लुधियाना के होजरी मजदूर संघर्ष की राह पर
राजविन्दर
लुधियाना में हौजरी उद्योग में पैसा लगाने वाले उद्योगपति तेजी से तरक्की करके बेहिसाब मुनाफा कमा रहे हैं। इसलिए अब छोटे कारखानों के अलावा होजरी उद्योग में बड़े-बड़े कारखाने आये और आ रहे हैं जिनमें मजदूरों की संख्या कुछ सौ से लेकर हजारों तक भी है।
इन होजरियों में एक के मालिक पी.के. का नाम आता है जिसके तीन कारखानों में 1000 से ऊपर कारीगर काम करते हैं। सभी कारखानों में ठेके (पीस रेट) पर काम होता है। कारखाने में किसी वर्कर का पहचान पत्र, पक्का हाजिरी रजिस्टर, हाजिरी कार्ड, पीएफ, बोनस, छुट्टियाँ, डबल ओवर टाइम आदि कोई भी श्रम कानून लागू नहीं। आदर्श नगर वाली यूनिट में 500 से अधिक मजदूर होने पर भी फैक्ट्री लिमिटेड नहीं है। गैरकानूनी तरीके से चल रही है। यही हाल लुधियाना की अधिकतर होजरियों का है। लेकिन पी.के. के नियम कुछ खास हैं। कारीगरों के बताये अनुसार जो माल वे बना रहे हैं, उसका बाजार में रेट 15-16 रुपये प्रति पीस मिलता है लेकिन पी.के. उसके 11.30 रुपये देता था और माल अधिक कसा हुआ बनवाता था। इस कारण मशीन भारी चलती है और मेहनत ज्यादा लगती है।
पिछली 14 अप्रैल को पी.के. होजरी में पीस रेट बढ़ाने के लिए फैक्ट्री मजदूरों ने काम बन्द कर दिया। पाँचवें दिन आखिरकार मालिक कुछ पीस रेट बढ़ाने के लिए मजबूर हुआ। इस तरह मजदूरों ने एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण संघर्ष किया और कुछ सफलता भी प्राप्त की और बाकी कारखानों के मजदूरों को भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी, जो पी.के. फैक्ट्री के कारीगरों की तरह ही दिन-रात मेहनत करके अपनी पारिवारिक जरूरतें पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले वर्ष भी कारीगरों ने पीस रेट में बढ़ोत्तरी के लिए हड़ताल की थी जिसके बाद पीस रेट में एक रुपये चालीस पैसे की बढ़ोत्तरी हो गयी थी। लेकिन इस वर्ष महँगाई में दोगुना बढ़ोत्तरी हुई है तो भी मालिक ने पीस रेट बढ़वाने की बात तक नहीं की। कारीगरों ने मालिक तक पीस रेट बढ़वाने के लिए आवाज पहुँचायी जो अनसुनी कर दी गयी। वर्करों की माँग के अनुसार मालिक रेट देने के लिए तैयार नहीं था। इससे मजबूर होकर कारीगरों ने हड़ताल कर दी थी, जो पाँच दिन तक चली। 19 अप्रैल को मालिक ने प्रति पीस 1 रुपये 95 पैसे की बढ़ोत्तरी की, तो कारीगरों ने 13 रुपये 25 पैसे पीस रेट पर आपसी सहमति से फैसला कर लिया और इस तरह एक आंशिक सफलता प्राप्त की। मजदूरों द्वारा लड़ा गया यह छोटा-सा लेकिन महत्वपूर्ण संघर्ष था जिसके बहुत से अच्छे पक्ष रहे।
आदर्श नगर (नजदीक समराला चौक) वाले कारखाने में 500 से अधिक मजदूर काम करते हैं। इसमें स्वेटर, जर्सियाँ बनती हैं। इस कारखाने में 400 फ्रलैट मशीनें चलाने वाले, लगभग 70 दर्जी, 20 कोना बैण्डर वाले, लगभग 20-25 मजदूर सफाई और हेल्पर हैं। इस कारखाने के मजदूरों ने संघर्ष की पहलकदमी की। अपनी परिस्थितियों को बेहतर बनाने के लिए मजदूरों द्वारा किया गया यह संघर्ष जायज और प्रशंसनीय था। इस आन्दोलन में परस्पर विचार-चर्चा और आपसी सहमति से हड़ताल करने का पहलू तारीफ करने लायक था।
14 अप्रैल को वेतन मिलने के बाद हड़ताल करना मजदूरों के अनुभव में से सीखे सबकों में से एक था। क्योंकि पिछले वर्ष बिना वेतन लिये ही काम बन्द कर दिया गया था जिस कारण कारीगर हड़ताल के बाद आर्थिक संकट में फँसने के कारण जल्दी ही हड़ताल तोड़ने के लिए मजबूर हो गये थे। मजदूरों ने अपनी एकता के दम पर निडर होकर मालिक के सामने अपनी माँगें रखीं और बातचीत की, जिसने मालिकों के मजदूरों के अन्दर आतंक को तोड़ा। मजदूरों की एकता और आत्मविश्वास की भावना मजबूत हुई।
