रोबर्ट ओवन : महान काल्पनिक समाजवादी
अमित
मज़दूर वर्ग की मुक्ति का रास्ता पूँजीवादी सुधारवाद, कल्याणकारी राज्य या सहकारिता नहीं बल्कि वैज्ञानिक समाजवाद यानी सर्वहारा क्रान्ति ही हो सकती है। इतिहास इस बात को साबित कर चुका है। मार्क्स और एंगेल्स का वैज्ञानिक समाजवाद दरअसल उनसे पहले मौजूद काल्पनिक मानवतावादी समाजवादियों के प्रयोगों की आलोचना के द्वारा ही विकसित हुआ। आज संशोधनवादी मज़दूर वर्ग को गुमराह करने के लिए समाजवाद के नाम पर पूँजीवादी सुधारवाद, कल्याणकारी राज्य या संसदीय गणतन्त्र की वकालत करते हैं। दरअसल वे ज़माने से 200 वर्ष पीछे हैं या असल में कहें तो हमारे सामने जानबूझकर ऐसे सिद्धान्तों को पेश करते हैं जो 200 साल पहले ही ग़लत साबित हो चुके हैं। काल्पनिक समाजवादियों के प्रयोगों और उनकी वैज्ञानिक आलोचना से यह साबित किया जा चुका है कि मज़दूर वर्ग की मुक्ति का असली मार्ग सर्वहारा क्रान्ति और सर्वहारा राज्यसत्ता की स्थापना ही हो सकती है। आइये इसी को समझने के लिए हम एक महान काल्पनिक समाजवादी रोबर्ट ओवन के प्रयोगों की चर्चा करते हैं। रोबर्ट ओवन को एंगेल्स बेहतरीन नेतृव क्षमता का व्यक्तित्व मानते थे और अपनी पुस्तक “समाजवाद काल्पनिक व वैज्ञानिक” में उन्होंने रोबर्ट ओवन के प्रयोगों का ज़िक्र किया है।
रोबर्ट ओवन का शुरुआती जीवन
रोबर्ट ओवन का जन्म इंग्लैण्ड के न्यूटाउन शहर में सन् 1771 में हुआ था। उनके पिता एक छोटे व्यापारी थे। ओवन ने 16 वर्ष की आयु में एक दुकान में काम करना शुरू कर दिया। मेनचेस्टर में उन्हें एक कॉटन मिल में काम मिल गया। 21 साल के ओवन इसी मिल में प्रबन्धक बन गये। 1793 में उन्हें मेनचेस्टर लिटरेरी एण्ड फ़िलोसोफ़िकल सोसाइटी के सदस्य के तौर पर चुना गया जहाँ उन्होंने सुधारवाद और प्रबोधन के विचार को ग्रहण किया। इसे उन्होंने अपने जीवन में लागू भी किया। मेनचेस्टर की फ़ैक्टरी में उन्होंने अपने अधीन कार्यरत 500 मज़दूरों के स्वास्थ्य और काम की स्थितियों में सुधार की दिशा में काम किया। इसी समय उनके मन में समाज को बदलने व ग़रीबी ख़त्म करने के विचारों को लेकरम उधेड़बुन भी शुरू हो गयी थी। वे भौतिकवादी दर्शन को मानते थे। उनका मानना था कि मनुष्य के चरित्र का निर्माण उसकी अनुवांशिकी तथा उसके जीवन की परिस्थितियों, ख़ासकर जब उसका विकास हो रहा हो, से होता है। इसलिए उनका मानना था कि अगर मनुष्य को बदलना है तो उसके जीवन की परिस्थितियों को बदलना ज़रूरी है और अपने इस सिद्धान्त को उन्होंने हरसम्भव ढंग से प्रयोग में लाने की कोशिश की। उनके अनुसार कोई भी सिद्धान्त सुनने में बहुत अच्छा लग सकता है परन्तु उसकी असली परख प्रयोग में होती है। इस प्रयोगधर्मिता का पालन वे ज़िन्दगीभर करते रहे। औद्योगिक क्रान्ति के युग में जहाँ दूसरे पूँजीपति अराजकता को उत्पादन का नियम मानते थे और इस समय को बेहिसाब मुनाफ़ा कूटने का अवसर मान रहे थे, ओवन अपने सिद्धान्त को मूर्त रूप देने और इस अराजकता को व्यवस्था प्रदान करने के अवसर के रूप में देख रहे थे। इसकी शुरुआत वह मेनचेस्टर में कर चुके थे, लेकिन उनका सबसे बड़ा प्रयोग न्यू लेनार्क की कॉटन मिल में हुआ।
न्यू लेनार्क का प्रयोग
