टेक्सटाइल मजदूर प्रेमचन्द उर्फ पप्पू की मौत महज एक हादसा नहीं
कारख़ाना मालिकों की मुनाफे की हवस और लापरवाही का अगला शिकार कहीं आप तो नहीं?
राजविन्दर
4 जून को शाम सात बजे ताना मास्टर प्रेमचन्द उर्फ पप्पू जिन्दगी की लड़ाई हार गया। मशीन में करण्ट आने के कारण पप्पू की मौत हो गयी। साथी मजदूरों ने बहुत कोशिश की उसे बचाने की। मालिश की, अस्पताल लेकर गये लेकिन पप्पू को बचा नहीं पाये। यह घटना टी. एस. टेक्सटाइल, शक्ति नगर, टिब्बा रोड की है। पप्पू की मौत के बाद मालिक आनन-फानन में बीस हजार देकर मामले को निपटाना चाहता था, लेकिन शक्ति नगर के मजदूरों और प्रेमचन्द के मुहल्ले वालों के कड़े रुख़ के कारण मालिक को दो लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने पड़े। कारीगरों द्वारा कारख़ाने बन्द करके धरना लगाया जाना प्रशंसनीय कदम था, जिसकी बदौलत ही पप्पू के परिवार को मुआवजा मिला।
इस घटना की आशंका तो कुछ दिन पहले ही हो गयी थी, जब एक कारीगर को करण्ट लगा था। उसने मालिक को इसकी जानकारी भी दी थी, लेकिन मालिक ने इस बात को अनदेखा कर दिया। पप्पू की मौत का पता चलने पर ‘कारख़ाना मजदूर यूनियन’ ने पप्पू के परिवार से सम्पर्क किया और उन्हें साथ देने का भरोसा दिलाया। अगले दिन सुबह ‘कारख़ाना मजदूर यूनियन’ के नेतृत्व में मजदूरों ने कारख़ाने बन्द करने शुरू कर दिये और नारे लगाते हुए मार्च करते हुए गली-गली घूमकर शक्ति नगर के लगभग सभी 32 कारख़ाने बन्द करवाये और मजदूरों को साथ लेकर टी.एस. टेक्सटाइल के गेट पर धरना दिया। यह ऐलान किया गया कि जब तक पप्पू को इंसाफ नहीं मिल जाता, अन्तिम संस्कार नहीं हो जाता, तब तक कोई कारख़ाना नहीं चलेगा। मजदूरों के इस दृढ़ फैसले का ही असर था कि जो मालिक पहले मुआवजे के नाम पर सिर्फ बीस हजार रुपये दे रहा था, वह दो लाख रुपये देने को राजी हुआ। यह मजदूरों की अपने साथी के प्रति वर्गीय भावना का प्रतीक थी। पप्पू के अन्तिम संस्कार में लगभग 300 मजदूर ‘कारख़ान मजदूर यूनियन’ की अगुवाई में नारे लगाते हुए तीन किलोमीटर का पैदल मार्च करते हुए श्मशान घाट पहुँचे और अपने साथी को अन्तिम विदाई दी।
बेशक दो लाख रुपये किसी इंसान की कीमत नहीं होती और न ही पप्पू के चार छोटे-छोटे बच्चों की जिन्दगी की जरूरतें पूरी करने के लिए काफी हैं, लेकिन इस घटना ने मालिकों की नजर में एक मजदूर की क्या हैसियत है इस तथ्य को बख़ूबी उजागर किया है।
मजदूरों के साथ होने वाली ऐसी घटनाओं के मुख्य दोषी एक तो, कारख़ाना मालिक हैं, जो कारख़ानों में मजदूरों की सुरक्षा की तरफ कोई ध्यान नहीं देते। टी.एस. टेक्सटाइल में शाल बनाने का काम होता है। अन्य कारख़ानों की तरह ही यहाँ भी पीस रेट पर काम होता है। कारख़ाने में मजदूरों का पहचान पत्र, हाजिरी कार्ड, ई.एस.आई., पीएफ., बोनस, छुट्टी आदि से सम्बन्धिात कोई भी कानून लागू नहीं है। इसी तरह लुधियाना के अन्य अनेक कारख़ानों में मालिकों का जंगलराज चलता है।
