इसी के उलट जब ग़रीबों-मज़दूरों की ज़िन्दगी भर की ख़ून-पसीने की कमाई से बनाये गये घरों-दुनिया को उजाड़ना होता है तब कोई दया नहीं बख्शी जाती है। एक दिसम्बर 2009 को कड़ाके की ठण्ड में सूरजपार्क (समयपुर बादली, दिल्ली) की झुग्गियों को तुड़वाने के लिए, उन निहत्थे मज़दूरों के वास्ते 1500 सौ पुलिस और सीआरपीएफ़ के जवान राइफ़ल, बुलेट प्रूफ़ जैकेट, आँसू गैस के साथ तैनात थे। चारों तरफ़ से बैरिकैड बनाकर डी.डी.ए. के आला अफ़सर, स्थानीय नेता, आस-पास के थानों की पुलिस पूरी बस्ती में परेड करते हुए मज़दूरों में दहशत पैदा कर रहे थे। सारे मज़दूर डरे-सहमे हुए, कोई किसी पुलिस वाले का पैर पकड़ रहा है, तो कोई किसी अफ़सर या नेता आगे हाथ जोड़ रहा है। कड़ाके की ठण्ड में उनका दुख देखकर किसी का भी दिल नहीं पसीजता और फिर शुरू होता है तबाही का मंज़र। पाँच इधर से पाँच उधर से बुलडोज़र धड़ाधड़-धड़ाधड़ झुग्गियाँ टूटना शुरू हो गयीं। उन डरे-सहमे मज़दूरों ने अपनी दुनिया को अपने सामने उजड़ते देखा। भगदड़ में कोई आटा घर से निकालकर ला रहा है, कोई चावल, कोई गैस— 3 घण्टे की इस तबाही ने क़रीब 5 हज़ार लोगों की दुनिया उजाड़ कर उनको सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया।