लेबर चौक : मज़दूरों की खुली मण्डी
अगर आपको गाँवों में लगने वाले जानवरों के मेले में कभी जाने का मौका मिला हो तो आप यहाँ के दृश्य का अनुमान लगा सकते हैं। जैसे मेले में बैल की पूँछ उठाकर, कन्धे टटोलकर उसके मेहनती होने की जाँच-पड़ताल की जाती है वैसे ही ‘लेबर चौक’ पर मालिक-ठेकेदार लोग ऑंखों से परखते हैं। कई बेशर्म ठेकेदार तो हाथ से भी जाँचने की कोशिश करते हैं। हमने स्कूल की किताब में पढ़ा था कि बहुत साल पहले ग़ुलामों को चौराहे पर ख़रीदा-बेचा जाता था। दुनिया बदल गयी, इन्सान कहाँ से कहाँ पहुँच गया, लेकिन हम मज़दूर फिर से उसी ग़ुलामी की हालत में धकेल दिये गये हैं।