दुनिया के मज़दूरो एक हो! पूँजीवाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद! नई समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद!
रूस के मज़दूरों की महान अक्टूबर क्रान्ति की 98वीं वर्षगाँठ पर
महान अक्टूबर क्रान्ति का परचम ऊँचा उठाओ, नई मज़दूर क्रान्ति की ज़ोरदार तैयारियों में जुट जाओ!

मज़दूर साथियो,

                अब से 97 वर्ष पहले 25 अक्टूबर (नए कैलण्डर के मुताबिक 7 नवम्बर) 1917 को दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले देश रूस में मज़दूरों की फौलादी भुजाओं ने पूँजीपतियों के तख्तोताज़ गिरा डाले थे और मज़दूर वर्ग का पहला समाजवादी राज्य कायम किया था। आज इक्कीसवीं सदी में हम भारत के मज़दूरों को अपने देश में पूँजीपति वर्ग के शासन को नेस्तनाबूद करना है, यहाँ मज़दूरों का समाजवादी राज्य कायम करना है। यह तभी सम्भव है जब हम अपने इतिहास को जानेंगे, उससे जरूरी सबक निकालेंगे और लागू करेंगे। रूस की मज़दूर क्रान्ति के बारे में, इसकी उपलब्धियों के बारे में पूँजीपतियों के टी.वी. चैनल, उनकी किताबें, उनके अखबार, उनके कल्मघसीट लेखक कभी नहीं बताएँगे। क्योंकि वो डरते हैं मज़दूर वर्ग से, उसके महान इतिहास से, मज़दूर क्रान्तियों से। आईए, जानें क्या कैसे हूई मज़दूरों की रूसी क्रान्ति, क्या थी इसकी उपलब्धियाँ, और आज हमारे लिए उसके क्या मायने हैं, सबक हैं?

इतिहास ने जब करवट बदली…

Oct rev 2यह क्रान्ति किसी संसद-विधान सभा के चुनाव के जरिए नहीं बल्कि रूस के जालिम शासकों ज़ारशाही, पूँजीपतियों, सामन्तों, अफसरशाही, फौज-पुलिस के खिलाफ़ मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी के नेतृत्व में बलपूर्वक लोक-बगावत के दम पर सम्भव हुई थी क्योंकि लुटेरे वर्ग कभी भी शान्तिपूर्वक तरीके से सत्ता नहीं छोड़ते। लेकिन यह बगावत एकदम से नहीं हो गई थी। रूस में मज़दूरों ने अपनी यूनियनें बनाईं। किसान व अन्य मेहनतकश जनता एकजुट होकर सड़कों पर उतरी। सबसे बड़ी और अहम बात यह कि रूस में मज़दूरों की क्रान्तिकारी राजनीतिक पार्टी बनी जिसके नेतृत्व में मजदूरों-मेहनतकशों का शासकों के खिलाफ़ भीषण जनसंघर्ष चला। मज़दूरों के बीच क्रान्तिकारी मार्क्‍सवादी विचारधारा का ज़ोरदार प्रचार हुआ। मज़दूरं वर्ग के अखबार और किताबें छपीं। आर्थिक और राजनीतिक संघर्ष के लिए मज़दूरों ने यूनियनें बनाकर हड़तालों को एक अहम हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। एक लम्बी चली प्रक्रिया के दौरान रूस के मज़दूरों-मेहनतकशों ने इतनी चेतना, अनुभव, ताकत हासिल कर ली कि 25 अक्टूबर 1917 की सफल बगावत यानि समाजवादी क्रान्ति सम्भव हो गई।

रूसी अक्टूबर क्रान्ति ने यह साबित कर दिया कि मज़दूर-मेहनतकश न सिर्फ लुटेरी सत्ता को नेस्तनाबूद करने की ताकत आर्जित कर सकते हैं बल्कि यह भी साबित कर दिया कि शोषणकारी पूँजीवादी व्यवस्था को खत्म करके एक नयी मानवकेन्द्रित समाजवादी व्यवस्था भी कायम कर सकते हैं।

रूसी साम्राज्य के गुलाम राज्यों को आज़ादी दे दी गई। इनमें से बहुतेरे देश अपनी इच्छा से मज़दूर राज्य मे शामिल हो गए। उन्होंने बनाया एक नया महान देश – सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ।

