Category Archives: साम्राज्‍यवाद

ग़ैर-सरकारी संगठनों का सरकारी तन्त्र

सरकारी योजनाओं में ग़ैर-सरकारी संगठनों की घुसपैठ को समझा जा सकता है। नब्बे के दशक में जब भारत में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियाँ लागू की गयीं, उस समय हमारे देश में एनजीओ की संख्या क़रीब एक लाख थी। आज इन नीतियों ने जब देश की मेहनतकश जनता को तबाह-बर्बाद करने में कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं रख छोड़ी है, इनकी संख्या 32 लाख 97 हज़ार तक पहुँच चुकी है (सीबीआई की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में दाखि़ल रिपोर्ट)। यानी देश के 15 लाख स्कूलों से दुगने और भारत के अस्पतालों से 250 गुने ज़्यादा!

विश्व बैंक की आँखों में चुभते श्रम-क़ानून

यूनिवर्सल बेसिक इनकम व सामाजिक बीमे की इस धारणा का अर्थ है मज़दूरों के वेतन और सुरक्षा का दायि‍त्व पूँजीपतियों के कन्धों से उतार कर ख़ुद मज़दूरों के ि‍सर ही डाल दिया जाये और पूँजीपतियों को श्रम का ख़ून चूसने, आम मेहनतकश लोगों द्वारा भरे गये करों को लूटकर मुनाफ़़ा (जो कि सार्वजनिक न होकर नंगे रूप में पूर्णतया निजी होता है) दोहने की खुली छूट दे दी जाये।

बर्बर ज़ायनवादियों ने ग़ाज़ा में करवाया एक और क़त्लेआम – फ़िलिस्तीनियों‍ ने पेश की बहादुराना प्रतिरोध की एक और मिसाल

अत्याधुनिक हथियारों से लैस इज़रायली सेना का मुक़बला ग़ाज़ावासी पत्थरों और गुलेल से कर रहे हैं और इस प्रक्रिया में बहादुराना प्रतिरोध की एक अद्भुत मिसाल पेश कर रहे हैं। इस बहादुराना संघर्ष को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से समर्थन मिल रहा है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और अफ़्रीका से लेकर अफ़्रीका तक में ग़ाज़ा के समर्थन और इज़रायल के विरोध में रैलियाँ निकल रही हैं और फ़िलिस्तीनियों का संघर्ष स्थानीय न रहकर वैश्विक रूप धारण कर चुका है। कई देशों में इज़रायल के बहिष्कार का आन्दोलन गति पकड़ रहा है। ऐसे में स्पष्ट है कि बर्बर ज़ायनवादी ग़ाज़ा को नेस्तनाबूद करने के लिए जितना ही ज़्यादा बलप्रयोग करेंगे उतनी ही तेज़ी से उनके ख़िलाफ़ जारी मुहिम दुनिया भर में फैलेगी।

यमन संकट और अन्तरराष्ट्रीय मीडिया की साज़िशी चुप्पी

यमन में मौजूदा उथलपुथल की तार तो अरब बहार के समय से ही जोड़ी जा सकती है जब यमन में भी ट्यूनिशिया, मिस्र की तरह ही लोग तत्कालीन राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए थे। यमन अरब के सबसे ग़रीब देशों में से है जहाँ तक़रीबन 40% आबादी ग़रीबी में रहती है। और इसी ग़रीबी, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को लेकर जनता का गुस्सा लगातार सालेह के ख़िलाफ़ बढ़ रहा था जिसने यमन पर 33 सालों तक (पहले यमन अरब गणतन्त्र के राष्ट्रपति के तौर पर और 1990 में दक्षिणी यमन के साथ एकीकृत होने के बाद पूरे यमन में) बतौर राष्ट्रपति हुक़ूमत की।

उत्तरी कोरिया के मिसाइल परीक्षण और तीखी होती अन्तर-साम्राज्यवादी कलह

कोरिया का पिछली एक सदी का इतिहास और इसका वर्तमान इस बात की गवाही भरता है कि कैसे अमेरिका छोटे देशों को अपने सैन्य अड्डे बनाकर विरोधियों को घेरने के लिए इस्तेमाल करता है और उनकी आर्थिक लूट करता है। जो देश इसकी इस “परियोजना” में शामिल नहीं होता, उसे “शैतान देश” घोषित करके अलग-थलग करना, व्यापारिक पाबन्दियाँ लगाकर ग़रीबी में धकेलना इसका मुख्य हथियार है। और अगर कोई यह भी झेल जाता है तो सीधा फ़ौजी हमला। सीरिया, इराक़, लीबिया, अफ़ग़ानिस्तान… साम्राज्यवादी चालों का शिकार बनने वालों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है।

विश्व स्तर पर सुरक्षा ख़र्च और हथियारों के व्यापार में हैरतअंगेज़ बढ़ोत्तरी

अमेरिका “शान्ति” का दूत बनकर कभी इराक़ के परमाणु हथियारों से विश्व के ख़तरे की बात करता है और कभी सीरिया से, कभी इज़राइल द्वारा फि़लिस्तीन पर हमले करवाता है, कभी अलक़ायदा, फि़दाइन आदि की हिमायत करता है कभी विरोध, विश्व स्तर पर आतंकवाद का हौवा खड़ा करके छोटे-छोटे युद्धों को अंजाम देता है, ड्रोन हमलों के साथ पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, यमन, लीबिया, इराक़, सुमालिया आदि मुल्क़ों में मासूमों का क़त्ल करता है और किसी को भी मार कर आतंकवादी कहकर बात ख़त्म कर देता है। दो मुल्क़ों में आपसी टकरावों या किसी देश के अन्दरूनी टकरावों का फ़ायदा अपने हथियार बेचने के लिए उठाता है जैसे — र्इरान और इराक़, इज़राइल और फि़लिस्तीन, भारत और पाकिस्तान, उत्तरी और दक्षिणी कोरिया के झगड़े आदि। इसके बिना देशों के अन्दरूनी निजी झगड़ों जैसे – मिस्त्र, यूक्रेन, सीरीया आदि से भी फ़ायदा उठाता है। ये सारी करतूतें अमेरिका अपने हथियार बेचने के लिए अंजाम देता है।

अफ्रीका में ‘आतंकवाद के ख़ि‍लाफ़ युद्ध’ की आड़ में प्राकृतिक ख़ज़ानों को हड़पने की साम्राज्यवादी मुहिम

पूँजीवाद के उभार के दौर में इस महाद्वीप की भोली-भाली मेहनतकश जनता को ग़ुलाम बना कर पशुओं की तरह समुद्री जहाज़ों में लाद कर यूरोप और अमेरिका की मण्डियों में बेचा जाता था। अमेरिकी इतिहासकार एस.के. पैडोवर लिखते हैं कि मशीनरी और क्रेडिट आदि की तरह ही सीधी ग़ुलामी हमारे औद्योगीकरण की धुरी है। ग़ुलामी के बिना आपके पास कपास और कपास के बिना आपका आधुनिक उद्योग नहीं खड़ा हो सकता। ग़ुलामी व्‍यवस्‍था ने ही उपनिवेशों को सम्‍भव बनाया, और उपनिवेशों ने जिन्होंने विश्व व्यापार को जन्म दिया। विश्व व्यापार बड़े स्तर के मशीनी उद्योग की ज़रूरत है। मज़दूर वर्ग के शिक्षक कार्ल मार्क्स ने भी, अफ्रीका की मेहनतकश जनता को ग़ुलाम बनाकर, पूँजीवादी उद्योग में, स्थिर मानवीय पूँजी के तौर पर उपयोग करने का अमानवीय कारनामों का ज़िक्र किया है।

अमेरिका है दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी!

अमेरिकी साम्राज्यवादी पूरी दुनिया के पैमाने पर आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का दावा करते हैं। सच्चाई यह है कि स्वयं अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश है। आज जिन इस्लामी कट्टरपन्थियों से लड़ने के नाम पर इराक़, अफगानिस्तान और दुनिया के कई देशों में अमेरिका बमबारी, नरसंहार और सैनिक कब्ज़ों, का सिलसिला जारी रखे हुए है, वे उसी के पैदा हुए भस्मासुर हैं। अमेरिका आतंकवाद के नाम पर दुनिया की जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए है। वह अपने साम्राज्यवादी वर्चस्व के लिए युद्ध और आतंक का क़हर बरपा कर रहा है। अमेरिकी सत्ताधारियों के चुनिन्दा ऐतिहासिक अपराधों की एक सूची इस लेख में दी जा रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियाँ और जनता का प्रतिरोध

इन नीतियों की घोषणा दर्शाती है कि अमेरिकी जनता के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होने जा रहे हैं। यह बात ट्रम्प पर भी लागू होती है। 45 प्रतिशत अमेरिकी जनता जिसका मोहभंग इस व्यवस्था से है और बाक़ी बची जनता इन नीतियों का समर्थन पूर्ण रूप से करेगी, ऐसा लगता नहीं है। इतनी घोर ग़ैरजनवादी, मुसलमान विरोधी, नस्लविरोधी और आप्रवासन विरोधी नीतियों को समर्थन मिलने की जो उम्मीद ट्रम्प को है, वैसा होने नहीं जा रहा है और यह अमेरिका की सड़कों पर दिख भी रहा है।

साम्राज्यी युद्धों की भेंट चढ़ता बचपन

इन मुल्कों में युद्ध के लिए साम्राज्यवादी मुल्क ही ज़िम्मेवार हैं जो प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा करके मुनाफा कमाने की दौड़ में बेकसूर और मासूम बच्चों को मारने से भी नहीं झिझकते। युद्ध के उजाड़े गए इन लोगों को धरती के किसी टुकड़े पर शरण भी नहीं मिल रही और यूरोप भर की सरकारें इनको अपने-अपने मुल्कों में भी शरण देने को तैयार नहीं है।