Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

2000 मज़दूरों ने विशाल चेतावनी रैली निकाली

यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी तादाद में एकजुट होकर करावलनगर के मज़दूरों ने हड़ताल की है। इसके पहले भी कुछ छिटपुट हड़तालें हुई थीं, लेकिन तब बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के मज़दूर एकजुट नहीं हो पाते थे और हड़तालें सफल नहीं हो पाती थीं। बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में यह पहला मौका है जब सभी मज़दूर जाति, गोत्र और क्षेत्र के बँटवारों को भुलाकर अपने वर्ग हित को लेकर एकजुट हुए हैं।

बादाम मज़दूरों के नेता रिहा

करावलनगर इलाके में चौथे दिन भी हज़ारों की संख्या में मज़दूर हड़ताल स्थल पर मौजूद रहे। हड़ताल के जारी रहने से करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग ठप्प पड़ गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि करावलनगर पुलिस थाने के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और मज़दूरों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ न कराए जाने के कारण यूनियन सीधे पुलिस उपायुक्त, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पास शिकायत दर्ज़ कराएगी और अगर तब भी कार्रवाई नहीं होती है तो फिर हमारे पास अदालत जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। ग़ौरतलब है कि बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से बादाम मज़दूर अपने कानूनी हक़ों की माँग कर रहे हैं और साथ ही बादाम संसाधन उद्योग को सरकार द्वारा औपचारिक दर्ज़ा दिये जाने की माँग कर रहे हैं। फिलहाल, सभी बादाम गोदाम मालिक गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी सरकारी लाईसेंस या मान्यता के ठेके पर मज़दूरों से अपने गोदामों में काम करवा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर महिला मज़दूर हैं लेकिन उनके लिए शौचालय या शिशु घर जैसी कोई सुविधा नहीं है। बादाम मज़दूरों को तेज़ाब में डाल कर सुखाए गए बादामों को हाथों, पैरों और दांतों से तोड़ना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं और उन्हें टी.बी., खांसी, आदि जैसे रोग आम तौर पर होते रहते हैं। महिला मज़दूरों के बच्चे भी काफ़ी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मज़दूरों की जुझारू हड़ताल तीसरे दिन भी जारी

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के करावलनगर क्षेत्र में करीब 30 हज़ार मज़दूर परिवार बादाम तोड़ने का काम करते हैं। यह पूरा व्यवसाय देशव्यापी नहीं, बल्कि विश्वव्यापी है। बेहद आदिम परिस्थितियों में गुलामों की तरह खटने वाले ये मज़दूर जिन कम्पनियों के बादाम का संसाधन करते हैं, वे कम्पनियाँ भारत की नहीं बल्कि अमेरिका, आस्‍ट्रेलिया और कनाडा की हैं। ये भारत के सस्ते श्रम के दोहन के लिए अपने ड्राई फ्रूट्स की प्रोसेसिंग यहाँ करवाते हैं। दिल्ली की खारी बावली पूरे एशिया की सबसे बड़ी ड्राई फ्रूट मण्डी है। खारी बावली के बड़े मालिक सीधे विदेशों से बादाम मँगवाते हैं और उन्हें संसाधित करके वापस भेज देते हैं। ये मालिक संसाधन का काम छुटभैये ठेकेदारों से करवाते हैं जिन्होंने दिल्ली के करावलनगर, सोनिया विहार, बुराड़ी-संतनगर और नरेला में अपने गोदाम खोल रखे हैं। इन गोदामों कोई भी सरकारी मान्यता या लाईसेंस नहीं प्राप्त है और ये पूरी तरह से गैर-कानूनी तरह से काम कर रहे हैं। एक-एक गोदाम में 20 से लेकर 40 तक मज़दूर काम करते हैं। इनके काम के घंटे अधिक मांग के सीज़न में कई बार 16 घण्टे तक होते हैं। इन्हें बादाम की एक बोरी तोड़ने पर मात्र 50 रुपये दिये जाते हैं। इनमें महिला मज़दूर बहुसंख्या में हैं। उनके साथ मारपीट, गाली-गलौज और उनका उत्पीड़न आम घटनाएँ हैं।

बादाम तोड़ने वाले 25-25 हज़ार मज़दूर हड़ताल पर

नई दिल्‍ली के करावल नगर इलाके में बादाम तोड़ने वाले मज़दूरों ने हड़ताल की घोषणा कर दी है। ‘बादाम मज़दूर यूनियन’ के बैनर तले इन मज़दूरों के हड़ताल पर जाने से अमेरिका और ऑस्‍ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों में बादाम निर्यात प्रभावित हो गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजक आशीष ने कहा कि सरकार ने 1970 में ठेका मज़दूरी क़ानून के तहत जो बुनियादी अधिकार दिए थे उनका यहां कोई पालन नहीं हो रहा है। श्रम क़ानूनों के उल्‍लंघन से यहां के 20 हज़ार से ज्‍़यादा मज़दूर त्रस्‍त हैं। यूनियन के सदस्‍य राहुल ने कहा कि बेहिसाब महंगाई में न्‍यूनतम मज़दूरी भी न मिलने से मज़दूरों के परिवारों के सामने दाल-रोटी की चिंता बढ़ गयी है। लिहाज़ा मज़दूरों ने काम बंद कर दिया है।

बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजकों पर हमला, पुलिस ने गुण्‍डो की जगह संयोजकों को ही गिरफ्तार किया

