लुधियाना के मेहनतकशों के एकजुट संघर्ष की बड़ी जीत
ढंडारी काण्ड : 42 निर्दोष मज़दूरों को बिना शर्त रिहा करवाया
लखविन्दर
पिछले वर्ष दिसम्बर के पहले सप्ताह में घटित ढण्डारी काण्ड (देखें बिगुल के पिछले अंक में छपी रिपोर्ट) के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए लुधियाना के अनेक मज़दूर, किसान, सरकारी कर्मचारी और नौजवान संगठनों के नेतृत्व में हुए एकजुट संघर्ष को बड़ी सफलता मिली है। 4-5 दिसम्बर को डी.सी. लुधियाना के कार्यालय के सामने धरना-प्रदर्शन से लेकर 17 जनवरी को लुधियाना के ढण्डारी खुर्द में 22 इंसाफपसंद संगठनों के नेतृत्व में हजारों मज़दूरों सहित किसानों,सरकारी कर्मचारियों और नौजवानों द्वारा एक जबरदस्त एकजुटता रैली और प्रदर्शन ने सरकार को मज़बूर कर दिया कि वह झूठे केसों में जेल में बंद किये गये ढण्डारी के 42 निर्दोष मज़दूरों को रिहा करे। इस प्रदर्शन के दो दिन बाद ही अधिकांश मजदूरों को बिना शर्त रिहा कर दिया गया। 17 जनवरी की विशाल रैली ने लुधियाना ख़ासकर फोकल प्वांइट क्षेत्र के मज़दूरों में फैले पुलिस और गुण्डों के डर को भी तोड़ने में अहम भूमिका अदा की है।
इस जबरदस्त रैली और प्रदर्शन के सफल आयोजन ने जहाँ मज़दूरों में फैले पुलिस और गुण्डों के डर के माहौल को तोड़कर पहली जीत दर्ज करवाई थी वहीं दूसरी जीत तब हासिल हुई जब रैली को अभी दो दिन भी नहीं बीते थे कि 19 जनवरी की रात को 39 मज़दूर को जेल से बिना शर्त रिहा कर दिया गया। रिपोर्ट लिखे जाने तक 3 नाबालिग बच्चों को कुछ कागजी कार्रवाई के चलते रिहाई नहीं मिल सकी थी लेकिन उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है। कारखाना मज़दूर यूनियन लुधियाना तथा अन्य संगठन बच्चों की रिहाई की कार्रवाई जल्द पूरी करवाने के लिए प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं। पंजाब सरकार ने पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड के जरिये पीड़ितों के लिए 17 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर भी जारी किये हैं। संगठनों के साझा मंच ने इस मुआवजे को नाममात्र करार देते हुए पीड़ितों को उचित मुआवजा देने की माँग की है। यह जीत लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन की बहुत बड़ी जीत है। इस जीत ने लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन में नया जोश भरने का काम किया है।
17 जनवरी की एकजुटता रैली के आयोजन को असफल करने के लिए पुलिस ने बहुत प्रयास किये थे। रैली स्थल बदलने के लिए आयोजकों पर बहुत दबाव डाला गया। ढण्डारी वही इलाका है जहाँ दिसम्बर में लुधियाना के मज़दूरों ने बाईकर्स गैंग द्वारा रोजाना मारपीट और छीना-झपटी के विरोध में प्रदर्शन किया था। तीन दिसम्बर की रात को अपने एक साथी के साथ हुई वारदात की रिपोर्ट लिखवाने जब कुछ मज़दूर पुलिस चौकी गये तो उन्हें बेइज्ज़त करके भगा दिया गया। इसके विरोध में जब लगभग 500 मज़दूरों ने जी.