Category Archives: कला-साहित्‍य

कहानी – देह भंग स्वप्न भंग / शकील सिद्दीक़ी

तुम चले गए थे बापू—हमें क्या पता था कि यह तुम्हारा जाना कभी न लौटकर आने में बदल जायेगा। वह दिन किशन की आँखों में भर आता है। फर्स्ट डिवीज़न पास होने की ख़ुशी से लबरेज़ जब वह घर लौटा था तो पाया था, सन्नाटा, उदासी और चीखों का अम्बार। बापू का फैक्ट्री में काम करते हुए एक्सीडेण्ट हो गया था। वह भागता हुआ अस्पताल गया था, वहाँ पायी थी उसने बापू की क्षत-विक्षप्त लाश। फ़ैक्ट्री का ब्यालर फट गया था। खौलते पानी और लोहे के टुकड़ों का एक साथ आक्रमण हुआ था उन पर।

कविता – फ़िलिस्तीन / कात्यायनी

जब संगीनों के साये और बारूदी धुएँ के बीच
“अरब वसन्त” की दिशाहीन उम्मीदें
बिखर चुकी होती हैं
तब चन्द दिनों के भीतर पाँच सौ छोटे-छोटे ताबूत
गाज़ा की धरती में बो दिये जाते हैं
और माँएँ दुआ करती हैं कि पुरहौल दिनों से दूर
अमन-चैन की थोड़ी-सी नींद मयस्सर हो बच्चों को
और ताज़ा दम होकर फिर से शोर मचाते
वे उमड़ आयें गलियों में, सड़कों पर
जत्थे बनाकर।

कहानी – सुकून की तलाश में एक दिन / अन्वेषक

आख़िर सूरज डूब गया, तेज़ हवाओं ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया। अँधेरा हर तरफ़ फैल चुका था। पूरे पार्क में सन्नाटा पसर गया, कहीं कोई नहीं दिखाई दे रहा था। लाउडस्पीकर का शोर अभी ख़त्म नहीं हुआ, बस अभी उसकी आवाज़ धीमी थी। सब लौट गये फिर अपने ठिकानों में जहाँ अगले दिन उन्हें सुबह से रात तक, अपने हाड मांस को गलाना था ताकि अपना व परिवार का पेट का गड्ढा भर सके। यही पहिया घूम रहा है दिन, रात, महीनों, सालों से। इसी में एक दिन निकाल कर आते हैं सभी सुकून की तलाश करते हुए, पर अन्त में रह जाता है तो सिर्फ़ अँधेरा जो सब कुछ अपने अन्दर समा लेना चाहता है।

मिथकों को यथार्थ बनाने के संघ के प्रयोग

इतिहास का निर्माण जनता करती है। फ़ासिस्ट ताक़तें जनता की इतिहास-निर्मात्री शक्ति से डरती हैं। इसलिए वे न केवल इतिहास के निर्माण में जनता की भूमिका को छिपा देना चाहती हैं, बल्कि इतिहास का ऐसा विकृतिकरण करने की कोशिश करती हैं जिससे वह अपनी विचारधारा और राजनीति को सही ठहरा सकें। संघ परिवार हमेशा से ही इतिहास का ऐसा ही एक फ़ासीवादी कुपाठ प्रस्तुत करता रहा है।

‘द केरला स्टोरी’: संघी प्रचार तन्त्र की झूठ-फ़ैक्ट्री से निकली एक और फ़िल्म

जिस तरीक़े से जर्मनी में यहूदियों को बदनाम करने के लिए किताबों, अख़बारों और फ़िल्मों के ज़रिए तमाम अफ़वाहें फ़ैलायी जाती थीं, आज उससे भी दोगुनी रफ़्तार से हिन्दुत्व फ़ासीवाद मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहा है। ‘द केरला स्टोरी’ भारत के हिन्दुत्व फ़ासीवाद के प्रचार तन्त्र में से ही एक है।

रोशनाबाद श्रृंखला की तीन कविताएँ

दु:खों का इतिहास अगर एक हो
और वर्तमान भी अगर साझा हो
तो प्यार कई बार ताउम्र ताज़ा बना रहता है,
सीने के बायीं ओर दिल धड़कता रहता है
पूरी गर्मजोशी के साथ
और इन्सान बार-बार नयी-नयी शुरुआतें
करता रहता है ।

जीवन गाथा (कहानी)

जीवन गाथा (कहानी) विष्णु नागर मैं बहुत खाता था। बहुत खाने से बहुत-से रोग हो जाते हैं इसलिए सुबह और शाम दौड़ा करता था। बहुत दौड़ने से बहुत थक जाता…

फ़ॉक्सकॅान के मज़दूर की कविताएँ

ये कवितायें चीन की फ़ॉक्सकॅान कम्पनी में काम करने वाले एक प्रवासी मज़दूर जू़ लिझी ने लिखी हैं। लिझी ने 30 सितम्बर 2014 को आत्महत्या कर ली थी। लिझी की कविताओं के बिम्ब उस नारकीय जीवन और उस अलगाव का खाका खींचते है जो यह मुनाफ़ाख़ोर मज़दूरों पर व्यवस्था थोपती है और इंसान को अन्दर से खोखला कर देती है।

लेनिन और सल्वादोर में क्रान्ति

रोके दाल्तोन, अल सल्वाडोर के कवि, निबन्धकार, पत्रकार और कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थे। सिर्फ़ 40 वर्ष की उम्र में उनकी हत्या कर दी गयी थी। उन्हें लातिनी अमेरिका के सबसे प्रभावशाली कवियों में गिना जाता है।