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श्रीराम पिस्टन, भिवाड़ी के मज़दूरों के आक्रोश का विस्फोट और बर्बर पुलिस दमन
बिगुल संवाददाता
पिछले 26 अप्रैल की सुबह साढ़े चार बजे हरियाणा के मानेसर और धारूहेड़ा औद्योगिक क्षेत्र से सटे भिवाड़ी (ज़िला अलवर) के पथरेड़ी-चौपानकी औद्योगिक क्षेत्र स्थित आटो पार्ट्स बनाने वाली कम्पनी श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स के हड़ताली मज़दूरों पर 2000 पुलिसकर्मियों, आर.ए.एफ़ और कोबरा फोर्स के जवानों ने योजनाबद्ध ढंग से धावा बोलकर बर्बर लाठीचार्ज किया, दस चक्र गोलियाँ चलायीं और तीस आँसू गैस के गोले फेंके। पुलिस के साथ ही प्रबन्धन के दो सौ बाउंसरों ने भी चाकुओं, रॉडों और लाठियों से मज़दूरों पर हमला बोल दिया। इस हमले में घायल 79 मज़दूर अस्पताल में भर्ती हैं, जिनमें से चार की स्थिति गम्भीर है। इस पूरी घटना के बाद 26 मज़दूरों को गिरफ़्तार करके उनके ऊपर हत्या के प्रयास का मुकदमा ठोंक दिया गया, व 6 अन्य धाराएँ भी लगायी गयी। जबकि प्रबन्धन और उसके बाउंसरों के विरुद्ध प्रशासन ने कोई भी क़ानूनी कार्रवाई नहीं की। लेकिन पुलिस-प्रशासन के बर्बर दमन के खि़लाफ़ मज़दूर झुके नहीं बल्कि फ़ैक्टरी गेट पर ही खूँटा गाड़कर अपना संघर्ष जारी रखे हुए हैं। मज़दूरों की माँगें हैं कि उनकी यूनियन का पंजीकरण तुरन्त किया जाये; जेल में बन्द 26 मज़दूर को बिना शर्त रिहा किया जाये; सभी मज़दूरों से झूठे मुकदमे वापस लिये जाये; निकाले गये 22 मज़दूरों को वापस लिया जाये साथ ही कम्पनी प्रबन्धन और पुलिस द्वारा बर्बर दमन पर क़ानूनी कार्रवाई की जाये।
श्रीराम पिस्टन में मज़दूरों के हालात और संघर्ष की शुरुआत
श्रीराम पिस्टन भिवाड़ी प्लाण्ट में उत्पादन मार्च 2011 से शुरू हुआ था। श्रीराम पिस्टन का एक और प्लाण्ट ग़ाज़ियाबाद में भी है। श्रीराम पिस्टन मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स, फोर्ड, महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा से लेकर टोएटा से आटो मोबाईल कम्पनियों के लिए पिस्टन, रिंग्स, पिन और इंजन वाल्व बनाती है। यानी श्रीराम पिस्टन आज वैश्विक असेम्बली लाइन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके उत्पादन का असर सिर्फ़ एक देश ही नहीं बल्कि कई देशों में कार-उत्पादन को प्रभावित कर सकता हैं। 2010 के अनुसार श्रीराम पिस्टन का सालाना टर्नओवर 75000 लाख था। लेकिन अगर हम फ़ैक्टरी मज़दूरों के हालात का जायज़ा लें तो साफ़ हो जाता है कि कम्पनी के मुनाफ़े के पीछे मज़दूरों की कैसी गुलामों जैसी ज़िन्दगी है। श्रम अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार फ़ैक्टरी में 1856 मज़दूर कार्यरत हैं जिनमें 560 स्थायी मज़दूर है, जिनका