टी. रोड जाम कर दिया तब भी उनकी बात सुनने के बजाय पुलिस ने उन पर बर्बरतापूर्वक लाठियाँ बरसायीं। पुलिस ने ढण्डारी फ्लाईओवर से सटे मज़दूरों के क्वार्टरों के दरवाजे तोड़कर बर्बरतापूर्वक पिटाई करते हुए 42 बेकसूर मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें 3नाबालिग बच्चे भी थे। इसके ख़िलाफ 4 दिसम्बर को लगभग दस हजार मज़दूरों का सैलाब सड़कों पर उतरा। प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों पर पुलिस ने सीधी गोलियाँ चलायीं (पूँजीवादी मीडिया ने इस तथ्य को बेशर्मी से छुपा लिया था)। लाठी-गोली से खदेड़े गये इन मज़दूरों पर पुलिस ने तलवारों, डण्डों, क्रिकेट के बल्लों,हॉकियों से लैस गुण्डों द्वारा हमला करवाया। कई दिन तक इस इलाके में कर्फ्यू रहा। लेकिन यह कर्फ्यू सिर्फ मज़दूरों के लिए था। पुलिस का समर्थन प्राप्त गुण्डों ने इस कर्फ्यू के दौरान मज़दूरों के सामान सहित सैकड़ों क्वार्टरों और दुकानों को आग लगा दी। कई मज़दूरों को जान से मार डाला गया। अनेक स्त्रियों को बलात्कार का शिकार बनाया गया।
लुधियाना के इसी क्षेत्र, ढण्डारी, में एकजुटता रैली और प्रदर्शन के आयोजन के ऐलान से लुधियाना का पुलिस-प्रशासन बौखलाया हुआ था। पूँजीवादी राजनीतिक पार्टियाँ और संगठन भी नहीं चाहते थे कि वामपंथी धारा से जुड़े जनसंगठनों द्वारा इस इलाके में रैली की जाये। लेकिन जब आयोजक न माने तो ढण्डारी के लोगों में रैली के बारे में डर फैलाने की कोशिश की गई कि रैली से फिर एक बड़ा हंगामा होगा इसलिए वे इस रैली में न जायें। 17 जनवरी को रैली वाले दिन फोकल प्वायंट एरिया पुलिस छावनी में बदल दिया गया। रैली स्थल, ढण्डारी खुर्द की ईश्वर कालोनी की सब्जी मण्डी में पुलिस की गाड़ियाँ ही गाड़ियाँ ही नजर आयीं। यह लोगों में दहशत फैलाने के लिए था ताकि लोग रैली के लिए वहाँ इकट्ठे ही न हों। लोगों को रैली में पहुँचने से रोकने के लिए जगह-जगह नाके लगाये गये। जी.टी. रोड से रेलवे लाइन पार करके रैली स्थल तक पहुँचने से रोकने के लिए पुलिस ने सारे इन्तजाम कर रखे थे। लेकिन रैली को असफल करने की पुलिस की सारी कोशिशें धरी की धरी रह गईं।
संगठनों ने पहले ही योजना बना ली थी कि कोई भी ढण्डारी में अकेला पहुँचे ही नहीं। दोपहर 12 बजे शेरपुर लेबर मण्डी (आरती स्टील के पास) चौक से 500-600 लोगों ने ढण्डारी की ईश्वर कालोनी की सब्जी मण्डी की तरफ पैदल मार्च शुरू कर दिया। पुलिस यह तो चाहती थी कि रैली न हो लेकिन वो फिर से दिसम्बर जैसा टकराव नहीं चाहती थी। लोगों के विशाल जुलूस को रोकने की उसकी हिम्मत नहीं थी। ”जीना है तो मरना सीखो, कदम कदम पर लड़ना सीखो”, ”ढण्डारी काण्ड में गिरफ्तार किये गये 42 मज़दूरों को रिहा करो”, ”ढण्डारी काण्ड के पीड़ितों को इंसाफ दो”, ”दोषी पुलिस अधिकारियों और गुण्डों को सजा दो”, ”पंजाबी-प्रवासी के झगड़े छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो”, ”मज़दूर, किसान, मुलाजिम, नौजवान एकता ज़िन्दाबाद”, आदि गगनभेदी नारे बुलन्द करता हुआ यह जुलूस ढण्डारी ख़ुर्द की ईश्वर कालोनी के सब्जी मण्डी मैदान तक पहुँचा।
पहले तो ढण्डारी के लोग रैली में शामिल होने से डरे लेकिन धीरे-धीरे वे रैली में आकर शामिल होते गये। 1500 से भी अधिक मज़दूर अब रैली के मैदान में जमा हो चुके थे। साथ ही हजारों लोग अपने घरों और बेहड़ों-बाउण्डरियों की छतों पर से भी भाषण सुन रहे थे।
