Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

उँगलियाँ कटाकर मालिक की तिजोरी भर रहे हैं आई.ई.डी. के मज़दूर

पिछले आठ वर्षों में हाथ पर मशीन गिरने के कारण करीब 300 मज़दूर अपने हाथ की एक उँगली, कुछ उँगलियाँ और कईयों की तो पूरी हथेली ही इसकी भेंट चढ़ चुके हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के भीतर हम एक ऐसे कारख़ाने की बात कर रहे हैं जहाँ 300 मज़दूर अपने हाथ खो देते हैं, कुशल मज़दूर से बेकार बन जाते हैं, और कहीं कोई चर्चा तक नहीं होती।

संघर्ष की नयी राहें तलाशते बरगदवाँ के मज़दूर

वी. एन. डायर्स धागा मिल के मज़दूरों ने मैनेजमेण्ट द्वारा गाली-गलौज, मनमानी कार्यबन्दी और 5 अगुआ मज़दूरों को काम से निकाले जाने बावत दिये गये नोटिस के जवाब में 1 अगस्त सुबह 6 बजे से कारख़ाने पर कब्ज़ा कर लिया। रात 10बजे तक पूरी कम्पनी पर मज़दूरों का नियन्त्रण था। रात ही से सार्वजनिक भोजनालय शुरु कर दिया गया। सुबह तक कम्पनी पर कब्ज़े की ख़बर पूरे गाँव में फैल गयी। कई मज़दूरों ने अपने परिवारों को फैक्टरी में ही बुला लिया। महिलाओं और बच्चों के रहने के लिए फैक्टरी खाते में अलग से इन्तजामात किये जाने लगे। कौतूहलवश गाँव की महिलाएँ भी फैक्टरी देखने के लिए उमड़ पड़ीं। मज़दूरों ने उन्हें टोलियों में बाँटकर फैक्टरी दिखायी और धागा उत्पादन की पूरी प्रक्रिया से वाकिफ कराया। फैक्टरी के भीतर और बाहर हर जगह मज़दूर और आम लोगों का ताँता लगा हुआ था। विशालकाय मशीनों और काम की जटिलता से आश्चर्यचकित ग्रामीण एक ही बात कह रहे थे ‘हे भगवान! तुम लोग इतनी बड़ी-बड़ी मशीनें चलाते हो और पगार धेला भर पाते हो!!’

लक्ष्मीनगर हादसा : पूँजीवादी मशीनरी की बलि चढ़े ग़रीब मज़दूर

मुनाफा! हर हाल में! हर कीमत पर! मानव जीवन की कीमत पर। नैतिकता की कीमत पर। नियमों और कानूनों की कीमत पर। यही मूल मन्त्र है इस मुनाफाख़ोर आदमख़ोर व्यवस्था के जीवित रहने का। इसलिए अपने आपको ज़िन्दा बचाये रखने के लिए यह व्यवस्था रोज़ बेगुनाह लोगों और मासूम बच्चों की बलि चढ़ाती है। इस बार इसने निशाना बनाया पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के ललिता पार्क स्थित उस पाँच मंज़िला इमारत में रहने वाले ग़रीब मज़दूर परिवारों को जो देश के अलग-अलग हिस्सों से काम की तलाश में दिल्ली आये थे।

बादाम उद्योग मशीनीकरण की राह पर

मज़दूरों की व्यापक आबादी को भी यह समझना होगा कि मशीनीकृत होने से यह उद्योग ज्यादा संगठित होगा और मज़दूरों को उनका मज़दूरी कार्ड से लेकर अन्य अधिकार मिलने का वैधानिक आधार तैयार होगा तथा फैक्टरी एक्ट के तहत आने वाली सुविधाएँ मिलेंगी। निश्चित रूप से यह पूँजीवादी उद्योग की एक नैसर्गिक प्रक्रिया है और इसमें कई मज़दूर बेकार भी होंगे। लेकिन जो आबादी मशीनीकरण के बाद स्थिरीकृत होगी, वह लड़ने के लिए तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में होगी। तब जाकर नये सिरे से लड़ाई शुरू होगी और श्रम कानून के तहत मिलने वाले सभी अधिकारों की लड़ाई लड़ी जायेगी। लेकिन असल मायने में मज़दूरों की मुक्ति इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को ध्‍वस्त करके ही मिलेगा।

कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में 100 से भी अधिक पावरलूम कारख़ानों के मज़दूरों ने कायम की जुझारू एकजुटता

कारख़ाना मज़दूर यूनियन, लुधियाना के नेतृत्व में पहले न्यू शक्तिनगर के 42 कारख़ानों के मज़दूरों की 24 अगस्त से 31अगस्त तक और फिर गौशाला, कश्मीर नगर और माधोपुरी के 59 कारख़ानों की 16 सितम्बर से 30 सितम्बर तक शानदार हड़तालें हुईं। दोनों ही हड़तालों में मज़दूरों ने अपनी फौलादी एकजुटता और जुझारू संघर्ष के बल पर मालिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। जहाँ दोनों ही हड़तालों में पीस रेट में बढ़ोत्तरी की प्रमुख माँग पर मालिक झुके वहीं शक्तिनगर के मज़दूरों ने तो मालिकों को टूटी दिहाड़ियों का मुआवज़ा तक देने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन इस हड़ताल की सबसे बड़ी उपलब्धि इस बात में है कि इस हड़ताल ने मज़दूरों में बेहद लम्बे अन्तराल के बाद जुझारू एकजुटता कायम कर दी है। 1992 में पावरलूम कारख़ानों में हुई डेढ़ महीने तक चली लम्बी हड़ताल के बाद 18 वर्षों तक लुधियाना के पावरलूम मज़दूर संगठित नहीं हो पाये थे। इन अठारह वर्षों में लुधियाना के पावरलूम मज़दूर एक भयंकर किस्म की निराशा में डूबे हुए थे। मुनाफे की हवस में कारख़ानों के मालिक उनकी निर्मम लूट में लगे हुए थे। लेकिन किसी संगठित विरोध की कोई अहम गतिविधि दिखायी नहीं पड़ रही थी। लेकिन अब फिर से कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में उनके संगठित होने की नयी शुरुआत हुई है। यही मज़दूरों की सबसे बड़ी जीत भी है। यह आन्दोलन न सिर्फ पावरलूम मज़दूरों के लिए बल्कि लुधियाना के अन्य सभी कारख़ाना मज़दूरों के लिए एक नयी मिसाल कायम कर गया है।