वेतन लगभग 8200-9000 के बीच है बाक़ी लगभग 1300 मज़दूर तीन साल के ठेका पर रखा गया है जिसे कम्पनी प्रबन्धन के शब्दों में फिक्सड टर्म कॉन्ट्रेक्ट (एफटीसी) कहते हैं जो सीधे तौर पर मज़दूरों से चुपचाप सिर झुकाकर काम कराने का अनुबन्ध है। इन मज़दूरों को सिर्फ़ 6200-7000 रुपये तक मज़दूरी मिलती है। बाक़ी लगभग 200 मज़दूरों को एक ठेका कम्पनी द्वारा काम पर रखा गया है जो सिर्फ़ 5000 रुपये पाते है, इनके ईएसआई और पीएफ़ का भी कोई हिसाब नहीं है। मज़दूरों के अनुसार कम्पनी पिछले एक साल से लगातार वर्कलोड बढ़ाती जा रही है, वहीं वेतन बढ़ोतरी के नाम पर पिछले साल मज़दूरों के वेतन में सिर्फ़ 26 रुपये का बढ़ोतरी की गयी। जबकि कम्पनी के सुपरवाइज़रों तथा प्रबन्धन अधिकारी के वेतन में वृद्धि हज़ारों में थी। वहीं मज़दूरों ने यूनियन बनाकर कम्पनी की तानाशाही का जवाब देने की शुरुआत की। और नवम्बर 2013 में यूनियन पंजीकरण के लिए फ़ाइल लगायी। कम्पनी ने यूनियन तोड़ने के लिए यूनियन के सक्रिय सदस्य महेश, हरिकृष्णा समेत 20 मज़दूरों को नवम्बर से लेकर फ़रवरी तक काम से बाहर कर दिया। लेकिन फिर भी मज़दूरों ने यूनियन पंजीकरण की प्रक्रिया जारी रखी। लेकिन प्रबन्धन ने 20 जनवरी को श्रम विभाग से साठगाँठ करके यूनियन की फ़ाइल रद्द कर दी। लेकिन मज़दूरों ने पुनः 31 जनवरी 2014 को श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स कामगार यूनियन के नाम से यूनियन पंजीकरण की फ़ाइल लगा दी। प्रबन्धन ने मज़दूरों के बुलन्द हौसल को तोड़ने के लिए बिना किसी पूर्व सूचना के कई यूनियन नेताओं के प्रवेश पर रोक लगा दी। प्रबन्धन की बढ़ती तानाशाही के खि़लाफ़ मज़दूरों ने 9 फ़रवरी को आम सभा का निर्णय लिया। लेकिन एक दिन पहले ही प्रबन्धन के गुण्डों ने यूनियन के महासचिव को डराने-धमकाने और पीछे हट जाने की चेतावनी दी। लेकिन मज़दूरों की एकजुटता के दम पर यूनियन नेतृत्व भी डटे रहे।
मज़दूरों की एकजुटता को तोड़ने के लिए प्रबन्धन ने 1 मार्च को फिर एक चाल चली। और नयी यूनियन पर तीन मज़दूरों के झूठे आरोप-पत्र सिविल कोर्ट में दिखाकर लेबर कोर्ट में यूनियन के पंजीकरण पर रोक लगा दी। इस घटना ने साफ़ कर दिया कि अब मज़दूरों के पास आन्दोलन के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है, इसलिए 8 मार्च को यूनियन की तरफ़ प्रबन्धन को मज़दूरों ने अपना माँगपत्र सौंपा, जिसमें वेतन बढ़ोतरी, बेहतर कार्यस्थितियों और निकाले गये कर्मचारियों को बहाल करने की माँगें थीं। प्रबन्धन के 23 मार्च तक मज़दूरों की किसी भी माँग पर कोई सुनवायी नहीं कि बल्कि मज़दूरों को ज़बरदस्ती वर्कलोड बढ़ने के लिए रविवार को ओवरटाइम की शर्त थोप दी। जिसे न करने पर कई मज़दूरों को प्रबन्धन ने कम्पनी गेट पर रोक दिया। इसके बाद 23 मार्च से 27 मार्च तक लगभग 1200 मज़दूरों ने प्लाण्ट में उत्पादन ठप रखा और हड़ताल पर बैठ गये। और 600 मज़दूर बाहर कम्पनी गेट पर बैठे रहे। अन्त में श्रीराम पिस्टन प्रबन्धन को झुकना पड़ा और उन्होंने 10 दिन का समय लेकर बर्खास्त मज़दूरों को बहाल करने की बात पर समझौता किया।
लेकिन प्रबन्धन ने श्रम विभाग के समक्ष अपना रुख अड़ियल रखा, और यूनियन से किसी भी समझौते से मुकर गयी। तब मज़दूरों ने निर्णायक लड़ाई के लिए कमर कस ली और 15 अप्रैल से ए और बी शिफ़्ट के 1200 मज़दूर फ़ैक्टरी में अपने प्लाण्ट शेप के आगे हड़ताल पर बैठ गया। बाक़ी सी शिफ़्ट के मज़दूर फ़ैक्टरी गेट पर हड़ताल में शामिल हो गये।
इसके बाद 23 अप्रैल को श्रमायुक्त अलवर ने त्रिपक्षीय वार्ता बुलायी, लेकिन यूनियन अध्यक्ष को भाग लेने पर रोक लगा दी। जिससे बैठक बेनतीजा रही और आगे 28 अप्रैल को दोबारा बैठक तय हुई। असल में श्रीराम पिस्टन प्रबन्धन भी यही चाहता था। वैसे भी 24 अप्रैल में अलवर में लोकसभा चुनाव के मौजूद पुलिस-फोर्स का इस्तेमाल सोते हुए मज़दूरों हमला करने में योजना में सरकार-पुलिस-प्रशासन पूरे श्रीराम पिस्टन के एंजेट के तौर पर काम कर रही था। और 26 मार्च को प्रबन्धन तिजारा न्यायिक मजिस्ट्रेट से फ़ैक्टरी परिसर बलात् ख़ाली करने का आदेश लेकर आया और फिर आतंक फैलाकर सबक़ सिखाने की नीयत से पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर एकदम से धावा बोल दिया। 79 साथियों के घायल होने के बावजूद निहत्थे मज़दूरों ने भरपूर प्रतिरोध किया। मौक़े का फ़ायदा उठाकर बाउंसरों ने चार गाड़ियों में आग लगा दी और दोष मज़दूरों पर डाल दिया। बर्बर हमले के विरोध में उपजे इस आक्रोश के विस्फोट को उस समय रोकना भी सम्भव नहीं था।
26 अप्रैल के बाद मज़दूरों की आन्दोलनकारी गतिविधि
1 मई मज़दूर दिवस को श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों ने पूरे पथरेड़ी औद्योगिक क्षेत्र में रैली निकाली। और 8 मई को अलवर शहर में रैली निकाली और एडीएम को ज्ञापन सौंपकर माँग की कि गिरफ़्तार मज़दूरों को जल्दी रिहा किया जाये; त्रिपक्षीय समझौता के लिए बैठक बुलायी जाये, साथ 26 अप्रैल के बर्बर दमन की न्यायिक जाँच करायी जाये।
9 मई श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स कामगार यूनियन (भिवाड़ी) ने गुड़गाँव, मानसेर, धारुहेड़ा से लेकर बावल, भिवाड़ी की यूनियनों और संगठनों की सयुंक्त जनसभा बुलायी, जिसमें कई यूनियनों और संगठनों ने श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों के जायज़ हक़-अधिकारों के संघर्ष में कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ देने का भरोसा दिया। श्रीराम पिस्टन यूनियन के महेश ने बताया कि कल हम राजस्थान श्रम-अधिकारी और प्रशासन के मज़दूर-विरोधी रवैये के खि़लाफ़ भिवाड़ी औद्योगिक क्षेत्र में रैली निकालेंगे और