Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

हीरो मोटोकॉर्प के स्पेयर पार्ट्स डिपार्टमेंट से 700 मज़दूरों की छंटनी!

आज सारे पूँजीपतियों का एक ही नज़रिया है। ‘हायर एण्ड फायर’ की नीति लागू करो यानी जब चाहे काम पर रखो जब चाहे काम से निकाल दो, और अगर मज़दूर विरोध करें तो पुलिस-फौज, बांउसरों के बूते मज़दूरों का दमन करके आन्दोलन को कुचल दो। ऐसे समय अलग-अलग फैक्टरी-कारख़ाने के आधार पर मज़दूर नहीं लड़ सकते और न ही जीत सकते हैं। इसलिए हमें नये सिरे से सोचना होगा कि ये समस्या जब सारे मज़दूरों की साझा है तो हम क्यों न पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक के ऑटो सेक्टर के स्थाई, कैजुअल, ठेका मज़दूरों की सेक्टरगत और इलाकाई एकता कायम करें। असल में यही आज का सही विकल्प है वरना तब तक सारे मालिक-ठेकेदार ऐसे ही मज़दूरों की पीठ पर सवार रहेंगे।

कारख़ाना मालिक द्वारा एक मज़दूर की बर्बर पिटाई के खि़लाफ़ लुधियाना के दो दर्जन से अधिक कारख़ानों के सैकड़ों पावरलूम मज़दूरों ने लड़ी पाँच दिन लम्बी जुझारू विजयी हड़ताल

टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में मेहरबान, लुधियाना के दो दर्जन से अधिक पावरलूम कारख़ानों में सैकड़ों मज़दूरों ने एक जुझारू हड़ताल कामयाबी के साथ लड़ी है। 14 जुलाई की शाम से शुरू हुई और 19 जुलाई की दोपहर तक जारी रही यह हड़ताल वेतन वृद्धि, फ़ण्ड, बोनस जैसी आर्थिक माँगों पर नहीं थी बल्कि एक पावरलूम मज़दूर चन्द्रशेखर को मोदी वूलन मिल्ज़ के मालिक जगदीश गुप्ता द्वारा बुरी तरह पीटे जाने के खि़लाफ़ और मालिक के खि़लाफ़ सख़्त क़ानूनी कार्रवाई करवाने की माँग पर लड़ी गयी थी।

पंजाब सरकार फासीवादी काला क़ानून लागू करने की तैयारी में

पंजाब (सार्वजनिक व निजी जायदाद नुक़सान रोकथाम) बिल-2014’ की इन व्यवस्थाओं से इस क़ानून के घोर जनविरोधी फासीवादी चरित्र का अन्दाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। आगजनी, तोड़फोड़, विस्फोट आदि जैसी कार्रवाइयों के बारे में तो कहने की ज़रूरत नहीं कि ऐसी कार्रवाइयाँ सरकार, प्रशासन, पुलिस, नेता या अन्य कोई जिसके खि़लाफ़ प्रदर्शन किया जा रहा हो, वे ऐसी गड़बड़ियों को ख़ुद अंजाम देते रहे हैं और देंगे। अब इस क़ानून के ज़रिये सरकार ने पहले ही बता दिया है कि हर गड़बड़ का इलज़ाम अयोजकों-प्रदर्शनकारियों पर ही लगाया जायेगा। हड़ताल को इस क़ानून के दायरे में रखा जाना एक बेहद ख़तरनाक बात है। इस क़ानून में घाटे शब्द का भी विशेष तौर पर इस्तेमाल किया गया है। हड़ताल होगी तो नुक़सान तो होगा ही। इस तरह हड़ताल करने वालों को, इसके लिए सलाह देने वालों, प्रेरित करने वालों, दिशा देने वालों को तो पक्के तौर पर दोषी मान लिया गया है। बल्कि कहा जाना चाहिए कि हड़ताल-टूल डाऊन को तो इस क़ानून के तहत पक्के तौर पर जुर्म मान लिया गया है।

भोंडसी जेल का एक दौरा जहाँ मारूति के 147 मज़दूर बिना अपराध सिद्धि के दो साल से कै़द हैं।