मालिकों के लिए हम सिर्फ मुनाफा पैदा करने की मशीन के पुर्जे हैं

एक दिन वह पावर प्रेस की मशीन चला रहा था। मशीन पुरानी थी, मिस्त्री उसे ठीक तो कर गया था, लेकिन चलने में उसमें कुछ दिक्कत आ रही थी। तो उस नौजवान ने सोचा चलो मालिक को बता दे कि यह मशीन अब ठीक होने लायक नहीं रह गयी है। जैसे ही वह उठा, खुली हुई मशीन की गरारी में उसका स्वेटर फँस गया और मशीन ने उसकी बाँह को खींच लिया। स्वेटर को फाड़ती हुई, माँस को नोचती हुई मशीन से उसकी हड्डी तक में काफी गहरी चोट आयी। अगर उसके बगल वाले कारीगर ने तुरन्त उठकर मशीन बन्द नहीं कर दी होती तो वह उसकी हड्डी को भी पीस देती! उसके ख़ून की धार बहने लगी, पूरी फैक्ट्ररी में निराशा छा गयी। चूँकि उसका ई.एस.आई. कार्ड नहीं बना था। इसलिए मालिक ने एक प्राइवेट अस्पताल में उसे चार-पाँच दिन के लिए भर्ती कराया और कोई भी पुलिस कार्रवाई नहीं हुई। कोई हाल-चाल पूछने जाये तो किसी को कुछ भी बताने से मना कर देता और कहता, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!! शायद वह इसलिए नहीं बता रहा था कि कहीं मालिक को पता न लग जाये और वह जो कर रहा है, कहीं वह भी करना बन्द न कर दे।

आपस की बात

जब ज़िन्दा रहने की शर्त
कमरतोड़ मेहनत के बराबर हो जाये
तब तुम्हारी उपस्थिति को किस तरह आँका जाये?
तुम्हारी चुप्पी का क्या अर्थ निकाला जाए
क्योंकि चुप रहने का भी मतलब होता है
तटस्थ होता कुछ भी नहीं

टेक्सटाइल मजदूर प्रेमचन्द उर्फ पप्पू की मौत महज एक हादसा नहीं

न्यू शक्ति नगर के पावरलूम कारख़ानों के मजदूरों ने इस बात को समझ लिया है कि अगर अकेले-अकेले रहे तो मार खाते रहेंगे। मिलकर एकता बनाकर ही मालिकों, गुण्डों और पुलिस की गुण्डागर्दी का सामना कर सकते हैं। मजदूरों को अब अपना पक्ष चुनना ही होगा कि पप्पू की तरह ही किसी दिन किसी हादसे का शिकार होना है या अपनी और अपने बच्चों की बेहतर जिन्दगी और स्वाभिमान से जीने की एकजुट लड़ाई लड़नी है।

लुधियाना के होजरी मजदूर संघर्ष की राह पर

इस आन्दोलन में जो मजदूर साथी आगे होकर मालिकों से रेट की बात कर रहे थे, उन्हें मालिक काम से हटाने की कोशिश करेंगे। अधिकतर कारखानों में मालिक नेतृत्वकारी मजदूरों को किसी न किसी बहाने कारखाने से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। इन्हीं बातों के मद्देनजर आपसी एकता बनाये रखना आने वाले समय की माँग है। बाकी कारखानों के मजदूरों से सम्पर्क करके होजरी उद्योग के मजदूरों की एक साझा संघर्ष कमेटी बनाने और एक साझा माँगपत्र तैयार करके उस पर संघर्ष का आधार तैयार करने का यह समय है।

अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर पूँजी की सत्ता के ख़िलाफ लड़ने का संकल्प लिया मजदूरों ने

गोरखपुर में पिछले वर्ष महीनों चला मजदूर आन्दोलन कोई एकाकी घटना नहीं थी, बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में उठती मजदूर आन्दोलन की नयी लहर की शुरुआत थी। आन्दोलन के खत्म होने के बाद बहुत से मजदूर अलग-अलग कारख़ानों या इलाकों में भले ही बिखर गये हों, मजदूरों के संगठित होने की प्रक्रिया बिखरी नहीं बल्कि दिन-ब-दिन मजबूत होकर आगे बढ़ रही है। इस बार गोरखपुर में अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के आयोजन में भारी पैमाने पर मजदूरों की भागीदारी ने यह संकेत दे दिया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का मजदूर अब अपने जानलेवा शोषण और बर्बर उत्पीड़न के ख़िलाफ जाग रहा है।
यूँ तो विभिन्न संशोधनवादी पार्टियों और यूनियनों की ओर से हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन वह बस एक अनुष्ठान होकर रह गया है। मगर बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में इस बार गोरखपुर में मई दिवस मजदूरों की जुझारू राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन गया।