Oct rev 3मज़दूर क्रान्ति ने इस झूठ के परखच्चे उड़ा दिए कि पूँजीपतियों के बिना समाज चल नहीं सकता। इस क्रान्ति ने पूँजीपतियों के कब्जे से कल-कारखानों, जमीनों-खदानों, व्यापार सहित सारी अर्थव्यवस्था को छुड़ा लिया। पूँजीपतियों से छुटकारा पाकर, मज़दूरों-मेहनतकशों के सामूहिक मालिकाने के अन्तर्गत समाज ने इतनी तेज़ तरक्की की जो कभी देखी न सुनी गई थी। उत्पादन के सारे रिकार्ड टूट गए क्यों कि अब जनता पूँजीपतियों के लिए नहीं बल्कि अपने लिए उत्पादन कर रही थी। जनता की पहलकदमी, सृजनात्मकता पर पड़ी बेडिय़ाँ टूट चुकी थीं। जब क्रान्ति हुई तो रूस एक बेहद पिछड़ा देश था, आज के भारत से भी बहुत ज्यादा पिछड़ा। विज्ञान-तकनीक-उत्पादन क्षमता में हुए तेज़ विकास ने रूस को एक उन्नत औद्योगिक देश में बदल दिया। 25 सालों में समाजवादी रूस ने इतनी तेज़ तरक्की की जितनी विश्व में पूँजीवाद ने पिछले 200 सालों में भी नहीं की थी। नवोदित समाजवादी सोवियत संघ को कुचल डालने के लिए साम्राज्यवादियों के बड़े आक्रमणों, सत्ता से खदेड़े पूँजीपतियों की तमाम प्रतिक्रान्तिकारी साजिशों, तोडफ़ोड़ की कार्रवाइयों के बावजूद पिछड़ा रूस एक महाशक्ति बन गया। गरीबी-कंगाली, बेरोजगारी का नामोनिशां मिटा दिया गया। काम की बेहतर परिस्थितियां, भोजन, रिहायश, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि तमाम क्षेत्रों में जनता को अकूत सुविधाएँ हासिल हुईं। मज़दूर वर्ग ने साबित कर दिया कि इंसान के हाथों इंसान की लूट का खात्मा सम्भव है।

जब शोषकों के शिकंजे और दबदबे से समाज को मुक्ति मिली, जब पीडि़तों, मज़दूर-मेहनतकश जनता ने समाज का नियंत्रण अपने हाथों में लिया तब न सिर्फ आर्थिक-तकनीकी-वैज्ञानिक तरक्की के सारे रिकार्ड तोड़ डाले गए बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में तो समाजवादी सोवियत संघ ने जो कारनामे कर दिखाए वह तो ओर भी बड़े थे। समाज से वेश्यावृति, नशाखोरी का खात्मा कर दिया गया जिसके बारे में पूँजीवादी व्यवस्था में सोचा तक नहीं जा सकता। काम के घण्टे कम होने से जनता कलात्मक-सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर समय दे सकती थी। जनता के लिए, जनता के हित्त में, जनता द्वारा साहित्य, गीत-संगीत, फिल्में, नाट्य, पेंटिंग गतिविधियों का जबरदस्त विकास हुआ। जनता की सृजनात्मकता ने ऐसे-ऐसे कारनामे कर दिखाए जो किसी चमत्कार से कम नहीं थे। स्त्रियाँ घर की चारदीवारी से आज़ाद हुईं। उन्हें महज चूल्हे-चौंके के काम करते रहने से छुटकारा मिला। पुरुष प्रधानता से मुक्त होकर उन्होंने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर समाज को हर क्षेत्र में विकास के पथ पर आगे बढ़ाया।

रूस में मज़दूर क्रान्ति के बाद चीन समेत अनेकों देशों में मज़दूर क्रान्तियाँ हुईं। दुनिया के एक तिहाई हिस्से पर मज़दूर वर्ग का राज्य कायम हुआ। मज़दूर वर्ग ने एक महान इतिहास गढ़ा, जिस पर हर मज़दूर को गर्व होना चाहिए।

पराजय झेल कर ही क्रान्तियाँ परवान चढ़ती हैं, नया इतिहास बनता है….