रोबर्ट ओवन का सबसे प्रसिद्ध और सफल प्रयोग न्यू लेनार्क के कॉटन मिल में किये गये उनके कामों को माना जाता है। सन 1800 से 1821 के बीच ओवन ने स्कॉटलैण्ड की न्यू लेनार्क नामक जगह में एक नयी आदर्श कॉलोनी बसायी। ओवन के अनुसार – “किसी भी क़िस्म का मानवीय चरित्र समुचित साधनों से किसी भी समाज को दिया जा सकता है चाहे वह समाज चेतस हो या भले ही अज्ञानी हो, बल्कि यह बात पूरी दुनिया पर लागू होती है” और इस बात को लागू करते हुए ही उन्होंने यह दिखाया कि कैसे जब नरक सरीखी ज़िन्दगी में जी रहे मज़दूरों को बेहतर परिस्थिति में जीने का मौक़ा मिला तो उनके जीवन में भारी बदलाव हुआ। मज़दूरों के बीच से शराबखोरी, ग़रीबी आदि ख़त्म हो गये। 500 मज़दूरों से शुरू हुई इस कॉलोनी की आबादी बढ़कर 2500 तक पहुँच गयी। उन्होंने अपनी फ़ैक्टरी में अनाथ बच्चों से काम करवाना बन्द करवा दिया और उनके लिए शिक्षा के बेहतर उपाय ढूँढ़े। न्यू लेमार्क कॉलोनी के लोगों के लिए ओवन ने कायदे और क़ानून भी बनाये जिससे लोग अपने घर और गलियों को साफ़-सुथरा और सुरक्षित रख सकें। इस नियम का पालन करवाने के लिए कॉलोनी के लोगों की समिति का गठन किया गया। कॉलोनी में दुकानें भी खोली गयी जहाँ ख़रीद दर पर सामान मिलता था। दो बड़े स्कूल खोले गये जहाँ सभी निवासियों के लिए दिन और शाम की क्लास मुहैया करायी जाती थी। बीमारों के इलाज के लिए एक फ़ण्ड बनाया गया जिससे सभी को डॉक्टर और दवाई मुहैया करायी जा सके।
उनका मानना था कि बच्चों का आदर्श इंसान के रूप में गढ़ने का काम बेहतर शिक्षा के ज़रिये दिया जा सकता है। उनके न्यू लेनार्क के प्रयोग में बच्चों की शिक्षा पर ख़ास तौर पर ज़ोर दिया जाता था। उन्होंने दुनिया का पहला शिशु विद्यालय खोला, जहाँ 2 वर्ष से ऊपर के बच्चे आते थे। बच्चों के लिए सभी सुविधाएँ मौजूद थीं, उनके लिए नहाने की मशीन तक उपलब्ध करायी जाती थी। वहाँ बच्चे इतना आनन्दित होते कि वे वापस घर जाना ही नहीं चाहते थे। विद्यालय में बच्चों को भूगोल, इतिहास, विज्ञान और कला के साथ-साथ गीत, संगीत, नृत्य और प्रकृति की शिक्षा भी दी जाती थी। ओवन मानते थे कि पाठ को मनोरंजक और प्रेरक बनाया जाना चाहिए, इसके लिए बच्चों को क्लास रूम के अलावा बाहर भी ले जाया जाता था। फ़ैक्टरी के अन्दर भी उन्होंने कई बदलाव किये। जहाँ दूसरे पूँजीपति 13-14 घण्टे काम करवाते थे, वहीं न्यू लेनार्क में श्रम काल केवल साढ़े दस घण्टे का ही था। जब संकट की वजह से कॉटन मिल 4 महीनों तक बन्द थी, तब भी मज़दूरों को पूरा वेतन दिया गया था।
इस बेहतर स्थिति के बावजूद ओवन के मन में कुछ सवाल थे। उन्होंने लिखा कि मिल का व्यापार दोगुनी गति से वृद्धि कर रहा था और इस दौरान मालिकों ने 30000 पौंड से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया। वहीं मज़दूरों की स्थिति में जो भी सुधार हुआ था वो नाकाफ़ी था और अभी भी वो इंसानी गरिमा से बहुत दूर थे। आज 2500 मज़दूर जितना उत्पादन करते हैं करीब 50 साल पहले इतना ही उत्पादन करने के लिए 60000 मज़दूरों की ज़रूरत पड़ती थी। लेकिन 2500 और 60000 मज़दूरों के बीच के धन का अन्तर कहाँ जाता है? जवाब साफ़ था पूँजीपतियों के मुनाफ़े के रूप में। इसका साफ़ मतलब यह निकलता है कि मशीनरी और तकनीक के विकास से मज़दूरों का बहुत कम भला हुआ, उलटे इसका पूरा फ़ायदा पूँजीपतियों को ही मिला। ओवन ने इससे नतीजा निकाला कि परोपकार