहिम को तेज़ करने की बात पहुँचायी गयी और इज़रायल से सम्बन्ध रखने वाली तमाम कम्पनियों के सामान को न ख़रीदने के लिए कहा गया।
फ़िलिस्तीन की लड़ाई आज दुनियाभर के न्यायपसन्द लोगों की लड़ाई बन गयी है। साम्राज्यवादी ताक़तों द्वारा फ़िलिस्तीन के बारे में फैलाये जा रहे झूठ और ग़लत ख़बरों का खण्डन करना आज बेहद ज़रूरी हो गया है।
फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन (IPSP) द्वारा चलाये जा रहे इस अभियान में लोगों को फ़िलिस्तीनी अवाम के संघर्षों से और उनके इतिहास से परिचित कराया जा रहा है और यह बात भी बतायी जा रही है कि इज़रायली सेटलर औपनिवेशिक राज्य ने शुरू से ही फ़िलिस्तीनी क़ौम को ख़ून की नदी में डुबोने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी है। असल में इज़रायल कोई देश नहीं है बल्कि एक जारी औपनिवेशिक परियोजना है, जिसका अस्तित्व ही फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की क़ीमत पर क़ायम हुआ है। इस सेटलर बस्ती ने पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शह पर और उसके बाद अमरीकी साम्राज्यवाद की मदद के दम पर फ़िलिस्तीनी क़ौम पर एक भीषण युद्ध थोप रखा है। इज़राइल का काम मध्यपूर्व में अमरीकी सैन्य चौकी का काम करना है और उसके आर्थिक और राजनीतिक हितों की सुरक्षा करना है और इसे ही क़ायम रखने के लिए वह बर्बरता की सभी सीमाएँ पार कर रहा है, जिसके ख़िलाफ़ बोलना आज का सबसे ज़रूरी कार्यभार है।
मज़दूर बिगुल, जून 2025