पुलिस की इस अंधेरगर्दी से पूरे क्षेत्र के मज़दूरों में गुस्‍से की लहर दौड़ गयी। इस पूरे इलाके में क़रीब 25,000 मज़दूर बादाम तोड़ने का काम करते हैं। इन मज़दूरों के ठेकेदार बेहद निरंकुश हैं और क़रीब-क़रीब मुफ्त में मज़दूरों से काम करवाने के आदि हैं। बादाम मज़दूर यूनियन ने गुण्‍डों द्वारा मारपीट और पुलिस की मालिक परस्‍त भूमिका की तीखे शब्‍दों में निंदा की है। यूनियन ने बताया कि कल एक प्रतिनिधिमण्‍डल पुलिस के उच्‍चाधिकारियों से मिलेगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेगा। युनियन का कहना हैकि यदि उन्‍हें न्‍याय नहीं मिला तो वे आन्‍दोलनात्‍मक रुख अपनाने के लिए तैयार रहेंगे।

गुड़गाँव में हज़ारों-हज़ार मज़दूर सड़कों पर उतरे – यह सतह के नीचे धधकते ज्वालामुखी का संकेत भर है

बीस अक्टूबर को राजधानी दिल्ली से सटे गुड़गाँव की सड़कों पर मज़दूरों का सैलाब उमड़ पड़ा। एक लाख से ज्यादा मज़दूर इस हड़ताल में शामिल हुए। पूरे गुड़गाँव मानेसर औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन लगभग ठप हो गया। पूरी गुड़गाँव-धारूहेड़ा पट्टी में बावल और रेवाड़ी तक के कारख़ानों पर हड़ताल का असर पड़ा।

थैली की ताकत से सच्चाई को ढँकने की नाकाम कोशिश

एक बार फिर, खिसियानी बिल्ली उछल-उछलकर खम्भा नोच रही है। तथाकथित ‘उद्योग बचाओ समिति’ के स्वयंभू संयोजक पवन बथवाल ने थैली के ज़ोर से हमारे खिलाफ एक नया प्रचार-युद्ध छेड़ दिया है – झूठ-फरेब, अफवाहबाज़ी, और कुत्सा-प्रचार की नयी गालबजाऊ मुहिम शुरू हुई है। इसकी शुरुआत स्थानीय अख़बारों में छपे एक विज्ञापन से हुई है, जिसमें हमारे ऊपर कुछ नयी और कुछ पुरानी, तरह-तरह की तोहमतें लगाई गयी हैं। इनमें से कुछ घिनौने आरोपों के लिए हम पवन बथवाल को अदालत में भी घसीट सकते हैं, लेकिन उसके पहले हम इस फरेबी प्रचार की असलियत का खुलासा अवाम की अदालत में करना चाहते हैं।

गोरखपुर में मज़दूर आन्दोलन की शानदार जीत

आज के दौर में जब कदम-कदम पर मज़दूरों को मालिकों और शासन-प्रशासन के गँठजोड़ के सामने हार का सामना करना पड़ रहा है, गोरखपुर के मज़दूरों की यह जीत बहुत महत्वपूर्ण है। इसने दिखा दिया है कि अगर मज़दूर एकजुट रहें, एक जगह लड़ रहे मज़दूरों के समर्थन में मज़दूरों की व्यापक आबादी एकजुटता का सक्रिय प्रदर्शन करे, विश्वासघातियों और दलालों की दाल न गलने दी जाये और एक कुशल नेतृत्व की अगुवाई में साहस तथा सूझबूझ से पूँजीपतियों और प्रशासन की सभी चालों का मुकाबला किया जाये तो इस कठिन समय में भी मज़दूर छोटी-छोटी जीतें हासिल करते हुए बड़ी लड़ाई में उतरने की तैयारी कर सकते हैं। इस आन्दोलन ने देशभर में, विशेषकर मज़दूर संगठनों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है और इससे गोरखपुर ही नहीं, पूरे पूर्वी प्रदेश में मज़दूर आन्दोलन का नया एजेण्डा सेट करने की शुरुआत हो गयी है। इस आन्दोलन के सबकों और इसके दौरान सामने आये कुछ ज़रूरी सवालों पर आगे भी चर्चा जारी रहेगी।

अक्टूबर क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ पर बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ के अवसर पर 25 अक्टूबर को बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से लुधियाना में ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। समराला चौक के पास स्थित इ.डब्ल्यू.एस. कालोनी के निष्काम विद्या मन्दिर स्कूल में आयोजित की गयी इस विचार संगोष्ठी में लगभग 50 मज़दूर शामिल हुए। उन्होंने अक्टूबर क्रान्ति के दौरान शहीद होने वाले हजारों मज़दूर शहीदों की याद में खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा और मज़दूर वर्ग का अन्तरराष्ट्रीय गीत ”इण्टरनेशनल” गाया।

दिल्ली मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की सफल हड़ताल

‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ ने घोषणा की कि जब तक कर्मचारियों की जायज माँगें पूरी नहीं हो जाती तब तक अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगी। मेट्रो फीडर की इस हड़ताल को प्रिण्ट व इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी कवर किया। मीडिया में खबरें आने के बाद डी.एम.आर.सी. अपनी जान बचाने के लिए कर्मचारियों पर पुलिस प्रशासन से दबाव डलवाने लगा और ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ को लांछित और बदनाम करने की पुरजोर कोशिश करने लगा। परन्तु मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की अटूट एकजुटता और एकता के आगे ये तमाम चालबाजियाँ और हथकण्डे धरे के धरे रह गये।