मज़दूर कुछ करे तो क़ानून, मालिक लूटें तो कोई क़ानून नहीं
मैं सोचता हूँ कि एक मज़दूर द्वारा एक छोटी सी चोरी करने पर, वह भी पता नहीं किस मज़बूरी में की होगी, पुलिस तुरन्त पहुँच गयी और कानून अपना काम फुर्ती से करने लग पड़ा। जबकि मालिक रोज मज़दूरों को लूटते हैं और गाली-गलौज करते हैं, मज़दूरों को राह में अक्सर लूट लिया जाता है, कारखानों में रोज मालिकों की मुनाफे की हवस के कारण मज़दूरों के हाथ-पैर कट जाते हैं या वे मौत के मुँह में धकेल दिये जाते हैं। मालिक सभी श्रम कानूनों को कुछ नहीं समझते लेकिन पुलिस और कानून कभी किसी मज़दूर की मदद के लिए नहीं आते। अगर कभी मज़दूर शिकायत दर्ज करवाने थाने चले भी जायें तो पुलिस उनकी एक नहीं सुनती और कई बार तो उल्टा मज़दूरों को ही हवालात में बन्द कर दिया जाता है। मज़दूरों की काम की परिस्थितियाँ और रिहायश के इलाके बहुत बुरे हैं लेकिन यह किसी कानून को दिखाई नहीं देता। यह कैसा कानून है जो सिर्फ मज़दूरों पर ही लागू होता है, यह कैसा पुलिस-प्रशासन है जिसे सिर्फ मज़दूरों के गुनाह ही दिखते हैं?