दुनिया के एक हिस्से से पूँजीपतियों को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था, लेकिन उसने सत्ता वापिस पाने की कोशिशें नहीं छोड़ीं थीं। समाजवादी समाज के सचेतन निर्माण का मज़दूर वर्ग का यह पहला प्रयास था। यह प्रयास सफल रहा लेकिन आगे चलकर 1956 में लुटेरा पूँजीपति वर्ग फिर से सोवियत संघ की सत्ता पर कब्ज़ा जमाने में कामयाब हो गया। कारण यह था कि मज़दूर वर्ग ने पूँजीवादी अवशेषों के खिलाफ़, राज्य, अर्थव्यवस्था व समाज में बैठे पूँजीवादी पथगामियों के खिलाफ़ निरन्तर क्रान्ति की राह नहीं अपनाई थी। इस हार ने विश्व मज़दूर वर्ग को एक जरूरी सबक दिया। यह सबक था – सत्ता अपने हाथ में करने के बाद भी मज़दूर वर्ग को मज़दूर वर्ग की पार्टी, राज्य, अर्थव्यवस्था व समाज में घुसे बैठे पूँजीवादी अवशेषों, पूँजीवादी पथगामियों के खिलाफ़ निरन्तर क्रान्ति ज़ारी रखनी होगी। चीन में इस मामले में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के रूप में एक महान प्रयोग हुआ जिसने दुनिया के मज़दूर वर्ग को युगान्तकारी सबकों से लैस किया। लेकिन जब यह प्रयोग हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पूँजीवादी पथगामी सत्ता में बहुत ताकत हासिल कर चुके थे। अन्य समाजवादी देशों में तो निरन्तर क्रान्ति की राह अपनाई ही नहीं गई। नतीजा यह है कि आज दुनिया में मज़दूर राज्य कहीं नहीं है। पूँजीवाद की पुनस्र्थापना के बाद रूस, चीन व पूर्वी यूरोप की जनता फिर से भयानक लूट-शोषण की चक्की में पिस रही है। जनता की मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। प्रश्न उठता है कि इन हारों से क्या यह मान लिया जाए कि मज़दूर क्रान्तियाँ अब होंगी ही नहीं? कि मज़दूर राज्यों का टिका रह पाना सम्भव नहीं है? कि मज़दूर समाजवाद अब अतीत की बात बन चुका है? इतिहास और विज्ञान कहता है – कतई नहीं।

जहाँ लूट-शोषण-जुल्म होगा वहाँ इसका प्रतिरोध भी होगा। अन्याय के खिलाफ़ संघर्ष को कभी भी मिटाया नहीं जा सकता। यह एक ऐसी हकीकत है जिसे कोई नहीं बदल सकता। क्रान्ति समाज का नियम है। स्पार्टक्स सहित छ: हजार गुलामों को सूली पर लटकाकर, गुलामों के खून की नदियाँ बहाकर भी गुलाम मालिकों का साम्राज्य कायम नहीं रह पाया। खूँखार समान्ती राजाओं के अभेद्य  लगने वाले किलों को जनता ने मिट्टी में मिला दिया। पूँजीवादी व्यवस्था भी मज़दूरों-मेहनतकशों की निर्मिम लूट-शोषण पर टिकी है। इसका भी अन्त निश्चित है। इतिहास की गति यह सिद्ध करती है कि पूँजीवादी व्यवस्था का धरती पर से नामोंनिशां मिट कर रहेगा।  कोई भी प्रयोग और कोशिश पहली बार में स्थाई सफलता प्राप्त नहीं करती। सामाजिक प्रयोग तो और भी बड़ी हारों और असफलताओं के बीहड़ रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। इतिहास ने साबित कर दिया है मज़दूर क्रान्ति सम्भव है, कि मज़दूरों का समाजवाद सम्भव है। इतिहास से सबक और प्रेरणा लेकर बेशक मज़दूर वर्ग आगे भी क्रान्तियाँ करेगा और समाजवाद का निर्माण करेगा। मज़दूर क्रान्तियों का पहला चक्र समाप्त हो चुका है। दूसरे चक्र की शुरूआत जल्द ही होगी। इतिहास के समाजवादी प्रयोगों के सबकों को लागू करके इस बार मज़दूर क्रान्तियाँ स्थाई होंगी।

