ख़ुद की ज़िन्दगी दाँव पर लगा महानगर की चमक-दमक को बरकरार रखते बंगलूरू के पोराकर्मिका (सफ़ाईकर्मी)
आख़िर क्या वजह है कि आज जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी में ज़बरदस्त ढंग से बढ़ोत्तरी हो चुकी है यानि की जब सफ़ाई से जुड़ा बहुत सारा काम ऑटोमेटिक मशीनों के द्वारा ही संचालित किया जा सकता है फ़िर भी उसमें मनुष्यों को क्यों लगाया जा रहा है? और लगाया भी जा रहा है तो काम करने के इतने गंदे हालातों में क्यों? जवाबदेह अधिकारियों पर हमें निश्चित तौर पर ऊँगली उठानी चाहिए, पर यह पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि अधिकारीयों के क्रूर आचरण के अलावा इस पूरी व्यवस्था का ढांचा भी सफ़ाई कर्मचारियों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। यह व्यवस्था ही ऐसी है जिसमें अमीर-ग़रीब की खाई का दिन पे दिन गहराते जाना अवश्यम्भावी है। और ऐसा किया जाता है मजदूरों का श्रम ज्यादा से ज्यादा निचोड़ के, यानि उनके श्रम की कीमत पर अधिकतम मुनाफ़ा बनाने की होड़ में। और इस मुनाफ़ा केन्द्रित व्यवस्था में इसीलिए स्वचालित मशीनों की बजाय मनुष्यों से काम लिया जा रहा है क्योंकि ठेके पर मज़दूरी कराकर इंसानों का खून पीना ‘फिलहाल’ सस्ता है।