इण्डोनेशिया में 10 लाख कम्युनिस्टों के क़त्लेआम के पचास वर्ष
जनसमर्थन और सांगठनिक विस्तार के नज़रिये से देखा जाये तो इण्डोनेशिया की कम्युनिस्ट पार्टी बेहद मज़बूत पार्टी थी लेकिन विचारधारात्मक तौर पर वह पहले ही ख़ुद को नख-दन्तविहीन बना चुकी थी। असल में 1950 के दशक में ही उसने समाजवादी लक्ष्य हासिल करने का शान्तिपूर्ण रास्ता चुना। वर्ष 1965 तक उसने न सिर्फ़ अपने सशस्त्र दस्तों को निशस्त्र किया बल्कि अपना भूमिगत ढाँचा भी समाप्त कर दिया। विचारधारा के स्तर पर वह पूरी तरह सोवियत संशोधनवाद के साथ जाकर खड़ी हो गयी। उसने इण्डोनेशियाई राज्यसत्ता की संशोधनवादी व्याख्या प्रस्तुत की और दावा किया कि यहाँ के राज्य के दो पहलू हैं – एक प्रतिक्रियावादी और दूसरा प्रगतिशील। उन्होंने यहाँ तक कहा कि इण्डोनेशियाई राज्य का प्रगतिशील पहलू ही प्रधान पहलू है। यह बात पूरी तरह ग़लत है और अब तक के क्रान्तिकारी इतिहास के सबक़ों के खि़लाफ़ है। राज्य हमेशा से ही जनता के ऊपर बल प्रयोग का साधन रहा है। शोषकों के हाथों में यह एक ऐसा उपकरण है जिसके ज़रिये वह शोषणकारी व्यवस्थाओं का बचाव करते हैं। पूँजीवाद के अन्तर्गत प्रगतिशील पहलू वाले राज्य की बात करना क्रान्ति के रास्ते को छोड़ने के बराबर है। यह राजनीतिक लाइन पहले भी इतिहास में असफल रही है और एक बार फिर उसे ग़लत साबित होना ही था। लेकिन इस ग़लत राजनीतिक लाइन की क़ीमत थी 10 लाख कम्युनिस्टों की मौत और लाखों को काल कोठरी।