पूरे इलाक़े के मज़दूरों तक सन्देश ले जायेंगे कि राजस्थान सरकार पूरी तरह मालिकों के हाथों बिकी हुई है। साथ ही यूनियन जल्द ही ख़ुशखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में अपनी माँगों के समर्थन में मज़दूर एकता रैली निकालेगी। आज हुई जनसभा को गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष सीमित से अजय, बिगुल मज़दूर दस्ता की शिवानी, एफ.एफ.सी. रिको, ओमैक्स, मुंजल किरु, एटक से सचदेवा, न्यूयार्क ओटोमोबईल यूनियन से सुजैन, राने एन.एस.के. से पवन कुमार आदि ने सम्बोधित किया। सभा का संचालन श्रीराम पिस्टन के हरिकृष्णा ने किया।
गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति ने सभा में यूनियन के समक्ष तीन प्रस्ताव रखे। पहला, हमें श्रीराम पिस्टन के मज़दूर आन्दोलन को पूरे गुड़गाँव, मानसेर, धारूहेड़ा से लेकर बावल, भिवाड़ी के मज़दूरों तक पहुँचने के लिए एक परचा निकलना चाहिए, क्योंकि हमारे मुद्दे भी वहीं हैं जो पूरी औद्योगिक बेल्ट के मज़दूरों के हैं – यानी यूनियन बनाने की माँग, वर्कलोड कम करने की माँग, ठेकाप्रथा ख़त्म करने की माँग आदि। इसलिए अगर हमारे मुद्दे साझा हैं तो हमारा आन्दोलन भी साझा होना चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम सेक्टरगत और इलाक़ाई आधार पर एकजुटता क़ायम करे। तभी हम मालिकों और उनकी चाकरी करने वाली सरकारें, पुलिस-प्रशासन को झुका सकते है। गुडगाँव मानसेर, धारूहेड़ा, बावल, भिवाड़ी के मज़दूरों को श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों के संघर्ष में साथ देने के लिए अपने प्लाण्ट में कुछ घण्टों का टूलडाउन कर सकते है, लंच बहिष्कार कर सकते हैं या एक दिन की सामूहिक हड़ताल कर सकते हैं। दूसरा, हमें ग़ाज़ियाबाद प्लाण्ट के मज़दूरों के नाम अपील जारी करनी चाहिए और अपने समर्थन में लेने के लिए हरसम्भव प्रयास करना चाहिए। तभी हम पूरी तरह से श्रीराम पिस्टन के उत्पादन को ठप करके झुकने पर मजबूर कर सकते हैं। तीसरा, हमें दिल्ली में एक दिवसीय प्रदर्शन करना चाहिए, जिससे कि वसुन्धरा सरकार और बीजेपी पार्टी की राजधानी में पोल खोली जा सके। ये दावा करते हैं कि ‘अच्छे दिन आने वाले’ हैं पर साफ़ है कि चाहे गुजरात मॉडल हो या राजस्थान मॉडल, सब जगह मज़दूरों के श्रम की खुली लूट है और आवाज़ उठाने पर सरकार की लाठी-गोलियाँ मिलती हैं। इसलिए हमें समस्त पूँजीपतियों की चाकरी करने वाली पार्टियों के चेहरों को बेनकाब करना होगा। वैसे भी मज़दूरों ने अपने सारे हक़-अधिकार कुर्बानियाँ देकर ही हासिल किये हैं। इसलिए मज़दूरों की संघर्ष की जीत मज़दूरों की फ़ौलादी एकता के दम पर मिल सकती है, न की याचना करने से।
गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा- बावल भिवाड़ी के मज़दूरों की एकजुटता क़ायम करो!
गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी और खुशखेड़ा तक के कारख़ानों में लाखों मज़दूर आधुनिक गुलामों की तरह खट रहे हैं। लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, ज़बरन ओवरटाइम, वेतन में कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकार छीने जाने जैसे साझा मुद्दे हैं। हमें यह समझना होगा कि आज अलग-अलग कारख़ाने की लड़ाइयों को जीत पाना मुश्किल है। अभी हाल ही में हुए मारुति सुजुकी आन्दोलन से सबक लेना भी ज़रूरी है जो अपने साहसपूर्ण संघर्ष के बावजूद एक कारख़ाना-केन्द्रित संघर्ष ही रहा। मारुति सुजुकी मज़दूरों द्वारा उठायी गयीं ज़्यादातर माँगें – यूनियन बनाने, ठेकाप्रथा ख़त्म करने से लेकर वर्कलोड कम करने – पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक की औद्योगिक पट्टी के मज़दूरों की थीं। लेकिन फिर भी आन्दोलन समस्त मज़दूरों के साथ सेक्टरगत-इलाक़ाई एकता कायम करने में नाकाम रहा। इसलिए हमें समझना होगा कि हम कारख़ानों की चौहद्दियों में कैद रहकर अपनी माँगों पर विजय हासिल नहीं कर सकते, क्योंकि हरेक कारख़ाने के मज़दूरों के समक्ष मालिकान, प्रबन्धन, पुलिस और सरकार की संयुक्त ताक़त खड़ी होती है, जिसका मुकाबला मज़दूरों के बीच इलाक़ाई और सेक्टरगत एकता स्थापित करके ही किया जा सकता है
आन्दोलन को मिले समर्थन से बौखलाये मैनेजमेण्ट के गुण्डों द्वारा मज़दूर कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमला
भिवाड़ी के मज़दूरों के समर्थन में दिल्ली, लखनऊ और लुधियाना में विभिन्न संगठनों के प्रदर्शन
भिवाड़ी के मज़दूरों के आन्दोलन के समर्थन में तमाम जनवादी संगठन, मज़दूर संगठन और छात्र संगठन भी खडे हुए हैं। इस क्रम में पहले 26 अप्रैल को मज़दूरों पर हुए पुलिसिया दमन के खिलाफ़ व भिवाड़ी के मज़दूरों के समर्थन में छात्र और मज़दूर संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने 3 मई को राजस्थान सरकार के बीकानेर हाउस के सामने प्रदर्शन किया व रेज़िडेण्ट कमिश्नर को ज्ञापन देकर ठोस कार्यवाही की माँग की। ज्ञापन स्वीकार करने पहुँचे राजस्थान के रीजनल कमिश्नर ने कार्रवाई के लिए 2 हफ़्ते का समय माँगा है। बिगुल मज़दूर दस्ता की वक्ता शिवानी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह घटना गुड़गाँव की औद्योगिक पट्टी में चल रहे मज़दूरों के दमन और संघर्ष की ही कड़ी है। उन्होंने बताया कि 26 अप्रैल को पुलिस के साथ ही प्रबन्धन के दो सौ बाउंसरों ने भी चाकुओं, रॉडों और लाठियों से मज़दूरों पर हमला बोल दिया। इस हमले में घायल 79 मज़दूर अस्पताल में भर्ती हैं, जिनमें से चार की स्थिति गम्भीर है। इस पूरी घटना के बाद 26 मज़दूरों को गिरफ़्तार करके उनके ऊपर हत्या के प्रयास का मुकदमा ठोंक दिया गया, जबकि प्रबन्धन और उसके बाउंसरों के विरुद्ध प्रशासन ने कोई भी क़ानूनी कार्रवाई नहीं की। होण्डा, रिको, मारुति के बाद श्रीराम पिस्टन की घटना प्रशासन की मालिक सेवा का प्रदर्शन करती है।
इस घटना के बाद 5 मई को ग़ाजि़याबाद के श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स कम्पनी प्लाण्ट के आगे भिवाड़ी के मज़दूरो के समर्थन की माँग करने वाले पर्चे को बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ता बाँट ही रहे थे कि अचानक उन पर कम्पनी के बाउंसरों ने रॉड, लाठियों से हमला किया। इस घटना के विरोध में 10 मई को विभिन्न मज़दूर संगठनों और जनवादी अधिकार संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने दिल्ली के उत्तर प्रदेश भवन पर विरोध प्रदर्शन किया व रेजिडेण्ट कमिश्नर को ज्ञापन सौंपकर ठोस कार्रवाई की माँग की। परन्तु दिल्ली पुलिस ने सभा को जबरन भंग करने की कोशिश की। पुलिस ने बार-बार धमकी दी कि प्रदर्शनकारियों को भी गिरफ़्तार कर लिया जायेगा व मज़दूर कार्यकर्ताओं व पत्रकार तथा यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसरों के साथ धक्का-मुक्की करने लगे। परन्तु सभी संगठन प्रदर्शन स्थल पर ही डटे रहे और अपनी सभा जारी रखी। ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ की शिवानी ने कहा कि प्रबन्धन और मालिकों द्वारा किया गया यह कायराना हमला एक तो मालिकों का भय दिखाता है तथा इससे पुलिस-प्रशासन की मंशा भी स्पष्ट होती है, क्योंकि यह घटनाक्रम यूपी पुलिस की मौजूदगी में ही हुआ था। उन्होंने कहा कि तमाम मज़दूर और जनवादी संगठनों को ऐसे हमलों का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए।
‘गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति’ (जीएमएसएस) के अजय ने बताया कि वे लोग कारख़ाना गेट से करीब 500 मीटर की दूरी पर पर्चा वितरण कर ही रहे थे कि दो गाड़ियों में करीब 8 गुण्डे और बाउंसर आये और उन्होंने लोहे की रॉडों, डण्डों, बेल्ट आदि से मज़दूर कार्यकर्ताओं पर हमला कर दिया। इस हमले में लहुलुहान करने के बाद उन्हें ज़बरन गाड़ी में भरकर श्रीराम पिस्टन कारख़ाने के अन्दर ले गये। अन्दर ले जाकर उन्होंने ग़ाज़ियाबाद पुलिस को भी बुला लिया और फिर पुलिस की मौजूदगी में भी इन चारों मज़दूर कार्यकर्ताओं को बर्बरतापूर्वक रॉड, सरिया आदि से पीटते रहे। इसके कारण तपीश के पैर में फ्रैक्चर, आनन्द के सिर में गहरी चोट व पैर में फ्रैक्चर, व अखिल के पैर में भी गम्भीर चोटें आयी हैं। इसके बाद पुलिस उन्हें थाने ले गयी और वहाँ पर हमलावरों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने की बजाय इन चारों मज़दूर कार्यकर्ताओं पर ही प्राथमिकी दर्ज करने का प्रयास किया। लेकिन इस समय तक कुछ अन्य राजनीतिक कार्यकर्ता भी थाने पहुँच चुके थे और कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जनवादी अधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों द्वारा दबाव के कारण उन पर प्राथमिकी दर्ज करने में श्रीराम पिस्टन के हाथों बिकी हुई पुलिस कामयाब नहीं हो सकी। ज्ञात हो कि इस पूरे दौर में दर्द से परेशान जीएमएसएस व बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने कोई चिकित्सकीय देखरेख मुहैया नहीं करायी। उन्होने आगे कहा कि ऐसी कायराना हरकतों से मज़दूर डरने वाले नहीं हैं और इसके जवाब में अपने आन्दोलन को और तेज़ करेंगे और सभी मज़दूर संगठनों, जनवादी अधिकार संगठनों, छात्र संगठनों और सभी जनपक्षधर बुद्धिजीवियों और नागरिकों से अपील करते हैं कि इस आन्दोलन में मज़दूरों का पुरज़ोर तरीक़े से साथ दें। श्रीराम पिस्टन्स कामगार यूनियन के प्रदीप कुमार भी इस प्रदर्शन में राजस्थान से शामिल होने आये। उन्होंने