Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

मज़दूर आन्दोलन के दमन और गोरखपुर में श्रम क़ानूनों की स्थिति की जाँच के लिए दिल्ली से गयी तथ्यसंग्रह टीम की रिपोर्ट

दिल्ली से गये मीडियाकर्मियों के एक जाँच दल ने 19 से 21 मई तक गोरखपुर का दौरा करके और विभिन्न पक्षों से बात करने के बाद नई दिल्ली में अपनी जाँच रिपोर्ट जारी की। इस दल में हिन्दुस्तान के वरिष्ठ उपसम्पादक नागार्जुन सिंह, फिल्मकार चारु चन्द्र पाठक और कोलकाता के पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सौरभ बनर्जी शामिल थे। तीन दिनों के दौरान जाँच दल ने विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों, श्रम विभाग, स्थानीय सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, श्रम संगठनों, मीडियाकर्मियों, श्रमिकों, श्रमिक नेताओं और प्रबुद्ध नागरिकों से मुलाक़ात करके इस पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जाँच की।

गौतम नवलखा जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बन्दिश लगाकर भारत सरकार कश्मीर की सच्चाई को छुपा नहीं सकती

जाने-माने मानवाधिकार कर्मी और प्रसिद्ध पत्रिका ‘इकोनॉमिक एण्ड पॉलिटिकल वीकली’ के सम्पादकीय सलाहकार गौतम नवलखा को भी 28 मई को श्रीनगर हवाई अड्डे पर हिरासत में ले लिया गया और उन्हें श्रीनगर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी। श्री नवलखा पिछले दो दशकों के दौरान अनेक बार कश्मीर की यात्रा पर गये हैं और वहाँ सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को मुखरता से उठाते रहे हैं। हालाँकि इस बार वे अपनी मित्र के साथ निजी यात्रा पर कश्मीर जा रहे थे। श्रीनगर पहुँचने पर विमान से उतरते ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया और उन्हें वापस दिल्ली जाने के लिए कहा गया। उस दिन कोई फ्लाइट नहीं होने के कारण उन्हें पुलिस हिरासत में रखा गया और किसी को उनसे मिलने की इजाज़त नहीं दी गयी। अगले दिन उन्हें वापस दिल्ली भेज दिया गया।

मालिकान-प्रशासन-पुलिस-राजनेता गँठजोड़ के विरुद्ध गोरखपुर के मज़दूरों के बहादुराना संघर्ष की एक और जीत

मालिकों की तमाम कोशिशों और प्रशासन की धमकियों के बावजूद गोरखपुर से क़रीब 2000 मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन की पहली मई की रैली में भाग लेने दिल्ली पहुँच गये। इनमें बरगदवाँ स्थित अंकुर उद्योग लिमिटेड नामक यार्न मिल के सैकड़ों मज़दूर भी थे। यह वही मिल है जहाँ 2009 में सबसे पहले मज़दूरों ने संगठित होने की शुरुआत की थी। दिल्ली से लौटकर उत्साह से भरपूर मज़दूर 3 मई की सुबह जैसे ही काम पर पहुँचे, उन्हें अंकुर उद्योग के मालिक अशोक जालान की ओर से गोलियों का तोहफा मिला। पहले से बुलाये भाड़े के गुण्डों ने मज़दूरों पर अन्धाधुन्‍ध गोलियाँ चलायीं जिसमें 19 मज़दूर और एक स्कूल छात्रा घायल हो गये। दरअसल यह सब मज़दूरों को ”सबक़ सिखाने” की सुनियोजित योजना के तहत किया गया था। फैक्टरी गेट पर 18 अगुवा मज़दूरों के निलम्बन का नोटिस चस्पाँ था। मालिकान जानते थे कि मज़दूर इसका विरोध करेंगे। उन्हें अच्छी तरह कुचल देने का ठेका सहजनवाँ के कुख्यात अपराधी प्रदीप सिंह के गैंग को दिया गया था।

