कारख़ाना इलाक़ों से
मज़दूरों की लूट के लिए मालिकों के कैसे-कैसे हथकण्डे
महेश, बादली, दिल्ली
मालिक लोग मज़दूर की मेहनत को लूटने के लिए कैसे-कैसे हथकण्डे अपनाते हैं इसकी मिसाल आपको देता हूँ। कुछ समय पहले मैं पानीपत में एक हैण्डलूम कारख़ाने में काम करता था। 2006 में वहाँ मुझे 8 घण्टे काम के 1700 रुपये मिलते थे जो उस समय हरियाणा की न्यूनतम मज़दूरी के आधे से भी कम था। इसके बाद 4-5 घण्टे ओवरटाइम करना पड़ता था जिसके लिए 5 रुपये घण्टे के रेट से मिलता था। बड़ी मुश्किल से गुज़ारा होता था क्योंकि 600 रुपये कमरे का किराया था जिसमें हम दो मज़दूर रहते थे।
यहीं पर मैंने देखा कि पीस रेट पर काम करने वाले कारीगरों को लूटने के लिए मालिक कैसी-कैसी तिकड़म करते थे। कारीगर सुबह जल्दी आकर लूम पर जुट जाते थे कि ज़्यादा पीस बना लेंगे तो ज़्यादा कमा लेंगे। लेकिन मालिक के चमचे फ़ोरमैन और मैनेजर आख़िर किसलिये थे? कारीगर अगर 9 या 10 चादर तैयार कर लेता था तो उसमें से 3-4 चादर मामूली फाल्ट निकाकर रिजेक्ट कर देते थे। उसका एक भी पैसा मज़दूर को नहीं मिलता था हालाँकि मालिक तो उसे बेच ही लेता था। लम्बाई में आध-पौना इंच की कमी-बेशी हो जाये तो माल रिजेक्ट। अगर बहुत हिसाब से कारीगर लम्बाई का ध्यान रखे, तो वज़न में 10-20 ग्राम कमी-बेशी निकालकर रिजेक्ट कर देते। यही हाल कढ़ाई के कारीगरों का होता था। कुछ न कुछ नुक्स निकालकर रोज़ पैसे काट लेते थे। ‘हरीसन्स एंड हरलाज’ नाम की इस कम्पनी में 3000 मज़दूर थे। जोड़ लीजिये कि अगर रोज़ 30-35 रुपये की औसत कटौती हो तो महीने में मालिक की कितनी बचत होती होगी। यहीं पर शीना एक्सपोर्ट कम्पनी में तो कुल मिलाकर 20 हज़ार से ऊपर आदमी काम करते हैं। हरीसन्स और शीना दोनों कम्पनियों का सारा माल एक्सपोर्ट के लिए जाता है। मैंने सुना है कि कोई-कोई कढ़ाईदार चादर विदेश में 3-3 लाख रुपये में बिकती है। लेकिन एक चादर पर काम करने वाले सारे कारीगरों को मिलाकर 250 रुपये भी नहीं मिलते।
यहाँ शायद ही कोई मज़दूर हो जो कर्ज़ में न डूबा हो। शिकायत चाहे जितना हो काम छोड़ नहीं सकते। बाहर इतने आदमी काम की तलाश में भटक रहे हैं, मालिक को तो तुरन्त दूसरा मिल जायेगा, मगर मज़दूर को काम नहीं मिला तो उधार चढ़ता जाता है। पैसे की लूट तो है ही, ऊपर से बात-बात पर गाली-गलौच और मार-पीट भी सहनी पड़ती है। यहाँ के मालिक इतने ज़ालिम हैं कि छुट्टी के दिन कमरे की लाइट काट देते हैं ताकि मजबूरी में मज़दूर को फैक्ट्री में ही आना पड़े। पूरे पानीपत में लाखों मज़दूर हैं। लेकिन एकता न होने के चलते कुछ नहीं कर सकते। एकता के बिना कुछ नहीं हो सकता। ये बात सब मज़दूरों को समझना ही पड़ेगा।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2012
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन