Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

करावलनगर में इलाक़ाई मज़दूर यूनियन की पहली सफल हड़ताल

इस हड़ताल की सबसे ख़ास बात यह थी कि हालाँकि यह बड़े पैमाने पर नहीं थी, लेकिन इसमें जिस पेशे और कारख़ानों के मज़दूरों ने हड़ताल की थी, उससे ज़्यादा संख्या में अन्य पेशों के मज़दूरों ने भागीदारी की। अगर अन्य पेशों के मज़दूर भागीदारी न करते तो अकेले पेपर प्लेट मज़दूरों की लड़ाई का सफल होना मुश्‍क़िल हो सकता था। इलाक़ाई मज़दूर यूनियन बनने के बाद यह पहला प्रयोग था जिसमें मज़दूरों की इलाक़ाई एकजुटता के आधार पर एक हड़ताल जीती गयी। आज जब पूरे देश में ही बड़े कारख़ानों को छोटे कारख़ानों में तोड़ा जा रहा है, मज़दूरों को काम करने की जगह पर बिखराया जा रहा है, तो कारख़ाना-आधारित संघर्षों का सफल हो पाना मुश्‍क़िल होता जा रहा है। ऐसे में, ‘बिगुल’ पहले भी मज़दूरों की इलाक़ाई और पेशागत एकता के बारे में बार-बार लिखता रहा है। यह ऐसी ही एक हड़ताल थी जिसमें एक इलाक़े के मज़दूरों ने पेशे और कारख़ाने के भेद भुलाकर एक पेशे के कारख़ाना मालिकों के ख़िलाफ़ एकजुटता क़ायम की और हड़ताल को सफल बनाया।

मालिक की मिठास के आगे ज़हर भी फेल

यह हालत हर फ़ैक्ट्री की है। मेरी उम्र ज़्यादा तो नहीं है, लेकिन पिछले 4 सालों में करीब 15 फ़ैक्ट्री में काम का अनुभव है। हर फ़ैक्ट्री का मालिक बड़ा मृदुभाषी मीठा दिखता है, मगर इनकी मिठास के आगे ”विष फेल” है।

मारुति सुज़ुकी के मज़दूर फ़िर जुझारू संघर्ष की राह पर

आन्दोलन के समर्थन में प्रचार करने के दौरान हमने ख़ुद देखा है कि गुड़गाँव-मानेसर- धारूहेड़ा से लेकर भिवाड़ी तक के मजदूर तहेदिल से इस लड़ाई के साथ हैं। लेकिन उन्हें साथ लेने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है। जून की हड़ताल की ही तरह इस बार भी व्यापक मजदूर आबादी को आन्दोलन से जोड़ने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। मारुति के आन्दोलन में उठे मुद्दे गुड़गाँव के सभी मजदूरों के साझा मुद्दे हैं – लगभग हर कारखाने में अमानवीय वर्कलोड, जबरन ओवरटाइम, वेतन से कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकारों का हनन और लगभग ग़ुलामी जैसे माहौल में काम कराने से मजदूर त्रस्त हैं और समय-समय पर इन माँगों को लेकर लड़ते रहे हैं। बुनियादी श्रम क़ानूनों का भी पालन लगभग कहीं नहीं होता। इन माँगों पर अगर मारुति के मजदूरों की ओर से गुडगाँव-मानेसर और आसपास के लाखों मज़दूरों का आह्वान किया जाता और केन्द्रीय यूनियनें ईमानदारी से तथा अपनी पूरी ताक़त से उसका साथ देतीं तो एक व्यापक जन-गोलबन्दी की जा सकती थी। इसका स्वरूप कुछ भी हो सकता था – जैसे, इसे एक ज़बर्दस्त मजदूर सत्याग्रह का रूप दिया जा सकता था।

लुधियाना में टेक्सटाइल मज़दूरों की पंचायत

मज़दूरों का सच्चा संगठन वही होता है जिसमें हर स्तर पर जनवाद को लागू किया जाता हो। उन्होंने कहा कि टेक्सटाइल मज़दूर पंचायत का आयोजन बहुत सराहनीय क़दम है जिसमें मज़दूरों को खुलकर अपनी बात कहने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि दलाल संगठनों के नेता कभी ऐसा नहीं करते हैं।

हड़ताल: मेट्रो के सफ़ाईकर्मियों ने शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द की

नई दिल्ली में दिलशाद गार्डन स्टेशन पर 30 अगस्त को ए टू ज़ेड ठेका कम्पनी के सफ़ाईकर्मियों ने श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ हड़ताल की जिसका नेतृत्व दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन ने किया। इसमें दिलशाद गार्डन, मानसरोवर तथा झिलमिल मेट्रो स्टेशन के 60 सफ़ाईकर्मी शामिल थे। मेट्रो सफ़ाईकर्मियों का आरोप है कि ठेका कम्पनी तथा मेट्रो प्रशासन श्रम कानूनों को ताक पर रख कर मज़दूरों का शोषण कर रहे हैं जिससे परेशान होकर सफ़ाईकर्मियों ने हड़ताल पर जाने का रास्ता अपनाया। सफ़ाईकर्मी अखिलेश ने बताया कि देश में महँगाई चरम पर है और ऐसे में कर्मचारियों को अगर न्यूनतम वेतन भी न मिले तो क्या हम भूखे रहकर काम करते रहें? जीने के हक़ की माँग करना क्या ग़ैर क़ानूनी है? आज जब दाल 80 रुपये किलो, तेल 70 रुपये किलो, दूध 40 रुपये किलो पहुँच गया है तो मज़दूर इतनी कम मज़दूरी में परिवार का ख़र्च कैसे चला पायेगा?