मज़दूरों के दमन, गिरफ़्तारियों व अवैध तालाबन्दी के विरोध में दूसरी याचिका

हम, अधोहस्ताक्षरी, गोरखपुर के ज़िला प्रशासन और पुलिस तन्त्र द्वारा गोरखपुर के मज़दूर आन्दोलन के दमन की कठोर निन्दा करते हैं। गोरखपुर के मज़दूरों ने गत 16 मई से गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र की अंकुर उद्योग लिमिटेड नामक फ़ैक्टरी के मालिक द्वारा भाड़े के गुण्डों से करवायी गयी फ़ायरिंग में 19 मज़दूरों के घायल होने की घटना के खि़लाफ़ शान्तिपूर्ण ‘मज़दूर सत्याग्रह’ की शुरुआत की थी। लेकिन मज़दूरों की जायज़ माँगों पर ध्यान देने के बजाय ज़िला प्रशासन बेशर्मी के साथ फ़ैक्टरी मालिकों का पक्ष ले रहा है और इस शान्तिपूर्ण आन्दोलन को कुचलने पर आमादा है।

मज़दूरों पर फ़ायरिंग के विरोध में मुख्यमन्त्री मायावती के नाम भेजी गयी पहली याचिका

गोरखपुर के औद्योगिक मज़दूर नारकीय हालात में काम कर रहे हैं। न्यूनतम मज़दूरी, काम के घण्टे, ओवरटाइम के भुगतान, जॉबकार्ड, पीएफ़, ईएसआई, काम की सुरक्षित परिस्थितियों आदि से सम्बन्धित श्रम क़ानून बस काग़ज़ पर मौजूद हैं। स्थानीय प्रशासन इन क़ानूनों को लागू कराने की अपनी संवैधानिक और क़ानूनी ज़िम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रहा है। दो वर्ष पहले, इस इलाक़े के मज़दूरों ने श्रम क़ानूनों को लागू करने के लिए संगठित आन्दोलन की शुरुआत की थी। लेकिन मज़दूरों की जायज़ माँगों पर ध्यान देने की बजाय, प्रशासन ने उद्योगपतियों की शह पर आन्दोलन को कुचलने का षडयन्त्र शुरू कर दिया। वार्ता के लिए गये मज़दूर नेताओं को पीटा गया और फर्ज़ी मुकदमों में जेल भेज दिया गया। अनेक जनवादी और नागरिक अधिकार संगठनों तथा बुद्धिजीवियों के आन्दोलन के बाद ही प्रशासन द्वारा नेताओं को रिहा किया गया।

कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है? (दसवीं किस्त)

भारत जैसे किसी भी कृषि प्रधान पिछड़े हुए समाज में क्रान्तिकारी ढंग से भूमि-सम्बन्धों को बदले बिना व्यापक जनसमुदाय की सामूहिक पहलक़दमी और सामूहिक निर्णय की शक्ति विकसित ही नहीं की जा सकती थी और ऐसा किये बिना साम्राज्यवाद से निर्णायक विच्छेद भी सम्भव नहीं हो सकता था। चीन की लोक जनवादी क्रान्ति ने यही काम कर दिखाया था, जबकि भारत में यह सम्भव नहीं हो सका। इसके चलते भारतीय जनता न तो आन्तरिक तौर पर सम्प्रभुता-सम्पन्न हो सकी और न ही बाहरी तौर पर। संविधान में उल्लिखित सम्प्रभुता महज़ जुमलेबाज़ी ही बनकर रह गयी।

गोरखपुर के मज़दूरों के नाम मुंबई के गोलीबार निवासियों का संदेश

गोलीबार के निवासियों ने जीत के बाद गोरखपुर मजदूर आंदोलन के लिए अपना संदेश भेजा है और अपना समर्थन जाहिर किया है। वहां से इस आंदोलन की एक नेता प्रेरणा गायकवाड़ ने अपने संदेश में कहा है, ”हम तो अपनी लड़ाई जीत गए हैं, अब आपको अपनी लड़ाई जारी रखनी है। आप लड़ाई जारी रखें हम आपके साथ हैं।”
गणेश कृपा सोसायटी के देवान और फ़ैज़ा ने भी गोरखपुर मजदूर आंदोलन के नाम अपने संदेश में कहा है कि ”गणेश कृपा सोसायटी के निवासी गोरखपुर के भ्रष्‍ट अधिकारियों द्वारा मजदूर आंदोलन के दमन की कड़ी निंदा करते हैं और आपके आंदोलन को पूरा समर्थन देते हैं। आप लड़ाई जारी रखिए, जीत आपकी ही होगी।”