ग़ाज़ियाबाद में हुए हमले की निन्दा की और बताया कि आज श्रीराम पिस्टन कामगार यूनियन ने भी भिवाड़ी में एक रैली का आयोजन किया था, परन्तु पुलिस और कोबरा फ़ोर्स के 2000 से ऊपर सेना बल ने मज़दूरों को घेर लिया और कहा कि आज इलाक़े में धारा 144 लगा दी गयी है और वे हड़ताल स्थान पर ही बैठे रहे। साफ़ है कि राजस्थान पुलिस और सरकार पूरी तरह श्रीराम पिस्टन प्रबन्धन की चाकरी कर रहा है, इसलिए मज़दूरों के हर अधिकार उनसे छीने जा रहे हैं। मज़दूर पत्रिका के सन्तोष ने कहा कि यह चुनावी वायदों वाले “अच्छे दिनों” की ख़तरनाक दस्तक ही है कि मज़दूर कार्यकर्ताओ पर इस तरह के बर्बर हमले हो रहे हैं। वहीं मज़दूर एकता केन्द्र के सुनील, इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के दीपक व पी.यू.डी.आर. के मंजीत ने भी इस घटना की भर्त्सना की। इस प्रदर्शन में बिगुल मज़दूर दस्ता, गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति, पी.यू.डी.आर., इंकलाबी मज़दूर केन्द्र, मज़दूर पत्रिका आदि संगठन शामिल थे। रेजिडेण्ट कमिश्नर को सौंपे गये ज्ञापन में कम्पनी के दोषी अफ़सरों और सिक्योरिटी अफ़सर को तत्काल गिरफ़्तार करने, सिहानी गेट थाना, ग़ाज़ियाबाद के एस.एच.ओ. और अन्य पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने और ग़ाज़ियाबाद क्षेत्र के तमाम कारख़ानों में श्रम कानूनों के गम्भीर उल्लंघन की जाँच करने आदि जैसी माँगें शामिल थीं।
लखनऊ में विरोध प्रदर्शन
गाजियाबाद में श्रीराम पिस्टन कारखाने के मैनेजमेंट द्वारा पुलिस तथा भाड़े के गुंडों से सामाजिक कार्यकर्ताओं पर कराये गये जानलेवा हमले के विरोध में लखनऊ में विभिन्न जनसंगठनों ने प्रदर्शन किया तथा प्रमुख गृह सचिव को ज्ञापन सौंपा।
जागरूक नागरिक मंच, बिगुल मज़दूर दस्ता, स्त्री मुक्ति लीग, नई दिशा छात्र मंच सहित विभिन्न जनसंगठनों के कार्यकर्ता, छात्र तथा प्रबुद्ध नागरिक विधानसभा पर एकत्र हुए तथा प्रदेश सरकार और पूँजीपतियों तथा पुलिस-प्रशासन के गँठजोड़ के विरुद्ध नारे लगाते हुए सचिवालय तक ज्ञापन देने जा रहे थे लेकिन पुलिस ने उन्हें विधानसभा के समक्ष ही रोक दिया। चुनाव आचार संहिता का हवाला देकर पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़ने की हर कोशिश को नाकाम कर दिया। इस दौरान प्रदर्शन में शामिल कवयित्री व सामाजिक कार्यकर्ता कात्यायनी तथा अन्य कार्यकर्ताओं के साथ धक्कामुक्की भी की गयी। काफी देर बहस के बाद पुलिस ने अपर नगर मजिस्ट्रेट (प्रथम) के माध्यम से ज्ञापन भिजवाने की व्यवस्था की तथा प्रदर्शनकारियों को जीपीओ पार्क में जाने के लिए कहा। जीपीओ पहुँचने पर वहाँ भी पुलिस दल-बल सहित पहुँच गयी तथा प्रदर्शन करने या पर्चे बाँटने से कार्यकर्ताओं को रोक दिया।
प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए कात्यायनी ने कहा कि इस घटना ने साफ कर दिया है कि अपने हक़ की आवाज़ उठाने का “गुनाह” करने पर मज़दूरों-कर्मचारियों और आम लोगों के ऊपर दमन का सोंटा चलाने में राजस्थान की भाजपा सरकार और उत्तर प्रदेश की सपा सरकार में कोई अन्तर नहीं है। यह घटना इस बात का भी संकेत है कि आम चुनाव के बाद सत्ता में चाहे जो भी आये मेहनतकश जनता के लिए किस प्रकार के “अच्छे दिन आने वाले हैं”!