दूसरे दोषी लेबर अधिकारी हैं जो मोटी-मोटी तनख्वाहें तो जनता पर टैक्स लगाकर इकट्ठा हुए ख़जाने से लेते हैं, लेकिन सरेआम मालिकों का पक्ष लेते हैं। कोई भी लेबर अधिकारी कारख़ानों में मजदूरों के हालात की जानकारी लेने नहीं आता। अगर आता है तो सिर्फ कारख़ाना मालिकों से मजदूरों की लूट में से अपना हिस्सा लेने। उपरोक्त दुर्घटना के बाद भी कोई लेबर अधिकारी नहीं पहुँचा जो पीड़ित परिवार को उचित मुआवजा दिलाता। होना तो यह चाहिए था कि कारख़ानों में सुरक्षा इन्तजामों की पड़ताल करके दोषी मालिकों के ख़िलाफ जरूरी कार्रवाई की जाती।
लेबर विभाग की कार्यप्रणाली पर हैरानी तब अधिक बढ़ गयी जब ‘कारख़ाना मजदूर यूनियन’ की अगुवाई में 9 जून को लेबर दफ्तर पर प्रदर्शन करके कारख़ानों में सुरक्षा इन्तजामों की चैकिंग करने और लेबर कानून लागू करवाने के लिए माँगपत्र सौंपा गया। मौके पर मौजूद अधिकारियों ने बताया कि लुधियाना में 1991 के बाद फैक्टरी इंस्पेक्टर की पोस्ट ख़ाली पड़ी है। एरिया ए में भी एडीशनल लेबर इंस्पेक्टर है जो सिर्फ सप्ताह में दो दिन ही आता है। इससे सरकार का मजदूरों के प्रति रवैया एकदम स्पष्ट है। मजदूरों को मालिकों के आगे मेहनत की लूट करवाने के लिए फेंका जा रहा है। लगातार कारख़ाना मालिकों की गुण्डागर्दी बढ़ती जा रही है। इसमें पुलिस भी मालिकों का साथ दे रही है। इसका उदाहरण है शक्ति नगर में ही स्थित प्रीतम बाजवा कारख़ाने के मालिक के लड़के लाडी द्वारा भद्र नाम के मजदूर की पिटाई करके दाँत तोड़ने के बाद रात को जबरदस्ती कारख़ाने में बन्द करके काम करवाने की घटना। इस सम्बन्ध में पुलिस थाना बस्ती जोधेवाल में मालिक के ख़िलाफ यूनियन ने शिकायत की, लेकिन अभी तक पुलिस मालिक के ख़िलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रही है।
ऐसे ही कारणों के चलते मजदूर के साथ कारख़ानों में मारपीट, मालिकों द्वारा काम करवाकर पैसे न देना, मनमर्जी से काम से निकाल देना और कारख़ानों में होते हादसों में मजदूरों की मौतों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आख़िर इस जंगलराज को कब तक सहन किया जाता रहेगा? पता नहीं मालिकों की मुनाफे की हवस का अगला शिकार कौन होगा? न्यू शक्ति नगर के पावरलूम कारख़ानों के मजदूरों ने इस बात को समझ लिया है कि अगर अकेले-अकेले रहे तो मार खाते रहेंगे। मिलकर एकता बनाकर ही मालिकों, गुण्डों और पुलिस की गुण्डागर्दी का सामना कर सकते हैं। मजदूरों को अब अपना पक्ष चुनना ही होगा कि पप्पू की तरह ही किसी दिन किसी हादसे का शिकार होना है या अपनी और अपने बच्चों की बेहतर जिन्दगी और स्वाभिमान से जीने की एकजुट लड़ाई लड़नी है।
बिगुल, जून 2010
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