Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

‘क्रान्तिकारी जागृति अभियान’ का आह्वान – भगतसिंह की बात सुनो! नयी क्रान्ति की राह चुनो!!

चन्द्रशेखर आजाद के शहादत दिवस (27 फरवरी) से भगतसिंह के शहादत दिवस (23 मार्च) तक उत्तर-पश्चिम दिल्ली के मजदूर इलाकों में नौजवान भारत सभा, बिगुल मजदूर दस्ता, स्त्री मजदूर संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से ‘क्रान्तिकारी जागृति अभियान’ चलाया गया। अभियान टोली ने इस एक महीने के दौरान हजारों मजदूरों से सीधे सम्पर्क किया और उनका आह्वान करते हुए कहा कि चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू की शहादतों को याद करने का सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम मेहनतकश इन महान इन्कलाबियों के जीवन और विचारों से प्रेरणा लेकर पस्तहिम्मती के अंधेरे से बाहर आयें और पूँजी की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए कमर कसकर उठ खड़े हों।

लुधियाना के मेहनतकशों के एकजुट संघर्ष की बड़ी जीत

इस जबरदस्त रैली और प्रदर्शन के सफल आयोजन ने जहाँ मज़दूरों में फैले पुलिस और गुण्डों के डर के माहौल को तोड़कर पहली जीत दर्ज करवाई थी वहीं दूसरी जीत तब हासिल हुई जब रैली को अभी दो दिन भी नहीं बीते थे कि 19 जनवरी की रात को 39 मज़दूर को जेल से बिना शर्त रिहा कर दिया गया। रिपोर्ट लिखे जाने तक 3 नाबालिग बच्चों को कुछ कागजी कार्रवाई के चलते रिहाई नहीं मिल सकी थी लेकिन उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है। कारखाना मज़दूर यूनियन लुधियाना तथा अन्य संगठन बच्चों की रिहाई की कार्रवाई जल्द पूरी करवाने के लिए प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं। पंजाब सरकार ने पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड के जरिये पीड़ितों के लिए 17 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर भी जारी किये हैं। संगठनों के साझा मंच ने इस मुआवजे को नाममात्र करार देते हुए पीड़ितों को उचित मुआवजा देने की माँग की है। यह जीत लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन की बहुत बड़ी जीत है। इस जीत ने लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन में नया जोश भरने का काम किया है।

लुधियाना की सड़कों पर हज़ारों मज़दूरों के गुस्से का लावा फूटा

4 दिसम्बर को लुधियाना की सड़कों पर हज़ारों मज़दूरों का प्रदर्शन और पुलिस द्वारा उनके दमन की घटना सारे देश के अख़बारों और ख़बरिया टीवी चैनलों की सुर्खियों में रही। लेकिन मज़दूरों के इस आन्दोलन और उनके दमन की सही-सही तस्वीर किसी ने पेश नहीं की। किसी ने प्रदर्शनकारी मज़दूरों को उप्रदवी कहा तो किसी ने उत्पाति। एक मशहूर पंजाबी अख़बार ने मज़दूरों को दंगाकारियों का नाम दिया। एक अख़बार ने मज़दूरों के प्रदर्शन को बवालियों द्वारा की गयी हिंसा और तोड़-फोड़ कहा। एक अंग्रेज़ी अख़बार ने लुधियाना की इन घटनाओं को प्रवासी मज़दूरों और स्थानीय लोगों के बीच की हिंसा कहकर ग़लत प्रचार किया। उन पूँजीवादी अख़बारों ने, जो मज़दूरों के पक्ष में लिखने वाले महसूस भी हुए, यूपी-बिहार के क्षेत्रीय नज़रिये से ही लिखा और घटनाक्रम को इस तरह पेश किया जैसे यह यू.पी.-बिहार के नागरिकों और पंजाब के नागरिकों के बीच की लड़ाई हो। इस घटनाक्रम का सही-सही ब्योरा और उसके पीछे के असल कारण इन पूँजीवादी अख़बारों और टी.वी. चैनलों से लगभग ग़ायब रहे; और इन्होंने कुल मिलाकर लोगों को ग़लत जानकारी मुहैया कराकर मज़दूरों के इस विरोध प्रदर्शन को बदनाम किया, इसके बारे में देश की जनता को गुमराह और भ्रमित किया।

