आपस की बात – देश के मज़दूर हैं (कविता)
अगर हम अपने अधिकारों को जानते हैं और एकजुट हो उसके लिए लड़ने को तैयार हैं तो इतिहास इस बात का गवाह है कि बड़ी से बड़ी ताकत को भी हमने घुटने टेकने को मजबूर किया है। इसलिए मैं हमेशा अपने मजदूर साथियों से कहता हूँ कि अगर हम पान, बिड़ी, गुटके पर रोज 5-10 रुपए खर्च कर सकते हैं तो क्या हम महीने में एक बार दस रुपए खर्च कर बिगुल अखबार नही पढ़ सकते जो हमारी माँगों और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है। इसलिए साथियों भले ही अपने वेतन में हर महीने कुछ कटौती करनी पड़े लेकिन जिस उद्देश्य को लेकर यह अखबार निकाला जा रहा है, उसमें हमें भी अपना सहयोग जरूर देना चाहिए।