रैली का संचालन कर रहे कारखाना मज़दूर यूनियन, लुधियाना के संयोजक राजविन्दर ने कहा कि आज की यह रैली पुलिस-प्रशासन को करारा जवाब है जिसने दिसम्बर में मज़दूरों के बर्बर दमन के बाद सोचा था कि अब मज़दूर लम्बे समय तक एकता बनाने का साहस नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि मज़दूरों के जीवन की पल-पल की लूट, शोषण, अन्याय, अपमान और नारकीय परिस्थितियाँ उन्हें शोषकों के विरुद्ध लड़ने के लिए मजबूर करती हैं। ज़ुल्म और दमन से उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता। राजविन्दर ने पंजाब सरकार और लुधियाना पुलिस-प्रशासन को चेतावनी दी कि अगर 42 निर्दोष मज़दूरों पर दर्ज झूठे पुलिस केस रद्द करके उन्हें रिहा नहीं किया गया, दिसम्बर काण्ड के दौरान हुए मज़दूरों के जान-माल के नुकसान के लिए मुआवजा नहीं दिया गया, मज़दूरों पर निर्मम अत्याचार और स्त्रियों के साथ बलात्कार के दोषी पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों और गुण्डों को सजा नहीं दी गयी तो मज़दूर लुधियाना की सड़कों पर और तीखी लड़ाई लड़ने पर मज़बूर होंगे।
नौजवान भारत सभा, पंजाब के संयोजक परमिंदर ने मेहनतकश जनता को एकजुट होकर दमनकारी पूँजीवादी हुक्मरानों के खिलाफ संघर्ष करने का आह्नान किया। उन्होंने कहा कि लुधियाना के दिसम्बर काण्ड के दौरान जनविरोधी क्षेत्रवादी व्यक्तियों, संगठनों ने मेहनतकशों को पंजाबी-प्रवासी के नाम पर बाँटने की जी-तोड़ कोशिशें की थीं। ढण्डारी काण्ड के पीड़ित मज़दूरों के हक में पंजाब के कारखाना मज़दूरों, ग्रामीण मज़दूरों, किसानों, सरकारी कर्मचारियों, नौजवानों की यह एकजुटता रैली और प्रदर्शन इन क्षेत्रवादियों को करारा जवाब भी है। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों से पंजाब में आकर बसे और काम कर रहे मज़दूरों को प्रवासी नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपने ही देश के एक राज्य से दूसरे राज्य में से कोई प्रवासी नहीं हो जाता।
नौजवान भारत सभा, चण्डीगढ़ की संयोजिका नमिता ने कहा कि यह बहुत ही खुशी की बात है कि रैली में स्त्रियाँ भी शामिल हैं। उन्होंने कहा की जब भी ग़रीबों पर हुक्मरानों द्वारा भारी हमला बोला जाता है तब सबसे अधिक ज़ुल्म स्त्रियों को सहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि मेहनतकश स्त्रियों को भी पुरुषों के कन्धे से कन्धा मिलाकर इस लुटेरी व्यवस्था को नेस्तनाबूद करने के लिए आगे आना होगा।
रैली में मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्स यूनियन के प्रधान हरजिन्दर सिंह ने कहा कि यह विशाल रैली इस बात की गवाह है कि मज़दूरों की आवाज को दमन के जरिये दबाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि पुलिस बड़े कारख़ानादारों, मौकापरस्त नेताओं, धनकुबेरों की ही रक्षा के लिए है। लोगों को सरकार, पुलिस,अदालत और पार्टियों से इंसाफ की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। मज़दूरों-मेहनतकशों का एकजुट संघर्ष ही दमनकारियों से उनकी रक्षा कर सकता है और उन्हें इंसाफ दिला सकता