गोरखपुर में अड़ियल मालिकों के ख़िलाफ मज़दूरों का संघर्ष जारी

अंकुर उद्योग लि, वी एन डायर्स धागा व कपड़ा मिल तथा जालानजी पालिटेक्स के मज़दूरों ने लड़कर काम के घण्टे आठ कराये थे लेकिन मालिकान फिर से 12 घण्टे काम कराने की जी-तोड कोशिश में लगे हैं। लगातार मौखिक दबाव बनाने के बाद अन्त में अंकुर के मालिकान ने एक नोटिस लगा दिया कि अब कम्पनी में 12 घण्टा काम होगा। इसके बाद मजदूरों ने टोलियाँ बनाकर रातभर कमरे-कमरे घूमकर प्रचार किया और तैयारी कर लिया कि काम आठ घण्टा ही करेंगे। इसके बाद अगले दिन सुबह वाली शिफ्ट 2 बजे के 10 मिनट पहले ही मशीनें बन्द कर बाहर आ गयी। बाहर खडी दूसरी शिफ्ट ने ताली बजाकर उसका स्वागत किया। दूसरी शिफ्ट को मालिक ने अन्दर नही लिया। फिर गेट पर ही एक मैराथन मीटिंग शाम तक हुई। मजदूरों ने यह तय किया कि रात 10 बजे नहीं आयेंगे। दो बजे ही आयेगे। अपने अधिकारों के प्रति वे जाग गये हैं इसका एहसास मालिक को करा दिया। अगले दिन दूसरी शिफ्ट नही चली। तीसरे दिन फिर काम के घण्टे आठ रहने की नोटिस लग गयी।

लुधियाना के कारख़ाना मालिकों का खूँखार चेहरा फिर उजागर

असल में लुधियाना के कारख़ानों में मालिकों का जंगलराज खुलेआम चल रहा है। कारख़ाना मालिकों द्वारा श्रम कानूनों की खुलकर धज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं। लुधियाना के लगभग सभी कारख़ानों के मज़दूरों के हक-अधिकारों पर कारख़ाना मालिकों द्वारा डाका डाला जा रहा है। न कहीं आठ घण्टे की दिहाड़ी का कानून लागू होता है, न न्यूनतम वेतन दिया जाता है, ज़बरदस्ती ओवरटाइम लगवाया जाता है। कारख़ानों में वहाँ काम कर रहे अधिकतर मज़दूरों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता। कारख़ाने में काम करते हुए अगर किसी मज़दूर के साथ कोई हादसा हो जाये या उसकी जान ही चली जाये तो वह या उसका परिवार कोई मुआवज़ा माँगने के कानूनी तौर पर हकदार नहीं रह जाते।

संसदीय वामपंथियों के राज में हज़ारों चाय बाग़ान मज़दूर भुखमरी की कगार पर

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में स्थित नावेड़ा नड्डी चाय बाग़ान के 1000 मज़दूरों और उनके परिवार के सदस्यों सहित करीब 6,500 लोग भुखमरी की कगार पर हैं। यह चाय बागान दुनिया की सबसे दूसरी बड़ी चाय कम्पनी टाटा टेटली का है। यह चाय बाग़ान उस राज्य, पश्चिम बंगाल, में है जहाँ खुद को मज़दूरों की हितैषी बताने वाली मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है। मज़दूरों की यह हालत उन अमानवीय स्थितयों का विरोध करने के कारण हुई है जिनमें वे काम करने और जीने को मजबूर हैं।