मई 2013 में जब मज़दूरों की पहली जमानती अर्जी ख़ारिज हुई थी तब हरियाणा और पंजाब उच्‍च न्‍यायालय ने टिप्‍पणी की थी कि ”श्रमिक अशान्ति के भय से विदेशी निवेशक भारत में पूँजी निवेश करने से मना कर सकते हैं”। यह मामला एक मिसाल की तरह इस्‍तेमाल किया जा रहा है। यदि आरोप साबित होते हैं तो सभी 147 मज़दूरों को सख्‍़त से सख्‍़त सजा होगी, यानी कि उनको दो दशकों से भी अधिक समय के लिए कै़द हो सकती है।

एहरेस्टी के मज़दूरों की एकजुटता तोड़ने के लिए बर्बर लाठीचार्ज

मज़दूरों की एकजुटता को तोड़ने और प्लाण्ट ख़ाली करवाने के लिए कम्पनी ने 31 मई को हरियाणा पुलिस से साँठगाँठ कर मज़दूरों पर बर्बर लाठीचार्ज करवाया, जिसमें 30 से ज़्यादा मज़दूरों को गम्भीर चोटें आयी हैं। इस बर्बर दमन ने साफ़ कर दिया है कि चाहे भाजपा की वसुन्धरा सरकार या कांग्रेस की हुड्डा सरकार, वे तो बस पूँजीपतियों के हितों को सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं। 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाक़ों में सतह के नीचे आग धधक रही है!

श्रीराम पिस्टन फ़ैक्टरी की यह घटना न सिर्फ़ हीरो होण्डा, मारुति सुज़ुकी और ओरियण्ट क्राफ्रट के मज़दूर संघर्षों की अगली कड़ी है, बल्कि पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-भिवाड़ी की विशाल औद्योगिक पट्टी में मज़दूर आबादी के भीतर, और विशेषकर आटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के भीतर सुलग रहे गहरे असन्तोष का एक विस्फोट मात्र है। यह आग तो सतह के नीचे पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाक़ों में धधक रही है, जिसमें दिल्ली के भीतर के औद्योगिक क्षेत्रों के अतिरिक्त नोएडा, ग्रेटर नोएडा, साहिबाबाद, फ़रीदाबाद, बहादुरगढ़ और सोनीपत, पानीपत के औद्योगिक क्षेत्र भी आते हैं। राजधानी के महामहिमों के नन्दन कानन के चारों ओर आक्रोश का एक वलयाकार दावानल भड़क उठने की स्थिति में है।

चुन्‍दुर दलित हत्‍याकाण्‍ड के आरोपियों के बेदाग बरी होने से हरे हुए जख्‍़म और कुछ चुभते-जलते बुनियादी सवाल

एक बार फिर पुरानी कहानी दुहरायी गयी। चुन्‍दुर दलित हत्‍याकाण्‍ड के सभी आरोपी उच्‍च न्‍यायालय से सुबूतों के अभाव में बेदाग़ बरी हो गये। भारतीय न्‍याय व्‍यवस्‍था उत्‍पी‍ड़ि‍तों के साथ जो अन्‍याय करती आयी है, उनमें एक और मामला जुड़ गया। जहाँ पूरी सामाजिक-राजनीतिक व्‍यवस्‍था शोषित-उत्‍पीड़ि‍त मेहनतकशों, भूमिहीनों, दलितों (पूरे देश में दलित आबादी का बहुलांश शहरी-देहाती मज़दूर या ग़रीब किसान है) और स्त्रियों को बेरहमी से कुचल रही हो, वहाँ न्‍यायपालिका से समाज के दबंग, शक्तिशाली लोगों के खिलाफ इंसाफ की उम्‍मीद पालना व्‍यर्थ है। दबे-कुचले लोगों को इंसाफ कचहरियों से नहीं मिलता, बल्कि लड़कर लेना होता है। उत्‍पीड़न के आतंक के सहारे समाज में अपनी हैसियत बनाये रखने वाले लोगों के दिलों में जबतक संगठित जन शक्ति का आतंक नहीं पैदा किया जाता, तबतक किसी भी प्रकार की सामाजिक बर्बरता पर लगाम नहीं लगाया जा सकता।