ज्ञापन में सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हमले के दोषी कम्पनी के अफ़सरों और भाड़े के गुण्डों को तत्काल गिरफ़्तार करके उन पर अपहरण और हत्या के प्रयास का मुकदमा चलाने तथा कम्पनी के एजेण्ट के बतौर काम करने वाले सिहानी गेट थाना, ग़ाज़ियाबाद के एस-एच-ओ- और अन्य पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने की माँग की गयी है।
[stextbox id=”black” caption=”आस्ट्रेलिया के मज़दूर संगठनों से एकजुटता का सन्देश “]
प्रिय साथियो, गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति और बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं पर श्रीराम पिस्टन एंड रिंग्स कम्पनी के गुण्डों द्वारा जानलेवा हमले की खबर हमें मिली है। हम दमन की इस कार्रवाई की कठोर शब्दों में भर्त्सना करते हैं जिसका मकसद मज़दूरों को आतंकित करना और मज़दूर आन्दोलन को कमज़ोर करना था।
दुर्भाग्यवश, ऐसी क्रूरता अपने वेतन और काम की स्थितियों में सुधार के लिए संगठित होने का प्रयास कर रहे मज़दूरों के खिलाफ़ दुनिया भर में बार-बार की जाती है। इतिहास हमें बताता है कि यदि मज़दूर संगठित नहीं होते तो हम कमज़ोर बने रहते हैं। यदि हम कमज़ोर हैं, तो पूँजीपति हमसे ज़्यादा समय तक, कम पगार पर और असुरक्षित कार्यस्थलों पर ज़्यादा कड़ी मेहनत करवायेंगे। हम अपने स्वास्थ्य और जीवन के ज़रिए इसकी कीमत चुकायेंगे, जबकि मुनाफ़ा पूँजीपतियों की जेब में जायेगा।
कहने की ज़रूरत नहीं है कि संगठित होकर ही हम अपने वेतन और स्थितियों में सुधार कर पायेंगे। आर्थिक संकट के इस दौर में, दुनिया भर में पूँजीपति मज़दूरों पर दबाव बना रहे हैं। इस तरह के हमलों का न केवल प्रतिरोध करना, बल्कि राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपने संगठन को विस्तार देना और उन्हें मज़बूत बनाना भी महत्वपूर्ण काम है। हम जितना एकताबद्ध होंगे, उतने ही मज़बूत होंगे।
आस्ट्रेलिया एशिया वर्कर्स लिंक घायल कार्यकर्ताओं को अपनी शुभकामानाएँ भेजता है और उनके शीघ्र स्वास्थ्यलाभ की कामना करता है। हम एक महत्वपूर्ण, कीमती और मुश्किल कार्यभार अपने कन्धों पर उठाने के लिए आपके मज़दूर कार्यकर्ताओं के साथ भी एकजुटता प्रदर्शित करते हैं। हम मज़दूरों को संगठित करने के आपके प्रयासों में आप सबकी सफलता की कामना करते हैं।
एकता और एकजुटता के साथ
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