मालिकों के मुनाफे की हवस का शिकार – एक और मजदूर

घटना वाले दिन रंजीत तथा तीन अन्य मज़दूरों को सुपरवाइज़र ने ज़बरदस्ती तार के बण्डलों के लोडिंग-अनलोडिंग के काम पर लगा दिया। उन चारों ने क्रेन की हालत देखकर सुपरवाइज़र को पहले ही चेताया था कि क्रेन की हुक व जंज़ीर बुरी तरह घिस चुके हैं जिससे कभी भी कोई अनहोनी घटना घट सकती है इसके बावजूद उन्हें काम करने के लिए मजबूर किया गया। ऐसे में वही हुआ जिसकी आशंका थी। चार टन का तारों का बण्डल रंजीत पर आ गिरा जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। रंजीत की मौत कोई हादसा नहीं एक ठण्डी हत्या है।

गोरखपुर मजदूर आंदोलन को आम नागरिकों का समर्थन

मज़दूर जब धरना-प्रदर्शन या वार्ता से लौटकर आते तो मोहल्ले में घुसते ही सब्ज़ी बेचने वाले से लेकर किराने के दुकानदारों, मकानमालिकों तक की उत्सुकता होती कि आज क्या हुआ? स्थानीय लोग मालिकों द्वारा कई सालों से मज़दूरों के शोषण और अत्याचार को हिकारत से देखते हुए कहते कि हम आपके साथ हैं। एक मकानमालिक ने कहा कि आप लोग लड़िये चाहे जितनी लम्बी लड़ाई हो मेरे किराये की चिंता मत करिये। इसी तरह से भगवानपुर मोहल्ले के एक मकान मालिक ने सभी किरायेदारों के चूल्हों में गैस भराकर कहा तुम बनाओ खाओ जब पैसा होगा तब देना।

2000 मज़दूरों ने विशाल चेतावनी रैली निकाली

यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी तादाद में एकजुट होकर करावलनगर के मज़दूरों ने हड़ताल की है। इसके पहले भी कुछ छिटपुट हड़तालें हुई थीं, लेकिन तब बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के मज़दूर एकजुट नहीं हो पाते थे और हड़तालें सफल नहीं हो पाती थीं। बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में यह पहला मौका है जब सभी मज़दूर जाति, गोत्र और क्षेत्र के बँटवारों को भुलाकर अपने वर्ग हित को लेकर एकजुट हुए हैं।

बादाम मज़दूरों के नेता रिहा

करावलनगर इलाके में चौथे दिन भी हज़ारों की संख्या में मज़दूर हड़ताल स्थल पर मौजूद रहे। हड़ताल के जारी रहने से करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग ठप्प पड़ गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि करावलनगर पुलिस थाने के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और मज़दूरों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ न कराए जाने के कारण यूनियन सीधे पुलिस उपायुक्त, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पास शिकायत दर्ज़ कराएगी और अगर तब भी कार्रवाई नहीं होती है तो फिर हमारे पास अदालत जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। ग़ौरतलब है कि बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से बादाम मज़दूर अपने कानूनी हक़ों की माँग कर रहे हैं और साथ ही बादाम संसाधन उद्योग को सरकार द्वारा औपचारिक दर्ज़ा दिये जाने की माँग कर रहे हैं। फिलहाल, सभी बादाम गोदाम मालिक गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी सरकारी लाईसेंस या मान्यता के ठेके पर मज़दूरों से अपने गोदामों में काम करवा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर महिला मज़दूर हैं लेकिन उनके लिए शौचालय या शिशु घर जैसी कोई सुविधा नहीं है। बादाम मज़दूरों को तेज़ाब में डाल कर सुखाए गए बादामों को हाथों, पैरों और दांतों से तोड़ना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं और उन्हें टी.बी., खांसी, आदि जैसे रोग आम तौर पर होते रहते हैं। महिला मज़दूरों के बच्चे भी काफ़ी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।