समाजवादी चीन और पूँजीवादी चीन की दो फैक्टरियों के बीच फर्क

सनी

आज चीन में मज़दूरों का जबरदस्त शोषण हो रहा है। दुनिया भर के अन्य पूँजीवादी देशों की तरह यहाँ पर भी मज़दूरों के लिए नरक और पूँजीपतियों के स्वर्ग है। इस स्वर्ग का फर्क चीन की सरकारी नीतियों से, वहां की फैक्टरियों से, मज़दूरों के रहने की जगह से, पूँजीपति वर्ग की ऐयाशी से, अमीर-गरीब की खाई से पता चल जाता है। इस फर्क को समझने का सबसे बढ़िया तरीका यही हो सकता है कि हम इन दोनों समय में मज़दूरों की ज़िन्दगी के बीच फर्क पर सिलसिलेवार ढंग से बात करें। वैसे यह बात स्पष्ट है कि अलग उत्पादन सम्बन्ध वाले देशों में ज़मीन-आसमान का अंतर होगा, जहाँ चीन में उत्पादन के साधनों पर सामूहिक मालिकाना था वहीं आज के चीन में निजी मालिकाना है। इस फर्क को समझने के लिए आज के पूँजीवादी चीन में मौजूद फैक्टरी  फॉक्सकॉन से समाजवादी चीन में मौजूद जनरल निटवेअर फैक्‍टरी के बीच अंतर स्पष्ट करेंगे। यह वही फर्क है जो मज़दूर रोज़ रोज़ जीते हुए महसूस कर सकता है। फॉक्सकॉन चीन की सबसे बड़ी वेंडर कंपनियों में से एक है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक गैजेट बनाये जाते हैं। यह चीन में शेनजेन इलाके में बसी हुयी है। यह ठेके पर काम को लेती है। यह वही फैक्टरी है जहाँ मज़दूरों ने काम की स्थितियों से तंग आकर 18 नौजवान मज़दूरों ने आत्महत्या की है। इस फैक्टरी  में मालिक का मेंजेमेंट मज़दूरों के लिए नियम क़ानून बनाता है और पुलिस भी फॉक्सकॉन में नहीं घुस सकती है। 2012 में करीब 150 मज़दूरों ने सामूहिक रूप से आत्म हत्या करने की धमकी दी थी। दूसरी ओर समाजवादी चीन की जेनेरल निटवेर कंपनी में कापडे सिलाई व जेकेट, स्वेटर बनते थे। परन्तु यहाँ मज़दूर ही फैक्टरियों में अपने लिए क़ानून बनाते थे, उत्पादन के लिए योजनाएँं बनाते थे। आत्महत्या तो दूर की बात है ये फैक्टरियाँ ही जीवन का केंद्र थी। इसके उत्पादों को चीन की जनता के लिए व निर्यात के रूप में अन्य देशों में भी भेजा जाता था।

जनरल निटवेयर बनाम फॉक्सकॉन

mao at a factoryएक आम परिचय के बाद हम सिलसिलेवार कुछ बुनि‍यादी नज़र डाल सकते हैं। किसी भी फैक्टरी के बारे में सोचते वक्त जो सबसे पहला सवाल ज़हन में आता है वह यही है कि उसका फैक्टरी मालिक कौन है और कहाँ का रहने वाला है। फॉक्सकॉन के चेयरमेन का नाम टेरी गोउ है और इसकी संपत्ति करीब 7000 करोड़ डॉलर है। यह ताइवान का रहने वाला है। फॉक्सकॉन की पहली फैक्‍टरी को चीन में शेनजेन में लगाया गया था।  लेकिन आज पूरे चीन में फॉक्स्कॉन की 12 फैक्टरियाँ हैं। सबसे पहला और सबसे बड़ा प्लांट शेनजेन में ही है। शेनजेन दक्षिणी चीन में हांगकांग के पास बसा एक शांत मछुआरों का इलाका था परन्तु 1980 के बाद इसे आर्थिक विकास के लिए चुने जाने के बाद से यह गुडगाँव सरीखे मेट्रोपोलिटन शहर में विकसित हुआ है। फॉक्‍सकॉन में कार्यरत फोक्सकोन एक महिला मज़दूर चेन ने सीएनएन चैनल को साक्षात्कार में कहा कि “मैं अब और नहीं सह सकती हूँ। हर दिन ऐसा ही होता है, काम करती रहूँ और बिस्तर पर जाकर पड़ जाऊँ।”