से मज़दूरों का बहुत भला नहीं होने वाला है। जब तक उत्पादन के साधनों पर निजी क़ब्ज़ा रहेगा तब तक कुछ लोग बेहिसाब अमीर होते जायेंगे व बाक़ी मेहनतकश लोग ग़रीब! समाज सुधार की दिशा में उनको तीन बड़ी बाधाएँ नज़र आयीं – निजी सम्पत्ति, धर्म और विवाह का वर्तमान स्वरूप। इस तरह देखा जा सकता है कि वे कम्युनिज़्म की तरफ़ अपना क़दम बढ़ा रहे थे और ये उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था। जब तक वे साधारण परोपकारी थे धन, प्रशंसा, प्रतिष्ठा, यश से नवाजे जाते थे। वे यूरोप के सबसे लोकप्रिय व्यक्ति थे। उच्च कुलीनों, राजनेताओं और राजा-महाराजाओं में उनकी बड़ी साख थी। लेकिन जब उन्होंने कम्युनिस्ट विचारों को अपनाया तो सब कुछ बदल चुका था। वे समाज से बहिष्कृत कर दिये गये, अख़बार में उनके ख़िलाफ़ चुप्पी का षड्यन्त्र रचा गया यानी कि उनके प्रयोगों की ख़बर को पूरी तरह से दरकिनार किया गया और उनको गुमनामी के अँधेरे में डाल दिया गया। उन्हें पता था कि अपने विचारों को लेकर आगे बढ़े तो वे उस समाज से बहिष्कृत हो जायेंगे जिसमें वे उठते-बैठते हैं परन्तु उन्होंने अपने विचारों के अनुरूप प्रयोग जारी रखा।
काल्पनिक समाजवाद व वैज्ञानिक समाजवाद का अन्तर
रॉबर्ट ओवन ने अपना बाक़ी जीवन न्यू लेनार्क के प्रयोगों को और बड़े स्तर पर संगठित करने में लगाया। निजी सम्पत्ति और मुनाफ़े पर टिकी इस सामाजिक व्यवस्था की जगह सहकारिता पर आधारित समुदायों की वकालत की। कम्युनिस्ट समाज में संक्रमण करने के लिए उनके द्वारा प्रस्तावित सहकारी समाज व्यवस्था में उत्पादन और खुदरा व्यापार की व्यवस्था थी व विनिमय के लिए श्रम बाज़ार की व्यवस्था की बात थी। उन्होंने संसद और अख़बारों से अपील की कि इस सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाये। हर गाँव आत्मनिर्भर समुदाय की तरह रहे जिसमें 500 से 1000 तक की आबादी हो जो सामूहिक तौर पर कृषि और उद्योग में काम करें। हर परिवार के पास अपना निजी मकान हो और इस तरह की छोटी-छोटी सहकारिता से पूरे समाज का निर्माण हो। इस व्यवस्था ने यह साबित कर दिया कि व्यापारी और फ़ैक्टरी मालिक इस व्यवस्था में जोंक हैं व उत्पादन में उनकी कोई ज़रूरत नहीं है। दूसरी तरफ़ इस समाज में विनिमय के लिए उन्होंने श्रम बाज़ार का प्रयोग किया। लोगों को उनके काम के बदले श्रम नोट मिलेंगे जिसके बदले में वे श्रम के उत्पादों को हासिल कर सकते थे। इन श्रम नोटों की क़ीमत काम के घण्टे से तय होती थी। एंगेल्स इस विषय में ज़ोर देते हुए बताते हैं कि ओवन के श्रम बाज़ार का यह प्रतिष्ठान भले ही असफल अवधारणा थी परन्तु यह प्रूधों के विनिमय बैंक से ऊँचे स्तर का सिद्धान्त था क्योंकि ओवन इस श्रम बाज़ार को कम्युनिज़्म की दिशा में बढ़ाया गया पहला क़दम मानते थे जबकि प्रूधों के लिए इसके ज़रिये ही सभी सामाजिक बुराइयों को ख़त्म किया जा सकता था। ओवन के अनुसार सहकारिता और श्रम बाज़ार की इस संक्रमणकालीन व्यवस्था में लोगों की आत्मनिर्भरता और पहलक़दमी से राजनीतिक संस्था में सुधार हो जायेगा और ये आत्मनिर्भर गाँवों का समूह राज्य को अनावश्यक बना देगा। इसी प्रयोग को उन्होंने अमेरिका के न्यू हार्मोनी नमक शहर में करने की कोशिश की जो कि बुरी तरह से असफल हुआ। ओवन ने पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर ऐसा करने का सपना देखा लेकिन उनकी ग़लती यह थी कि वे अपने दिमाग़ में सोची व्यवस्था को असल व्यवस्था पर लागू करना चाहते थे। जबकि सवाल यह है कि जो मौजूद है उसके अन्तर्विरोधों को समझकर, असल व्यवस्था को बदलने का रास्ता जाना जाये। सभी काल्पनिक समाजवादी फ़्रांसीसी क्रान्ति के नारे – आज़ादी, समानता और भ्रातृत्व के आदर्श सिद्धान्तों से ऊर्जा प्राप्त करते थे। वह ऐतिहासिक भौतिकवाद की रोशनी में मौजूदा समाज के सम्बन्धों के अस्तित्व में आने व उसके विकास को नहीं समझते थे। उनके लिए अभी दुनिया उल्टी खड़ी थी जिसे सिर के बल पलटकर सीधा खड़ा करना ज़रूरी था। यह ऐतिहासिक भौतिकवादी दृष्टिकोण ही कर सकता था। पूँजीवादी राज्यसत्ता के रहते ओवन की सहकारिता की कल्पना केवल एक यूटोपिया (कल्पना) ही हो सकती है। पूँजीवादी राज्यसत्ता दरअसल पूँजीपति वर्ग की ही राज्यसत्ता होती है जो निजी सम्पत्ति की इंच-इंच रक्षा करती है। पूँजीवादी राज्यसत्ता पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े और सम्पत्ति के ख़िलाफ़ खड़े होने वाली हर प्रकार की शक्ति का बलपूर्वक दमन करती है या उसे मुख्यधारा से बाहर कर देती है (जैसाकि ओवन के साथ हुआ)। इसलिए पूँजीपति वर्ग की राज्यसत्ता को चकनाचूर और सर्वहारा राज्यसत्ता की स्थापना किये बग़ैर निजी सम्पत्ति और मुनाफ़े का विलोप नहीं सम्भव है। दूसरी बात, बाज़ार पूँजीवादी प्रतियोगिता के नियम से चलता है, प्रतियोगिता में टिके रहने के लिए लागत मूल्य कम-से-कम करना होता है और इसके लिए, एक तरफ़ तो उत्पादन को बढ़ाने के लिए नयी तकनीक और मशीनरी का इस्तेमाल किया जाता है, दूसरी ओर अधिक-से-अधिक मज़दूरों की छँटनी की जाती है, जिससे ग़रीबी और बेरोज़गारी बढ़ती है। इसलिए, प्रतियोगिता और माल उत्पादन के रहते मज़दूरों की बेहतर ज़िन्दगी सम्भव ही नहीं है। यही वैज्ञानिक और काल्पनिक समाजवाद के बीच व्यावहारिक अन्तर है।
न्यू हार्मोनी के प्रयोग के असफल हो जाने के बाद ओवन लन्दन आ गये और जीवन के अन्तिम 30 वर्षों में सीधे मज़दूर वर्ग के बीच काम करते रहे। उन्होंने 5 वर्षों के संघर्ष के बाद महिलाओं और बच्चों के काम के घण्टे कम करने के क़ानून को पास कराया। ओवन इंग्लैण्ड के ट्रेड यूनियन आन्दोलन की बड़ी शख्सियत बन गये थे। इंग्लैण्ड की सभी ट्रेड यूनियनों की एक बड़ी एसोसिएशन की पहले कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गये। वे एक महान मानवतावादी, परोपकारी और काल्पनिक समाजवादी थे। लेकिन अपने सारे प्रयोगों के बावजूद उनका समाजवाद काल्पनिक ही था क्योंकि वह समाजवाद के विज्ञान यानी ऐतिहासिक भौतिकवादी नज़रिये को लागू कर वर्ग संघर्ष, सर्वहारा अधिनायकत्व, सर्वहारा राज्यसत्ता और क्रान्ति को नहीं समझ पाये थे। वैज्ञानिक समाजवाद के रचयिता मार्क्स और एंगेल्स ने उनके और दूसरे काल्पनिक समाजवादियों के योगदान को आगे बढ़ाते हुए सुसंगति प्रदान की और समाजवाद और कम्युनिज़्म को वैज्ञानिक ज़मीन पर खड़ा किया और मानव मुक्ति की परियोजना की कल्पना को ठोस रूप दिया। अगले अंकों में हम दूसरे काल्पनिक समाजवादियों के प्रयोग और सिद्धान्त की चर्चा करेंगे।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2016
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