कुछ बातों का धयान रखा जाये तो ऐसे संघर्ष को और बेहतर ढंग से तथा और अधिक माँगें मनवाने की तरफ मोड़ा जा सकता है।
सबसे पहले तो परिस्थितियों की ठोस जानकारी हासिल करना जरूरी था। मजदूर आन्दोलनों के इतिहास का यह एक अहम सबक है कि जब कारखाना मन्दी में चल रहा हो तो हड़ताल करना एक हद तक मालिक का फायदा करना ही होता है। क्योंकि मालिक के पास कोई ऑर्डर नहीं होता और वह पहले ही काम बन्द कर देना चाहता है। अपनी माँगें मालिकों के आगे तब रखनी चाहिए, जब काम पूरे जोर-शोर से चल रहा होता है। मालिक को ऑर्डर टूटने का डर रहता है और मालिक जल्दी माँगें मानने को मजबूर होता है। इस बात का पी.के. होजरी के मजदूर साथियों ने धयान नहीं रखा।
अगर कारखाने में हड़ताल करनी ही हो तो हमें संघर्ष में ऐसी माँगें भी शामिल करनी चाहिए जो सभी मजदूरों की साझी हों। वे भले ही वेतन वाले हों या पीस रेट वाले। जैसे कारखाने की ओर से पहचान पत्र बनाने, ई.एस.आई, साप्ताहिक छुट्टी, जबरदस्ती ओवर टाइम लगवाने पर पाबन्दी, कारखाने में मजदूरों का हाजिरी रजिस्टर, पीने के साफ पानी, साफ-सफाई का प्रबन्ध, आदि ऐसी माँगें हो सकती हैं।
हड़ताल से पहले हड़ताल की तैयारी करनी होती है। हड़ताल तो मजदूरों का आखिरी हथियार है। जब कोई सुनवाई नहीं होती, हड़ताल तब की जाती है। इससे पहले विभिन्न विभागों में मीटिंगें, गेट मीटिंगें, कुछ घण्टों के लिए काम बन्द करना जिससे पता चल जाता है कि कितने कारीगर एकता में शामिल हैं। संघर्ष फण्ड जमा करना – अगर हड़ताल कुछ दिन अधिक चल जाये तो परिवार का पेट पालने के लिए यूनियन अपने सदस्यों की मदद करे। अपनी कुछ माँगें छाँटकर माँगपत्र तैयार करके सभी कारीगरों से साइन करवाकर कारखाना प्रबन्धन और लेबर अधिकारियों को देना चाहिए। अगर तय समय पर माँगें नहीं मानी जाती हैं तो हड़ताल की जा सकती है। इसके लिए भी हड़ताल का दायरा बड़ा करना चाहिए। कारीगरों की एक साझी संघर्ष कमेटी बनाकर बहुमत की सहमति से फैसले लागू होने चाहिए। अन्य कारखानों के मजदूरों को भी हड़ताल में शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए।
पी.के. में पहले हुई हड़ताल और इस बार हुई हड़ताल में भी कारीगर छुट्टी करके घर बैठ गये थे और सिर्फ बीस-पच्चीस प्रतिशत कारीगर ही कारखाने के आसपास घूमते रहते थे या कारखाने के पास पार्क में बैठ जाते थे। इस तरह छुट्टी करके घर बैठ जाना आन्दोलन से पलायन कर जाना है। आपसी सहयोग और एकता में विश्वास करके ही मालिकों से कोई माँग मनवायी जा सकती है। हड़ताल करके गेट पर धरना लगाकर बैठ जाने से मालिक को इस बात का अहसास हो जाता है कि मजदूर संघर्ष करने के लिए दृढ़ हैं।
इस आन्दोलन में जो मजदूर साथी आगे होकर मालिकों से रेट की बात कर रहे थे, उन्हें मालिक काम से हटाने की कोशिश करेंगे। अधिकतर कारखानों में मालिक नेतृत्वकारी मजदूरों को किसी न किसी बहाने कारखाने से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। इन्हीं बातों के मद्देनजर आपसी एकता बनाये रखना आने वाले समय की माँग है। बाकी कारखानों के मजदूरों से सम्पर्क करके होजरी उद्योग के मजदूरों की एक साझा संघर्ष कमेटी बनाने और एक साझा माँगपत्र तैयार करके उस पर संघर्ष का आधार तैयार करने का यह समय है।
बिगुल, मई 2010
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