ल्‍यू नाम के एक मज़दूर ने अपने शब्द कविता में उतारते हुए लिखा कि “वर्कशॉप, यहाँ मेरा यौवन उलझ गया, असेम्बली लाईन में हज़ारों मज़दूर ऐसे खड़े होते हैं जैसे शब्द एक पंक्ति में लिखे जाते हों, जल्दी करो! आगे बढ़ो!! बीच में खड़ा सुपरवाइज़र भौंकता है, और एक बार आप असेंबली लाइन में आ गए तो एकमात्र विकल्प समर्पण होता है। जवानी धीरे धीरे ख़त्म होती है और मैं इसे दिन रात पिसते, दबते हुए, मोल्ड होते और पोलिश होकर छोटे छोटे मज़दूरों के टुकड़ों में तब्दील होता देखता हूँ।”

जनरल निटवेअर को 1952 में पेकिंग शहर में सोवियत मॉडल की औद्योगीकरण की नीति के अनुरूप बनाया गया था। इसमें 1971 में 3004 मज़दूर कार्यरत थे। मुख्यतः कपड़ों की सिलाई से लेकर जींस स्वेटर व अन्य उत्पाद भी बनाये जाते थे।

फैक्टरी  फ्लोर पर अंतर

सबसे पहले आय को लेते हैं। फॉक्‍सकॉन में एक मज़दूर की मासिक आय करीब 1200 युआन है जबकि तमाम स्वतन्त्र एजेंसियों ने इस ओर इंगित किया है कि शहर में रहने के लिए एक मज़दूर को करीब 2293 युआन मिलने चाहिए यानी मासिक आय करीब 1000 युआन कम है। यही वह सबसे बड़ा कारण है जिस कारण से दुनिया की तमाम फैक्टरियाँ चीन में निवेश करती हैं क्योंकि यहाँ पर बेहद सस्ते श्रम पर मज़दूरों को लूटा जा सकता है। और यह गैर कानूनी भी नहीं है क्योंकि सरकार के अनुसार शेनजेन में न्यूनतम वेतन 938 युआन का है यानी फॉक्सकॉन क़ानूनी तरीके से मज़दूरों को मनचाहे तरीके से लूटती है। यही हाल आज गुडगाँव और भारत की भी फैक्टरियों  का है जहाँ पर न्यूनतम वेतन से अधिक आय मिलने के बावजूद मज़दूर इतना कम पाता है कि वह बस जिंदा रहता है।

फॉक्‍सकॉन के हालात

फॉक्‍सकॉन के हालात

दूसरी ओर, जनरल निटवेअर में 1971 में मज़दूरों की औसतन मासिक आय 65 युआन थी। पेकिंग में 1971 में एक मज़दूर के ठीक से जीवन जीने के लिए 12 युआन मासिक की ज़रूरत थी। यहीं पर साफ़ दिख सकता है कि समाजवादी चीन में मज़दूरों के जीवन स्तर और पूँजीवादी चीन के जीवन स्तर में बड़ा अंतर मौजूद था। परन्तु सिर्फ आय का फर्क ही समाजवाद और पूँजीवाद के फर्क को नहीं दिखाता है। दूसरी चीज़ जो फैक्टरियों  के बारे में सबसे ज़रूरी बात है वह है कि मज़दूर फैक्टरी  में असेंबली लाईन पर किस तरह काम करते हैं?

