मज़दूरों की लूट के लिए मालिकों के कैसे-कैसे हथकण्डे
यहीं पर मैंने देखा कि पीस रेट पर काम करने वाले कारीगरों को लूटने के लिए मालिक कैसी-कैसी तिकड़म करते थे। कारीगर सुबह जल्दी आकर लूम पर जुट जाते थे कि ज़्यादा पीस बना लेंगे तो ज़्यादा कमा लेंगे। लेकिन मालिक के चमचे फ़ोरमैन और मैनेजर आख़िर किसलिये थे? कारीगर अगर 9 या 10 चादर तैयार कर लेता था तो उसमें से 3-4 चादर मामूली फाल्ट निकाकर रिजेक्ट कर देते थे। उसका एक भी पैसा मज़दूर को नहीं मिलता था हालाँकि मालिक तो उसे बेच ही लेता था। लम्बाई में आध-पौना इंच की कमी-बेशी हो जाये तो माल रिजेक्ट। अगर बहुत हिसाब से कारीगर लम्बाई का ध्यान रखे, तो वज़न में 10-20 ग्राम कमी-बेशी निकालकर रिजेक्ट कर देते। यही हाल कढ़ाई के कारीगरों का होता था। कुछ न कुछ नुक्स निकालकर रोज़ पैसे काट लेते थे। ‘हरीसन्स एंड हरलाज’ नाम की इस कम्पनी में 3000 मज़दूर थे। जोड़ लीजिये कि अगर रोज़ 30-35 रुपये की औसत कटौती हो तो महीने में मालिक की कितनी बचत होती होगी। यहीं पर शीना एक्सपोर्ट कम्पनी में तो कुल मिलाकर 20 हज़ार से ऊपर आदमी काम करते हैं। हरीसन्स और शीना दोनों कम्पनियों का सारा माल एक्सपोर्ट के लिए जाता है। मैंने सुना है कि कोई-कोई कढ़ाईदार चादर विदेश में 3-3 लाख रुपये में बिकती है। लेकिन एक चादर पर काम करने वाले सारे कारीगरों को मिलाकर 250 रुपये भी नहीं मिलते।