है। मज़दूरों को अपने कारख़ानों में यूनियन बनाने के अधिकार के लिए भी लड़ना होगा क्योंकि मज़दूरों को आज उनके संगठित होने के जनवादी अधिकार से भी वंचित रखा जा रहा है। मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्स यूनियन के प्रधान विजय नारायण ने कहा कि जब भी मज़दूरों ने कुछ हासिल किया है वह लड़कर हासिल किया है। मज़दूरों मेहनतकशों की फौलादी एकता ही उनके हो रहे लूट, शोषण, अन्याय, अपमान, अत्यचारों, दमन का अन्त करेगी।
उनके अलावा रैली को लोक एकता संगठन के प्रधान गल्लर चौहान, मज़दूर यूनियन इलाका खन्ना-समराला के नेता मलकीत सिंह, ग्रामीण मज़दूर यूनियन (मशाल) के नेता चमन सिंह, भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहां) के नेता दर्शन कूहली, आल इण्डिया सेण्टर आफ ट्रेड यूनियन्स के नेता बाल किशन,पंजाब रोडवेज इम्पलाइज यूनियन (आजाद) के नेता अमरीक सिंह, लाल झण्डा टेक्स्टाइल एण्ड होजरी मज़दूर यूनियन के नेता श्याम नारायण यादव, भारतीय किसान यूनियन (एकता) के नेता निर्मल सिंह माल, डेमोक्रेटिक टीचर्स ऱ्ण्ट के नेता मा. मलकीत सिंह, डेमोक्रेटिक इम्प्लाइज ऱ्ण्ट के नेता रमनजीत सन्धू,टेक्निकल सर्विसेज यूनियन के नेता भरपूर सिंह, जनवादी अधिकार सभा के ए.के. मलेरी, होजरी वर्कर्स यूनियन के रमेश कुमार, पीएयू इम्पलाइज डेमोक्रेटिक मंच के जसवंत जीरख ने भी सम्बोधित किया। इस एकजुटता रैली को लाल झण्डा पंजाब निर्माण मज़दूर यूनियन (हरदेव सनेत), पंजाब निर्माण मज़दूर यूनियनके हरि सिंह साहनी, पंजाब निर्माण वाटर सप्लाई सीवरेज बोर्ड मज़दूर यूनियन (मोहन लाल), किरती किसान सभा (प्रेम सिंह) का समर्थन प्राप्त था। रैली मेंइस्पात इम्पलाइज यूनियन, मण्डी गोबिन्दगढ़ के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया।
दूसरी ओर, अकाली दल, भाजपा, कांग्रेस, बसपा जैसे रंग-बिरंगे झण्डों वाले चुनावी राजनीतिक मदारियों से लेकर अखिल भारतीय पूर्वांचल विकास परिषद जैसे क्षेत्रवादी संगठन भी, जिनके पास मज़दूरों-मेहनतकशों की असल समस्याओं के हल के लिए संघर्ष का कोई कार्यक्रम नहीं है और आज तक हमेशा पूँजीपति हुक्मरानों की सेवा करते आये हैं, जोरशोर से यह प्रचार कर रहे हैं कि मज़दूरों की रिहाई उनकी कोशिशों की बदौलत हुई है। वे सरकार व प्रशासन के साथ हुई टेबल-कुर्सी की तथाकथित बातचीतों का हवाला दे रहे हैं। लेकिन कुछ को छोड़कर सभी मज़दूर जानते हैं कि अगर सरकार, पुलिस, प्रशासन के ख़िलाफ लुधियाना के मज़दूर-मेहनतकश सड़कों पर न उतरे होते तो इंसाफ नहीं मिल सकता था। वे अच्छी तरह जानते हैं कि टेबल-कुर्सी की बातचीत से जनता के मसले हल नहीं होते। सरकार, पुलिस-प्रशासन ने जनाक्रोश के दबाव में ही बेकसूर मज़दूरों की रिहाई की है। 3-4 दिसम्बर को जब हजारों मज़दूर सड़कों पर रोष-प्रदर्शन के लिए उतरे थे तो ये सभी चुनावी राजनीतिक पार्टियाँ और व्यक्ति मज़दूरों के दमन में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे। यही लोग अब मज़दूरों के वोट हासिल करने के लिए देवता होने का ढोंग कर रहे हैं।
बिगुल, जनवरी-फरवरी 2010
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