फॉक्‍सकॉन में मज़दूरों पर जिस मैनेजमेंट व्यवस्था को लागू किया जाता है उसे गुओ (फॉक्‍सकॉन के चेअरमेन) के शब्दों में जाना जाए तो बेहतर है। गुओ के अनुसार “कम्पनी के मुनाफे के लिए तानाशाही लागू” करनी चाहिए। और इस तानाशाही को फॉक्सकॉन ने लागू भी किया है। महीने में हर मज़दूर को 120 घंटे से ज्यादा ओवरटाइम लगाना पड़ता है, यानी कि 8 घंटे के काम के ऊपर हर दिन 4 घंटे से ज्यादा का ओवरटाइम लगाना होता है। कोई भी मज़दूर चाह कर भी 8 घंटे काम नहीं कर सकता है क्योंकि फैक्टरी  पहले ही मज़दूरों से स्‍वैच्छिक ओवरटाइम के फॉर्म पर हस्ताक्षर करवा लेती है। साप्ताहिक छुट्टी की जगह 2 हफ्ते में एक बार ही छुट्टी मिलती है। काम से पहले और काम के बाद अलग से मज़दूरों को मैनजमेंट के उपदेश सुनने पड़ते हैं। इसे मैनेजमेंट मीटिंग कहता है परन्तु इसमें मज़दूर कुछ भी नहीं बोल सकते हैं। इस मीटिंग में मैनेजमेंट की तरफ से मज़दूरों को आदेश दिए जाते हैं और नियम बताये जाते हैं। इसमें मज़दूरों की तरफ से कोई और बात नहीं कही जा सकती है। मीटिंग ख़त्म होने पर मैनेजमेंट सवाल पूछता है कि आप कैसे हैं जिस पर मज़दूरों को यही कहना होता है “अच्छे, बहुत अच्छे!”। फैक्टरी  में मज़दूरों को मैनेजमेंट आदेश देकर हर महीने में 2-3 बार दिन और रात की शिफ्ट में बदली करता रहता है। प्रोडक्शन मैनेजर यानी फ्रंट लाईन मैनेजर मज़दूरों को हर छोटी से छोटी बात के लिए डांटते हैं और मज़दूरों को ज़लील करते हैं। काम के दौरान न तो कोई बात कर सकता है, शरीर खुजा सकता है या कि अपनी जगह से हिल सकता है। मैनेजर मज़दूरों को परखने के लिए टेस्ट भी लेते रहते हैं जैसे कभी भी प्रोडक्शन का लक्ष्य बढाया जा सकता है और अगर मज़दूर उस लक्ष्य को पूरा कर लेता है तो उससे भी बढ़ा हुआ लक्ष्य मज़दूर को दिया जाता है। मैनेजेंमेंट कभी मज़दूरों की सजगता को देखने के लिए उत्पाद का कोई हिस्सा गायब कर सकता है। और फैक्टरी  में इन नियम क़ानूनों के लागू न होने पर मज़दूरों को सजा दी जाती है। प्रोडक्शन धीरे होने पर प्रोडक्शन मैनेजर का मज़दूर पर चिल्लाना और बेइज्ज़त करना तो बेहद आम बात होती है। सुन देन युंग नाम के  एक मज़दूर ने 19 आईफ़ोन में से एक खो दिया था जिसपर मैनेजमेंट ने इस घटना के नाम पर सुन को जो प्रताड़ना दी उससे तंग आकर सुन ने 12वीं फ्लोर से कूद कर आत्महत्या कर ली। मान जियान नाम के मज़दूर  से फॉक्‍सकॉन के मैनेजमेंट ने मामूली घटना पर सजा देते हुए पूरे शॉप फ्लोर और शौचालय को साफ़ करवाया और प्रताड़ित किया जो उसकी आत्महत्या का कारण बताया जाता है।  हालांकि बाद में यह भी पता चला कि मौत से पहले उसको पीटा गया था जिसपर यह शक भी पैदा हुआ कि उसे मैनेजमेंट ने ही पीटकर कर मरवाया था और घटना को छुपाने के लिए आत्महत्या का स्वांग रचा। एक मज़दूर ने बताया कि फोक्स्कोन का मैनेजमेंट गेंगस्टर सरीखे लोग से भरा हुआ है। गलती करने पर मज़दूरों से चेअरमेन गुओ के वाक्यों को 300 से अधिक बार लिखने को बोला जाता है। लान में घुसने से लेकर या गलत गेट जाने पर भी कम्पनी के सेक्युरिटी गार्ड मज़दूरों को पीटते हैं। यहाँ गार्ड को बिजली की रोड मिलती है जो लगने पर मज़दूर को बेहोश तक कर सकती है। इस फैक्टरी की चौहद्दियों में पुलिस तक नहीं घुस सकती है। यही उस नारकीय ज़िन्दगी की एक छोटी सी तस्वीर है जिसे मज़दूर रोज-रोज फॉक्‍सकॉन में जीता है। यहाँ एक बेहद संक्षिप्त रूप से कुछ बिन्दुओं को इंगित किया गया है जिससे कि पूँजीवादी चीन की आज की तस्वीर साफ़ हो सके।