श्रीराम पिस्टन, भिवाड़ी के मज़दूरों के आक्रोश का विस्फोट और बर्बर पुलिस दमन

गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी और खुशखेड़ा तक के कारख़ानों में लाखों मज़दूर आधुनिक गुलामों की तरह खट रहे हैं। लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, ज़बरन ओवरटाइम, वेतन में कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकार छीने जाने जैसे साझा मुद्दे हैं। हमें यह समझना होगा कि आज अलग-अलग कारख़ाने की लड़ाइयों को जीत पाना मुश्किल है। अभी हाल ही में हुए मारुति सुजुकी आन्दोलन से सबक लेना भी ज़रूरी है जो अपने साहसपूर्ण संघर्ष के बावजूद एक कारख़ाना-केन्द्रित संघर्ष ही रहा। मारुति सुजुकी मज़दूरों द्वारा उठायी गयीं ज़्यादातर माँगें – यूनियन बनाने, ठेकाप्रथा ख़त्म करने से लेकर वर्कलोड कम करने – पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक की औद्योगिक पट्टी के मज़दूरों की थीं। लेकिन फिर भी आन्दोलन समस्त मज़दूरों के साथ सेक्टरगत-इलाक़ाई एकता कायम करने में नाकाम रहा। इसलिए हमें समझना होगा कि हम कारख़ानों की चौहद्दियों में कैद रहकर अपनी माँगों पर विजय हासिल नहीं कर सकते, क्योंकि हरेक कारख़ाने के मज़दूरों के समक्ष मालिकान, प्रबन्धन, पुलिस और सरकार की संयुक्त ताक़त खड़ी होती है, जिसका मुकाबला मज़दूरों के बीच इलाक़ाई और सेक्टरगत एकता स्थापित करके ही किया जा सकता है

भिवाड़ी के संघर्षरत मज़दूर साथियों ने किया घायल मज़दूर कार्यकर्ताओं का गर्मजोशी भरा स्‍वागत

अगर राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लाखों ऑटोमोबाइल मज़दूर एकजुट हो जायें तो यह पैसे और बाहुबल की ताक़त भी धूल चाटने लगेगी। 26 अप्रैल और 5 मई का हमला दिखलाता है कि मालिकान और उनके तलवे चाटने वाली सरकारें इसी बात से डरती हैं। अजय ने कहा कि ‘गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति’ श्रीराम पिस्‍टन भिवाड़ी के मज़दूरों के संघर्ष में शामिल है और रहेगी और इस आंदोलन के पक्ष में पूरे राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पर्चा वितरण करेगी। जरूरत पड़ी तो श्रीराम पिस्‍टन के केंद्रीय कार्यालय का घेराव भी किया जायेगा जो कि नयी दिल्‍ली में है। साथ ही, इस हमले के विरोध में श्रीराम पिस्‍टन के मालिकों, प्रबंधन, गुण्‍डों और साथ ही गाजियाबाद पुलिस के विरुद्ध मुकदमा किया जायेगा। यह हमला भिवाड़ी के मज़दूरों के आंदोलन पर हमला है और इसका मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा।

ज़ोर है कितना दमन में तेरे-देख लिया है, देखेंगे!

श्रीराम पिस्टन के मालिकान, प्रबन्धन और भाड़े के गुण्डे भिवाड़ी के मज़दूरों के आन्दोलन से डर गये हैं। उन्हें लग रहा है कि मज़दूर जाग रहे हैं और इंसाफ़ की लड़ाई को फैलने से रोकना होगा। यही कारण है कि श्रीराम पिस्टन के मालिकों ने 5 मई को मज़दूर कार्यकर्ताओं पर यह कायराना हमला करवाया है। दूसरी बात, मज़दूरों पर पूँजीपतियों की नंगी तानाशाही कायम करने के काम में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकार और पुलिस पूरी तरह से पूँजीपतियों के साथ है। मज़दूरों के लिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उत्तर प्रदेश की सपा सरकार हो, राजस्थान की भाजपा सरकार हो या फिर हरियाणा की कांग्रेस सरकार हो। उनके लिए किसी भी सरकार का अर्थ यही हैः पूँजी की बर्बर और नग्न तानाशाही! तीसरी बात, भिवाड़ी के मज़दूरों पर हमले ने भिवाड़ी के बहादुर मज़दूर साथियों के संघर्ष को और मज़बूत किया था और यह ताज़ा हमला भी मज़दूरों के हौसले को और बुलन्द कर रहा है।