अक्टबूर क्रान्ति के नए संस्करण रचने का समय फिर आ रहा है…

Oct rev 1पूरी दुनिया में पूँजीवाद आज पहले से कहीं अधिक परजीवी, शोषणकारी, अत्याचारी रूप धारण कर चुका है। हमारे देश की बात करें तो हालात बेहद चुनौतीपूर्ण बनते जा रहे हैं। मज़दूर-मेहनतकश जनता पर पूँजीपति वर्ग का आर्थिक हमला पहले से कहीं तेज़ हो गया है। राजनीतिक सत्ता द्वारा जनता का दमन बहुत बढ़ चुका है। जनवादी अधिकार बड़े  स्तर पर छीने जा रहे हैं। साम्प्रदायिक ताकतें तेज़ी से मज़बूत हो रही हैं। सबसे बड़ा खतरा हिन्दुत्वी कट्टरपंथी फासीवादियों से है जो तमाम जनता के आर्थिक, राजनीतिक, जनवादी सामाजिक अधिकार छीन लेना चाहते हैं। वर्तमान हालात चीख-चीख कर कह रहे हैं कि पूँजीवादी व्यवस्था को इतिहास के कूड़ादान में डाले बिना अब मानवता आगे नहीं बढ़ सकती। मज़दूरों का समाजवाद मानवता को एक बेहतर भविष्य दे सकता है।

आज बेशक क्रान्तिकारियों को तमाम जनवादी ताकतों को साथ लेकर हिन्दुत्व फासीवाद के खिलाफ़ लड़ाई लडऩी होगी और इसे हराना होगा। हमें राजनीतिक, सामाजिक, जनवादी, आर्थिक मुद्दों पर जनसंघर्ष खड़े करने होंगे। जनान्दोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी करनी होगी।

लेकिन हमें इन तमाम जिम्मेदारियों के बीच मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी के निर्माण की कोशिशों पर सर्वाधिक ज़ोर देना होगा। रूस की मज़दूर क्रान्ति से सबक लेकर हमें आज आगे बढऩा है। भारत के मज़दूरों की एक क्रान्तिकारी पार्टी का निर्माण करना होगा जो रूस के मज़दूरों की क्रान्तिकारी बोल्शेविक पार्टी की तरह  अनुशासित हो, जनसंघर्षों की आग में तपकर फौलाद बनी हो और मार्क्‍सवादी सिद्धान्तों में निपुण और दृढ़ हो। ऐसी पार्टी जिसकी जनता में गहरी और व्यापक जड़ें हों। जो पार्टी सत्ता के हर वार का मुकाबला कर सकती हो। अगर हम यह काम नहीं करते तो हम अन्य जिम्मेदारियाँ भी नहीं निभा पाएँगे। पूँजीवादी लूट, शोषण, अन्याय का व फासीवादी-आर्थिक-राजनीतिक हमलों का मुकाबला करने लिए और पूँजीवाद को खत्म करने के लिए मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी का निर्माण करना ही होगा। इसलिए हमें पूरा ज़ोर देकर हर हालात में मज़दूरों ही नहीं बल्कि तमाम जनता में क्रान्तिकारी मार्क्‍सवाद का जोरदार प्रचार-प्रसार करना होगा। मज़दूर अखबार और अन्य साहित्य को बड़े स्तर पर फैलाना होगा। हमें मज़दूरों, नौजवानों-छात्रों, मेहनतकश जनता में से क्रान्तिकारी भरती करके पार्टी खड़ी करनी होगी।

संक्षेप में यह है रूस के मज़दूरों की महान अक्टूबर क्रान्ति का इतिहास, इसकी उपलब्धियाँ और हमारे लिए सबक। आओ, अक्टबूर क्रान्ति की महान प्रेरणादायी शक्ति को सीने में इक्कठा करके, उससे सीखकर, सबक लेकर आगे बढ़ें। भारत में मज़दूर क्रान्ति को, नई समाजवादी क्रान्ति सफल बनाने लिए दिन-रात एक कर दें।

क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,

बिगुल मज़दूर दस्ता

सम्पर्क पता- मज़दूर पुस्तकालय, म. नं.-4135, ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी,

सामने दयाल पब्लिक स्कूल, ताजपुर रोड, लुधियाना फोन नं. – 9646150249, 9646606366

लखविन्दर द्वारा परवाज प्रिंटिंग प्रेस, लुधियाना से मुद्रित व उपरोक्त पते से प्रकाशित। प्रकाशन दिनांक – 17 अक्टूबर 2015


 

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