अब एक बार हम जनरल निटवेअर की तरफ भी इस रोशनी से नज़र डालें। सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि चीन में इस समय सांस्कृतिक क्रान्ति का प्रयोग जारी था। सबसे पहले हम यह समझ लें कि फैक्टरी  में मैनेजमेंट का स्वरूप कैसा था? क्योंकि यहाँ मालिकाना निजी नहीं मज़दूरों के राज्य का था। हर फैक्टरी  में मज़दूरों की पार्टी के अंतर्गत गठित पार्टी के साथ मिलकर मज़दूरों की कमिटियाँ फैक्टरी  को चलाती थीं। हर फैक्टरी  में फैक्टरी  पार्टी कमिटी का गठन किया जाता है। यह फैक्टरी  को राजनितिक नेतृत्व देने का काम करती थी। पार्टी कमिटी में फैक्टरी  के हर संस्तर से भागीदारी होती थी। फैक्टरी पार्टी कमिटी क्रांतिकारी कमिटी और मज़दूरों की मैनेजमेंट समूह के साथ फैक्टरी  के कामों को देखती थी। क्रांतिकारी कमिटी में भी फैक्टरी  के हर संस्तर से भागीदारी होने का नियम था। मज़दूरों के मैनेजमेंट समूह में सिर्फ़ मज़दूरों की भागीदारी होती थी। यहाँ यह बात स्पष्ट करनी इसलिए ज़रूरी थी कि यह समझा जा सके कि कोई फैक्टरी फॉक्‍सकॉन के मालिक गुओ या भारत के अम्बानी, अदानी के बिना चल सकती है। लेकिन सिर्फ यह कह देना ही काफी नहीं है क्योंकि अगर अम्बानी न भी हो और नेतृत्व ही गद्दार हो तो अम्बानी अदानी बाद में पैदा हो जायेंगे। इसके लिए ही पार्टी कमिटी, क्रांतिकारी कमिटी और मज़दूरों का मैनेजमेंट समूह मिलकर राजनीति पर कमान बनाये रखें तो ही सही मायने में समाजवाद को पूँजीवाद में तब्दील होने से रोका जा सकता है। मज़दूरों को फैक्टरी  में 8 घंटे ही काम करना होता था। फैक्टरी  में नियम कानून मिलकर मज़दूरों द्वारा ही तय किये जाते थे और किसी भी गैर ज़रूरी नियम को बदला जा सकता था। इस फैक्टरी  में कोई भी फॉक्‍सकॉन सरीखा प्रोडक्शन मैनेजर नहीं था जो मज़दूरों पर चिल्लाता और उन्हें बेइज्ज़त करता हो। यहाँ पर हर हाल में उत्पादन बढ़ाने पर जोर की जगह मज़दूरों की ज़िन्दगी पर जोर था। मज़दूर इन फैक्टरियों  में मन लगाकर काम करते थे और मशीनों को अपनी सुविधा अनुसार बदल भी सकते थे। कुछ उदहारण से इसे समझा जा सकता है। जनरल निटवेअर में डाई और प्रिंट वर्कशॉप में मज़दूरों ने एक मशीन को तब्दील कर दिया जिसमें पहले एक ही रंग इस्तेमाल होता था वहां मज़दूरों ने दो रंग इस्तेमाल किये जिससे काम का समय आधा हो गया। काम के दौरान एक साथ हाथ और पैर का इस्तेमाल करने वाली मशीन को तब्दील कर उसे सिर्फ हाथ से संचालित हो सकने वाली मशीन में तब्दील कर दिया। मज़दूरों की टीमें ही जनता के बीच जाकर उनकी ज़रूरत के कपड़ों