कविता : हत्यारों की शिनाख़्त / लेस्ली पिंकने हिल
तो उन्होंने चुपचाप उस पर हमला किया
और उसे खींच ले गये;
इतना मुश्किल था उनका षडयन्त्र
कि सरकार ने दिन-दहाड़े
क़ानून और व्यवस्था के जिन प्रहरियों
के हाथ उसे सौंपा था
उनको पता तक नहीं चला।
तो उन्होंने चुपचाप उस पर हमला किया
और उसे खींच ले गये;
इतना मुश्किल था उनका षडयन्त्र
कि सरकार ने दिन-दहाड़े
क़ानून और व्यवस्था के जिन प्रहरियों
के हाथ उसे सौंपा था
उनको पता तक नहीं चला।
विश्व प्रगति से क़दम मिलाकर
उन्नति ख़ातिर अपने को खपाकर
अमीरों को हर सुख पहुँचाया,
अपने बच्चों को भूखा सुलाकर।
जीवन को तुमने हवन कर दिया,
रहे सुविधा से कोसों दूर।
अब चेतने का समय आ गया,
जागो दुनिया के मज़दूर।
जिस दिन लेनिन नहीं रहे
कहते हैं, शव की निगरानी में तैनात एक सैनिक ने
अपने साथियों को बताया: मैं
यक़ीन नहीं करना चाहता था इस पर।
मैं भीतर गया और उनके कान में चिल्लाया: ‘इलिच
शोषक आ रहे हैं।’ वह हिले भी नहीं।
तब मैं जान गया कि वो जा चुके हैं।
लम्बे समय तक मिल बन्द होने के कारण क़स्बे में पहली बार ऐसा हो रहा था, हड़ताल करने वाले मज़दूरों की संख्या लगातार कम हो रही थी। रंग-बिरंगे झण्डों की संख्या बढ़ रही थी। पहले एक झण्डा मज़दूरों की आवाज़ होती थी। अब न जाने कितने रंगों के झण्डों के नीचे मज़दूर बिखरकर एकता का गीत गाने लगे।
”पैरों से रौंदे गये आज़ादी के फूल
आज नष्ट हो गये हैं
अँधेरे की दुनिया के स्वामी
रोशनी की दुनिया का खौफ़ देख ख़ुश हैं
मगर उस फूल के फल ने पनाह ली है
मेरे पास पिस्तौल है। और, मान लीजिए, मैं उस व्यक्ति का – जो मेरा अफ़सर है, मित्र है, बन्धु है – अब ख़ून कर डालता हूँ। लेकिन पिस्तौल अच्छी है, गोली भी अच्छी है, पर काम – काम बुरा है। उस बेचारे का क्या गुनाह है? वह तो मशीन का एक पुर्ज़ा है। इस मशीन में ग़लत जगह हाथ आते ही वह कट जायेगा, आदमी उसमें फँसकर कुचल जायेगा, जैसे बैगन। सबसे अच्छा है कि एकाएक आसमान में हवाई जहाज़ मँडराये, बमबारी हो और वह कमरा ढह पड़े, जिसमें मैं और वह दोनों ख़त्म हो जायें। अलबत्ता, भूकम्प भी यह काम कर सकता है।
“गुलाब का फूल
और फूल कनेर का
रंग रूप दोनों का एक सा
एक आम आदमी
दूसरा राजकुमार
गुलाब की रौनक
देसी फूलों से
उसकी उपमा कैसी?”
इत्रफ़रोश अभी पूरी तरह से मुड़ नहीं पाया था कि उसने देखा, लड़का पीछे की ओर भागा जा रहा है। उसे फिर भी समझ में नहीं आया कि क्या हुआ है। उसकी इच्छा हुई कि लड़के को आवाज़ देकर बुला ले, लेकिन तभी उसे अपने पैरों पर बहता ख़ून नज़र आया और कमर में कुछ कराहता, कुछ डूबता-सा महसूस हुआ। मीठा-सा दर्द उठा, फिर तेज़ नश्तर-सा दर्द और वह डर के मारे बदहवास हो गया।
जब जनता मूर्छित थी तब उस पर धर्म और संस्कृति का मोह छाया हुआ था। ज्यों-ज्यों उसकी चेतना जागृत होती जाती है, वह देखने लगी है कि यह संस्कृति केवल लुटेरों की संस्कृति थी जो, राजा बनकर, विद्वान बनकर, जगत सेठ बनकर जनता को लूटती थी। उसे आज अपने जीवन की रक्षा की ज़्यादा चिन्ता है, जो संस्कृति की रक्षा से कहीं आवश्यक है। उस पुरान संस्कृति में उसके लिए मोह का कोई कारण नहीं है। और साम्प्रदायिकता उसकी आर्थिक समस्याओं की तरफ़ से आँखें बन्द किये हुए ऐसे कार्यक्रम पर चल रही है, जिससे उसकी पराधीनता चिरस्थायी बनी रहेगी।
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं,
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।
मुझे तो चाहिये एक महान ऊँचा लक्ष्य
और उसके लिए उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम ।
ओ कला ! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार
मेरे लिए खोल !