गोबिन्दपुरा ज़मीन अधिग्रहण काण्ड – विकास के नाम पर पूँजीपतियों की सेवा

इण्डिया बुल्स नाम की एक कम्पनी द्वारा लगाए जा रहे पिऊना थर्मल पावर प्लाण्ट के लिए पंजाब के मानसा जिले के गोबिन्दपुरा गाँव में जबरन ज़मीन अधिग्रहण के घटनाक्रम ने पूँजीवादी हुक्मरानों के बर्बर काले कारनामों में एक और अध्याय जोड़ दिया है। मेहनतकश जनता पर लदी पूँजीवादी तानाशाही पर चढ़ाया गया जनतान्त्रिक लबादा इस घटनाक्रम से एक बार फिर चिथड़े-चिथड़े हो गया है। विकास के नाम पर जनता को लूटा जा रहा है, मारा-पीटा जा रहा है। यह कैसा जनतन्त्र है जहाँ जनता से बिना कुछ बातचीत किये, बिना उससे पूछे, बिना उसकी राय लिये, मनमानी क़ीमतों पर उसकी ज़मीन-सम्पत्ति का फ़ैसला कर दिया जाता है? शान्तिपूर्ण विरोध करने पर उससे अपराधियों की तरह निपटा जाता है।

करावल नगर के मज़दूरों ने बनायी इलाक़ाई यूनियन

7 जुलाई को करावल नगर मज़दूर यूनियन के गठन के लिए अगुआ टीम की बैठक हुई जिसमें मज़दूर साथियों की समन्यवय समिति बनायी गयी जिसने इलाक़े में यूनियन के प्रचार और इसके महत्व को बताते हुए सभी पेशों के मज़दूरों को सदस्य बनाने की योजना बनायी। सदस्यता का प्रमुख पैमाना सक्रियता को रखा गया। साथ ही यूनियन के संयोजक नवीन ने बताया कि जब यूनियन की सदस्यता 100 हो जायेगी तो इसके सभी सदस्यों को बुलाकर इसके पदाधिकारी, कार्यकारणी व अन्य पदों के लिए चुनाव कराया जाएगा।

लुधियाना में मज़दूरों के लिए पुस्तकालय की स्थापना

सारे ज्ञान और संस्कृति को पैदा करने वाले मेहनतकश लोग ही हैं। लेकिन वे ही हर तरह के ज्ञान और संस्कृति से वंचित हैं। आज के समय में वे मशीनों के पुर्जे बनकर रह गये हैं। पूँजी की अन्धी लूट ने आधुनिक मज़दूर वर्ग को एक अमानवीकृत समूह बना दिया है। मज़दूर वर्ग तक ज्ञान और संस्कृति को लेकर जाना मुक्ति की नयी परियोजना का एक अहम हिस्सा है। इसी सोच को व्यावहारिक रूप देने के लिए लुधियाना की मज़दूर कालोनी में मज़दूर पुस्तकालय की शुरुआत की गयी है।

संघर्ष ईमानदार-बहादुराना होगा तो समाज के अन्य तबके भी मज़दूरों का साथ देंगे

बहादुराना संघर्ष लड़ने वाले मज़दूरों के समर्थन में जिस तरह देश के अलग-अलग हिस्सों से तथा अन्य देशों से मज़दूर संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा बुद्धिजीवियों ने समर्थन किया, प्रशासन के खिलाफ़ मुखर हुए उससे यह साबित होता है कि हक और इंसाफ़ की लड़ाई ईमानदारी और बहादुरी से लड़ने वालों के साथ देश-दुनिया के सभी इंसाफ़पसंद लोग होते हैं। अपनी लड़ाई के लिए एक बार तो मज़दूरों को खुद आगे आना ही होगा। जब संघर्ष ईमानदार और बहादुराना होगा तभी दूसरे लोग उनका साथ देंगे।

मालिकान-प्रशासन-पुलिस-राजनेता गँठजोड़ के विरुद्ध गोरखपुर के मज़दूरों के बहादुराना संघर्ष की एक और जीत

मालिकों की तमाम कोशिशों और प्रशासन की धमकियों के बावजूद गोरखपुर से क़रीब 2000 मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन की पहली मई की रैली में भाग लेने दिल्ली पहुँच गये। इनमें बरगदवाँ स्थित अंकुर उद्योग लिमिटेड नामक यार्न मिल के सैकड़ों मज़दूर भी थे। यह वही मिल है जहाँ 2009 में सबसे पहले मज़दूरों ने संगठित होने की शुरुआत की थी। दिल्ली से लौटकर उत्साह से भरपूर मज़दूर 3 मई की सुबह जैसे ही काम पर पहुँचे, उन्हें अंकुर उद्योग के मालिक अशोक जालान की ओर से गोलियों का तोहफा मिला। पहले से बुलाये भाड़े के गुण्डों ने मज़दूरों पर अन्धाधुन्‍ध गोलियाँ चलायीं जिसमें 19 मज़दूर और एक स्कूल छात्रा घायल हो गये। दरअसल यह सब मज़दूरों को ”सबक़ सिखाने” की सुनियोजित योजना के तहत किया गया था। फैक्टरी गेट पर 18 अगुवा मज़दूरों के निलम्बन का नोटिस चस्पाँ था। मालिकान जानते थे कि मज़दूर इसका विरोध करेंगे। उन्हें अच्छी तरह कुचल देने का ठेका सहजनवाँ के कुख्यात अपराधी प्रदीप सिंह के गैंग को दिया गया था।