के लिए योजनायें बनाती थी जिसमें फैक्टरी  कमिटी और क्रांतिकारी कमिटी भागीदारी करती थी। मज़दूरों और नेतृत्व की बैठकों में इसका ख़ास तौर पर ध्यान रखा जाता था कि मज़दूरों की समस्याएं क्या हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है। मज़दूरों को ही उत्पादन के लिए, काम के लिए खुद बैठकें कर योजना बनानी होती थी और मज़दूरों द्वारा पेश की गयी योजना को क्रांतिकारी कमिटी और पार्टी कमिटी मिलकर तय करती थी। यहाँ ये फैक्टरियाँ सिर्फ उत्पादन की मशीनें नहीं थी बल्कि मज़दूरों को लगातार राजनीतिक साहित्य ख़ास तौर पर मार्क्सवाद पढ़ने पर जोर दिया जाता था जिससे वे राजनीति को कमान में रखकर फैक्टरी में उत्पादन करें। इस पूरे दौर को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि यह दौर उत्पादन संबंधों को बदलने का था। उत्पादन के दौरान यहाँ जो संरचना पेश की गयी वह भी बदल रही थी परन्तु 1976 में पूँजीवादी पुनर्स्थापना के बाद यह प्रक्रिया थम गयी और इसने फॉक्‍सकॉन सरीखी फैक्टरियों  को जन्म दिया। खैर हम अभी इस विषय में और आगे नहीं जायेंगे और अपनी बात यहीं ख़त्म करेंगे। यहाँ जिस बात की और हम इंगित करना चाहते थे वह यह है कि पूँजीवादी देश में फैक्टरियों  में निजी हस्तगतीकरण होता है और मज़दूरों के श्रम से पैदा हुआ बेशी मूल्य सीधे मालिक अपनी जेब में रखता है इसलिए इनकी उत्पादन व्यवस्था अधिकतम प्रोडक्शन पर जोर देती है और मज़दूर को मशीन के एक टूकड़े में बदल देती है। उसके बरक्स समाजवाद एक ऐसी व्यवस्था है जो मज़दूरों को उसके जीवन का असली आधार प्रदान करती है। हम आगे इस अंतर को और आगे विस्तारित करेंगे और सिर्फ फैक्टरी  स्तर पर ही नहीं बल्कि मज़दूरों के रहने की जगह में, सुविधाओं के ढाँचे के बारे में विस्तार से बात करते हुए समाजवाद और पूँजीवाद के अंतर के बारे में गहनता से समझेंगे। लेकिन एक बात यहाँ जो समझ में आती है कि फैक्टरी  फ्लोर के स्तर पर समाजवादी चीन और पूँजीवाद चीन में ज़मीन आसमान का अंतर है। यह हमें समझना होगा कि हमें क्या चाहिए? फोक्स्कोन की फैक्टरी  के हालात आज भारत की भी लगभग हर फैक्टरी  के हालात हैं। यहाँ भी मैनेजमेंट और मज़दूर के बीच मालिक और गुलाम का सम्बन्ध है न कि किसी समूह के दो सदस्यों सरीखा व्यवहार है। हमें अपनी फैक्टरी  के हालातों को बदलना है तो इस मैनेजमेंट को बनाने वाली मुनाफ़ा आधारित व्यवस्था को ही ख़त्म करना होगा।

 

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2016


 

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