गोरखपुर मज़दूर आन्दोलन के दमन के विरोध में कोलकाता में सैकड़ों मज़दूरों का प्रदर्शन

गोरखपुर में मज़दूरों के दमन और उत्तर प्रदेश सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में कोलकाता में सैकड़ों मज़दूरों ने प्रदर्शन किया तथा राज्यपाल के माध्यम से मुख्यमंत्री मायावती को ज्ञापन भेजा। श्रमिक संग्राम समिति के बैनर तले कोलकाता इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन, हिन्दुस्तान इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लि., भारत बैटरी, कोलकाता जूट मिल, सूरा जूट मिल, अमेरिकन रेफ्रिजरेटर्स कं. सहित विभिन्न कारखानों के 500 से अधिक मज़दूरों ने कल कोलकाता के प्रशासकीय केंद्र एस्प्लेनेड में विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली, पंजाब तथा महाराष्ट्र में भी कुछ संगठन इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं।
कोलकाता में प्रदर्शन के बाद तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम.के. नारायणन से मिला और गोरखपुर में आन्दोलनरत मज़दूरों की मांगों के समर्थन में तथा उत्तर प्रदेश सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में एक ज्ञापन उन्हें सौंपा।

12 मज़दूर नेता ज़मानत पर रिहा, आन्दोलन और तेज करने का ऐलान

गोरखपुर में पिछले 20 मई को गिरफ्तार किए गए 12 मज़दूर नेता आज ज़मानत पर रिहा कर दिए गए। रिहा होने के बाद संयुक्त मज़दूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के तपीश मैन्दोला ने कहा कि मज़दूरों की मांगों को लेकर आन्दोलन अब और तेज किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मालिकान की शह पर प्रशासन डरा-धमकाकर और लाठी-गोली-जेल के सहारे मज़दूर आन्दोलन को कुचलने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह कामयाब नहीं होगा। मज़दूर अपने मूलभूत अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और वे अब पीछे नहीं हटेंगे। तपीश ने कहा कि वी.एन. डायर्स में जबरन तालाबन्दी करके और अंकुर उद्योग में मज़दूरों पर गोलियां चलवाकर मालिकों ने यह लड़ाई मज़दूरों पर थोपी है। मगर प्रशासन मालिकों के सुर में सुर मिलाकर उल्टा हमें ही अराजक और विकास-विरोधी बता रहा है।

जेल में मज़दूर नेता आमरण अनशन पर, बाहर समर्थकों ने मोर्चा संभाला शहर में जगह-जगह पोस्‍टर-पर्चों के जरिये किया मालिक-प्रशासन के झूठ का पर्दाफाश

3 मई को मज़दूरों पर चली गोलियों और उसके विरोध में 9 तारीख के शांतिपूर्ण मजदूर सत्‍याग्रह के बर्बर दमन के बाद और 20 मई को लाठीचार्ज के बाद फर्जी आरोपों में दो महिला साथियों समेत 14 मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ रहा है। जेल में बंद मजदूर नेताओं ने आज भी आमरण अनशन जारी रखा। दूसरी तरफ,उनके समर्थकों ने गोरखपुर शहर के विभिन्‍न इलाकों में प्रचार अभियान चलाकर प्रशासन के झूठ का भंडाफोड़ किया। इसके अलावा देश-विदेश के ट्रेडयूनियन कर्मियों, एक्टिविस्‍टों, जनवादी अधिकार और मानवाधिकार कर्मियों ने मुंबई की सीनियर एडवोकेट कामायनी बाली महाबल द्वारा मायावती के नाम जारी की गई ऑनलाइन अपील पर हस्‍ताक्षर करके पुलिस-प्रशासन द्वारा मजदूर आंदोलन के दमन की निंदा की और फर्जी आरोपों में गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की मांग की।